FDA के पास पैकेटबंद पदार्थाें में उपयोग किए जानेवाले घटक ‘वनस्पतिजन्य’ हैं अथवा ‘पशुजन्य’ हैं, इसका पता लगाने की कोई व्यवस्था ही नहीं है !
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आप यदि बाजार से नूडल्स, पास्ता, पिज्जा, बिस्कुट, चिप्स, सूप, चॉकलेट आदि बेकरी एवं पैकेटबंद पदार्थ खरीदते हों, तो आप उनके पैकटों पर लिखे जानेवाले ई-कोडिंग को जांचिए; क्योंकि पैकटों पर हरा चिन्ह होते हुए भी अंदर के पदार्थ मांसाहारी अथवा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं । इसलिए कि पैकेटबंद अथवा अन्य बेकरी उत्पादों में उपयोग किए जानेवाले ‘इमल्सीफाइर्स’ (एक प्रकार का स्निग्ध पदार्थ) पशुजन्य है अथवा वनस्पतिजन्य, इसका पता लगाने की व्यवस्था महाराष्ट्र राज्य की सरकारी प्रयोगशालाओं में उपलब्ध नहीं । ‘अन्न एवं औषधीय प्रशासन विभाग’ से सूचना के अधिकार के अंतर्गत यह चौंकानेवाली जानकारी मिली है । इसलिए जो लोग शुद्ध शाकाहारी अन्न का सेवन करते हैं, उनके लिए उक्त पदार्थाें में पशुओं का मेद अथवा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक घटक हैं अथवा नहीं, इसकी पुष्टि करने की किसी प्रकार की व्यवस्था सरकार के पास नहीं है । यह गंभीर बात है । इसके संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ‘अन्न एवं औषधीय प्रशासन विभाग’ से संबंधित व्यवस्था करने की मांग की गई है ।
इस संदर्भ में हिन्दू विधिज्ञ परिषद की एड. मृणाल व्यवहारे ने मुंबई एवं नागपुर की अन्न एवं औषधीय प्रशासन की प्रयोगशालाओं से सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन दिया था । उसमें उक्त जानकारी उजागर हुई है । बेकरी उत्पाद, उदाहरणार्थ बिस्कुट इत्यादि कुरकुरे बनें; इसके लिए विशिष्ट प्रकार के स्निग्ध पदार्थ मिलाए जाते हैं, जिन्हें ‘इमल्सीफाइर्स’ कहते हैं । ये ‘इमल्सीफाइर्स’ वनस्पतिजन्य अथवा पशुओं के मेद से भी बने होते हैं । इन पदार्थाें के पैकेटों पर लिखे ई-कोडिंग में E120, E322, E422, E 471, E542, E631, E901 एवं E904 में पशुओं के मेद से बने ‘इमल्सीफाइर्स’ हो सकते हैं । उत्पादित चिप्स में मेद का मिश्रण होने विषय में दिसंबर 2021 में देहली उच्च न्यायालय में ‘राम गौरक्षा दल’ द्वारा की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश विपिन सांघी एवं जसमीत सिंह की खंडपीठ ने यह स्पष्टरूप से कहा था कि अन्नपदार्थाें में समाहित घटकों का वर्णन केवल ई-कोडिंग के माध्यम से न दर्शाकर उसके स्थान पर संबंधित अन्नपदार्थ बनाते समय उसमें वनस्पतिजन्य अथवा पशुजन्य अथवा प्रयोगशाला में तैयार किए गए घटकों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए, जिससे लोगों को मांसाहारी अथवा शाकाहारी पदार्थ के चयन का अधिकार रहेगा । ऐसा होते हुए भी इस निर्णय की उपेक्षा की जा रही है । कुछ समय पूर्व ‘मैगी’ में सीसा (lead) धातु मिलने के विवाद के उपरांत ई-कोडिंग के संदर्भ में अनेक चौंकानेवाली बातें सामने आई थीं । ई-कोडिंग में पशुओं के मेद का उपयोग किया जाता है अथवा लोगों को किसी पदार्थ का व्यसन लगाने के लिए उसमें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थाें का मिश्रण किया जाता है, यह भी उजागर हुआ था । हिन्दू विधिज्ञ परिषद की ओर से यह बताया गया है कि परिषद इसके संदर्भ में सरकार से समीक्षा कर रही है । इस संदर्भ में जबतक बदलाव नहीं किया जाता, तबतक यह लडाई जारी रखी जाएगी ।
एक ओर मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के लिए पैकेटबंद पदार्थ का उत्पादन करते समय उनकी धर्मश्रद्धाओं का हनन न हो; इसलिए ‘हलाल सर्टिफाइड’, ऐसा चिन्हित किया जाता है । उन्हेंने देश में गैरसरकारी समानांतर व्यवस्था खडी कर दी है; परंतु इस देश में हिन्दू, जैन एवं गैरमुसलमानों की धर्मश्रद्धाओं पर विचार तक नहीं होता, यह अत्यंत खेदजनक है’’, ऐसा मत हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने व्यक्त किया ।