मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने चलाया कोश्यारी पर चाबुक … तीन वर्षों की बसी-बसाई गृहस्थी एक रात में क्यों उजाड़ी?
SG
बहुमत परीक्षण के राज्यपाल के निर्णय से सरकार गिराने में मदद नहीं मिली क्या?
ये निर्णय क्यों लिया… एकमात्र कारण बताओ?
• महाराष्ट्र सुसंस्कृत राज्य है
• ऐसी घटनाओं से कलंकित हुआ
नई दिल्ली
महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष मामले में बहुमत परीक्षण के संबंध में तत्कालीन राज्यपाल द्वारा दिए गए निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने भगतसिंह कोश्यारी की भूमिका पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि तीन साल की खुशहाल जिंदगी जीने वाली महाविकास आघाड़ी सरकार एक रात में कैसे बदल गई? आप तीन साल तक खुशी से रहे और एक कारण के चलते सरकार गिरा दी? महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से एक सभ्य राज्य है, लेकिन इन घटनाओं ने इसे कलंकित कर दिया है। राज्यपाल का यह रुख लोकतंत्र के लिए बेहद निराशाजनक है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कड़े शब्दों में कहा कि तत्कालीन राज्यपाल को ऐसा काम नहीं करना चाहिए था, जिससे सरकार गिर जाए।
मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष के बारे में सुनवाई कर रही है। तीसरे सप्ताह में लगातार दूसरे दिन हुई सुनवाई के दौरान कल राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील पेश की। जिसमें तत्कालीन राज्यपाल ने दावा किया कि बहुमत परीक्षण और शिंदे को सरकार बनाने का न्यौता देने संबंधी निर्देश सही थे।
महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष क्या बहुमत परीक्षण के फैसले ने सरकार गिराने में मदद नहीं की?-मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का सीधा सवाल
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महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष की कल सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्यपाल का पक्ष रखते हुए कहा कि महाविकास आघाड़ी सरकार के साथ रहे ४७ विधायकों ने पत्र दिया था कि उनकी जान को खतरा था। यही वजह थी कि राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण के निर्देश दिए थे। इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मेहता से बहुमत परीक्षण और राज्यपाल के अधिकार के बारे में सवाल उठाते हुए कहा कि क्या बहुमत परीक्षण के फैसले ने सरकार गिराने में मदद नहीं की? क्यों लिया गया ये फैसला? कम से कम एक वजह तो बता दें, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपनी राय रखते हुए कहा कि हम सत्ता संघर्ष के मामले में राज्यपाल के रुख से बहुत निराश हैं। इस बीच तुषार मेहता ने बचाव का रुख अपनाते हुए कहा कि राज्यपाल ने ३४ विधायकों द्वारा लिखे गए पत्र पर फैसला लिया था। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ३४ विधायकों के पत्र का मतलब यह नहीं है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है। बताया गया कि विधायक के पत्र में केवल समूह के नेताओं और प्रतोद की नियुक्ति के मुद्दे थे। साथ ही विधायक का पत्र बहुमत साबित कराने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने शेष आधारों पर चर्चा करने का निर्देश दिया, लेकिन मेहता मुख्य न्यायाधीश द्वारा उठाए गए बिंदुओं का संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
चीफ जस्टिस ने क्या कहा?
• बागी विधायकों ने गुट नेता और प्रतोद की नियुक्ति के लिए ही राज्यपाल को पत्र लिखा था। राज्यपाल ने बहुमत परीक्षण का निर्देश सरकार को वैâसे दे दिया?
सरकार के खिलाफ बगावत करनेवाले विधायकों को जान का खतरा था तो उन्हें राज्य सचिव को सुरक्षा के लिए पत्र लिखना ही काफी था, लेकिन राज्यपाल ने यह कैसे मान लिया कि विधायक इस वजह से सरकार पर भरोसा नहीं करते?
• विधानमंडल में सरकार अल्पमत में दिखाई दे तो राज्यपाल बहुमत परीक्षण का निर्देश दे सकता है, लेकिन इस मामले में राज्यपाल ने कौन सी घटना देखी, जिसके कारण उन्हें सरकार से बहुमत साबित करने के लिए कहना पड़ा?
• एक बार सरकार बन जाने और कुछ दिनों बाद अधिवेशन होने के बावजूद बहुमत परीक्षण का निर्देश क्यों? बिना किसी ठोस कारण के बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
• सरकार में शामिल किसी दल में मतभेद होने पर उस पर बहुमत साबित करने का निर्देश राज्यपाल सत्ताधारी दल के नेता को कैसे दे सकता है? पार्टी के अंदर का विवाद पार्टी के भीतर ही सुलझाया जाना चाहिए। यह राज्यपाल का काम नहीं है।
• राज्यपाल को लगा कि शिवसेना में एक गुट पार्टी गठबंधन के साथ जाने के फैसले के खिलाफ है। तो क्या राज्यपाल अकेले उस आधार पर बहुमत परीक्षण का निर्देश दे सकते हैं? एक तरह से वे पार्टी को ही तोड़ रहे हैं।
• राज्यपाल ने दो बातों पर ध्यान नहीं दिया। एक ओर कांग्रेस और राष्ट्रवादी में कोई भेद नहीं था। इनके पास मिलाकर ९७ विधायक हैं। यह भी एक बहुत बड़ा गुट था। शिवसेना के ५६ में से ३४ विधायकों ने अविश्वास जताया। इसलिए तीन में से एक दल में मतभेद के बाद भी अन्य दो दल गठबंधन में बने रहे।
• नियम से बनाई गई सरकार सत्ता में है। राज्यपाल किसी धारणा के आधार पर निर्णय नहीं ले सकते हैं। राज्यपाल को उन ३४ विधायकों को शिवसेना का सदस्य मानना होगा। शिवसेना के सदस्य हैं तो सदन में बहुमत साबित करने का सवाल कहां से आता है?
• ये सारे घटनाक्रम सरकार बनने के एक महीने के भीतर नहीं हुए। यह सब तीन साल बाद हो रहा था। तो अचानक एक दिन उन ३४ लोगों को लगा कि कांग्रेस और एनसीपी में कोई फर्क है। ऐसा वैâसे? तीन साल में कोई पत्र नहीं, एक सप्ताह में छह पत्र वैâसे? राज्यपाल को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए था।
एक बार सरकार बनने के बाद, राज्य में एक स्थिर सरकार बनी रहे यह सुनिश्चित करना राज्यपाल का कर्तव्य है। क्योंकि सरकार के स्थिर रहने पर ही हम विभिन्न कार्यों के लिए सत्ताधारियों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं था। राज्य में जो हुआ बहुत गलत हुआ। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि महाराष्ट्र एक बहुत ही सभ्य राज्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस तरह की घटना के कारण राज्य के बारे में बहुत ही अनुचित तरीके से बात की जा रही है।