SG नई दिल्ली
एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे सऊदी अरब और ईरान अपनी सारी पुरानी अदावतों को भुलाकर दोस्ती करने को तैयार हो गए हैं। अब हैरानी की बात यह है कि इन दोनों देशों को करीब लाने का श्रेय चीन को दिया जा रहा है। दरअसल, सऊदी अरब में एक शिया मौलवी को २०१६ में फांसी की सजा दी गई थी और इसी मुद्दे पर २०१६ में सऊदी अरब और ईरान के कूटनीतिक संबंध खत्म हो गए थे। तब से ये दोनों देश एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे। सऊदी अरब खुद को पूरी दुनिया के सुन्नी मुसलमानों का रहनुमा मानता है और ईरान अपने को शिया मुसलमानों का। ऐसे में इन दोनों के कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने के फैसले से सारी दुनिया कुछ हैरान तो अवश्य है। आप जानते हैं कि ये दोनों ही तेल उत्पादक देश हैं। दोनों ही देश अपने व्यावसायिक हित के कारण वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे हैं। पर यहां एक जरूरी चिंता को नजरअंदाज किया जा रहा है कि क्या सऊदी अरब और ईरान चीन से ये पूछने की हिमाकत करेंगे कि उनके देश चीन में मुसलमानों पर भीषण अत्याचार क्यों हो रहे हैं? वे कब थमेंगे?
चीन ने अपने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहनेवाले मुसलमानों को पूरी तरह से कसा हुआ है। उन्हें खान-पान के स्तर पर वह सब कुछ करना पड़ा रहा है, जो उनके इस्लाम धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। ये सब कुछ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर हो रहा है। पहले तो ये भी खबरें आ रही थीं कि चीन अपने देश के मुसलमानों को रमजान के दौरान रोजा रखने की भी अनुमति नहीं देता। इस सबके बावजूद ईरान, सऊदी अरब तथा इस्लामी दुनिया चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर चुप है। इन्होंने चीन में मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों पर विरोध का एक शब्द भी दर्ज नहीं कराया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शिनजियांग प्रांत में बने डिटेंशन (हिरासत) शिविरों में दस लाख से अधिक चीनी मुसलमानों का लगातार दमन किया जा रहा है। उन पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। सब इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान इस्लाम को छोड़कर कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम से दूर हो जाएं। पर समूचा इस्लामी संसार चीन के इस अत्याचार पर चुप है। यही नहीं, इस्लामिक देशों के संगठन ‘ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कांफ्रेंस ’ (ओआईसी) की तरफ से भी चीन को ‘ओआईसी’ के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में बतौर मेहमान शिरकत करने की दावत दी जाती है।
ये निश्चय ही शोध का एक गंभीर विषय है कि चीनी दमन पर इस्लामिक संसार ने आंखों पर पट्टी और कानों में रूई क्यों डाल रखी है? चीन अपनी इस सारी कवायद पर भारी-भरकम निवेश कर रहा है। वो मानता है कि उसके डिटेंशन शिविर एक प्रकार से मानसिक अस्पताल ही हैं। इनमें वैचारिक रोग (आइडीओलॉजिकल इलनेस) का इलाज होता है। चीन का मत है कि ये शारीरिक रोग जैसी ही स्थिति है। शिनजियांग को चीन के क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत माना जाता है। ये एक लाख ६६ हजार वर्ग मील में पैâला है। आप समझ सकते हैं कि यह कितना विशाल है। इसकी आबादी भी सवा दो करोड़ के आसपास है।
दरअसल, शिनजियांग में चीनी सरकार और यहां के वीगर मुसलमानों के लंबे समय से तनातनी चली आ रही है। वीगर मुसलमान भी भारत के कट्टर इस्लाम पंथियों की तरह अपने को मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं। ये सांस्कृतिक स्तर पर अपने को चीन के करीब नहीं मान पाते। शिनजियांग पर कम्युनिस्ट चीन ने १९४९ में पूरी तरह से कब्जा जमा लिया था। चीनी मुसलमानों की चीन सरकार से लगातार यह शिकायत रही है कि वे उनके बहुल वाले क्षेत्रों में चीनी मूल के नागरिकों, जिन्हें हान चाइनीज भी कहते हैं, को बसाने की चेष्टा कर रही है, जिसके चलते उनके समक्ष अपने ही क्षेत्र में अल्पसंख्यक होने का संकट पैदा हो गया है।
अब इसी मुद्दे पर पड़ोसी पाकिस्तान की राय भी जान लीजिए। पाकिस्तान, फिलीस्तीन से लेकर रोहिंग्या मुसलमानों के हक में बोलता है, पर वह चीन के मुसलमानों के मामले में मौन हो जाता है। उसे लगता है कि चीन से पंगा लेना खतरे से खाली नहीं होगा। चीन का नाम सुनते ही पाकिस्तान के उदारवादी तथा कट्टरपंथी अपनी बिलों में छिप जाते हैं। पाकिस्तान में इमरान खान ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद कहा था कि उनका देश चीन के साथ मधुर संबंधों को बनाकर रखना चाहता है। उनकी ‘पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी’ (पीटीआई) ने एक बार अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा, ‘हम चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत करेंगे और उन्हें सुधारेंगे। हम चीन से गरीबी उन्मूलन सीखने के लिए अपने अधिकारियों की टीम भेजना चाहते हैं ताकि वे सीख सकें कि गरीबी को वैâसे खत्म किया जा सकता है।’ अफसोस कि इमरान खान और उनकी पार्टी चीन में मुसलमानों के ऊपर होनेवाले जुल्मों-सितम पर चुप ही रहती है। कुछ वर्ष पहले चीन के दबाव में पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी अपनी चीन यात्रा के दौरान बीजिंग या शिंघाई जैसे अहम शहरों में न जाकर सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों में ही गए थे। उन्होंने वहां के मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में ही स्थानीय मुसलमानों के साथ ईद भी मनाई। दरअसल, वो चीन के दबाव के कारण ही मुस्लिम कट्टरवाद से प्रभावित शिनजियांग प्रांत गए थे। अब पाकिस्तान में मिली-जुली सरकार है और उसके विदेश मंत्री जरदारी के पुत्र बिलावल भुट्टो हैं। उनके मुंह में भी चीन का जिक्र आते ही दही जम जाता है। चीन यह भी कहता रहा है कि उनके यहां चरमपंथी मुसलमानों को पाकिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण शिविरों में ही ट्रेनिंग मिलती रही है। चीन का आरोप है कि शिनजियांग प्रांत में पाकिस्तान में प्रशिक्षित ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) के आतंकवादी हिंसा के लिए जिम्मेदार रहे हैं।
बहरहाल, भारत के सऊदी अरब और ईरान से घनिष्ठ संबंध हैं। भारत इन दोनों देशों से खासतौर पर कच्चा तेल आयात करता है। चीन से जटिल सीमा विवाद होने के बावजूद भारत का उससे भी व्यापारिक संबंध मजबूत हो रहा है। भारत-चीन आपसी व्यापार तेजी से बढ़ता ही जा रहा है। भारत की तो चाहत रही है संसार में तमाम देश मिल-जुलकर ही रहें। इसलिए भारत तो ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों की इबारत लिखे जाने से प्रसन्न ही होगा। हां, पर यह सवाल तो अपनी जगह खड़ा है कि ईरान-सऊदी अरब क्यों नहीं चीन से उसके देश में मुसलमानों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ विरोध दर्ज करते?