SG मीडिया मुक्त रहा तो ही लोकतंत्र टिकेगा, ऐसा स्पष्ट मत मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने व्यक्त किया है। वैसे देखा जाए तो आज देश में कुछ भी मुक्त नहीं है और सभी क्षेत्रों पर बंधन और जंजीरें डाल दी गई हैं। न्यायालय भी इससे मुक्त नहीं हैं। न्यायालय सरकार को जैसा चाहिए वैसा बर्ताव नहीं करता इसलिए हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति रोक कर रखी गई है। कुछ न्यायाधीश तो खुद ही समर्पण करते दिख रहे हैं। फिर भी न्या. चंद्रचूड़ अपने दम पर स्वतंत्रता की तलवार चला रहे हैं। धमकियों की परवाह किए बगैर शासकों को सत्य कहने का साहस जब तक पत्रकार दिखाते रहेंगे तब तक देश की आजादी अबाधित रह सकेगी, ऐसा न्या. चंद्रचूड़ ने कहा। न्या. चंद्रचूड़ की स्वतंत्रता से संबंधित भावना बेहद तीव्र है और कुल मिलाकर देश का माहौल स्वतंत्रता का गला घोंटने जैसा नजर आता है। यह व्याकुलता वर्तमान में न्या. चंद्रचूड़ के वक्तव्यों में नजर आती है। श्री राहुल गांधी द्वारा ‘मोदी’ नाम पर टिप्पणी किए जाने से प्रधानमंत्री मोदी का अपमान हुआ और इसे लेकर मानहानि के एक मुकदमे में सूरत की एक अदालत ने श्री गांधी को दो साल की सजा सुनाई है। नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेंद्र मोदी के ‘मोदी’ नाम पर एक भाषण के दौरान की गई टिप्पणी के कारण न्यायालय ने गांधी को दोषी ठहराया और सजा सुनाई। भारतीय जनता पार्टी के पोपटराव विरोधियों पर जैसा मन करे वैसे शब्दों में कीचड़ उछालें, आरोप लगाएं, उनके खिलाफ कार्रवाई का नाम ही नहीं लिया जाता है। लेकिन विपक्ष के नेताओं को जहां मौका मिले वहां फंसाया जाए, ऐसी कुल मिलाकर मोदी सरकार की नीति नजर आती है। इसलिए राजनीति में आलोचना करने की आजादी सिर्फ मोदी के अंधभक्तों को ही है। अन्य लोगों ने आलोचना की तो श्री मोदी की मानहानि होती है और उन्हें जेल में भेजा जाता है। दिल्ली में ‘मोदी हटाओ, देश बचाओ’ ऐसे पोस्टर इन दिनों नजर आए। इन पोस्टर्स को मोदी सरकार ने गंभीरता से लिया और अब तक इस मामले में कई लोगों को गिरफ्तार करके १३८ एफआईआर दर्ज की गई है। दिल्ली की कई दीवारों और बिजली के खंभों पर ‘मोदी हटाओ’ के पोस्टर नजर आए थे। इन पोस्टर्स को हटाने के काम में पूरी दिल्ली पुलिस लग गई। ‘मोदी हटाओ’ इसमें आक्षेप लेने जैसा क्या है? किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसे पोस्टर लगाए जाते हैं। दिल्ली में ‘केजरीवाल हटाओ’ आदि पोस्टर्स भाजपा कार्यकर्ताओं ने खुलेआम लगाए लेकिन तब भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ ‘एफआईआर’ दर्ज नहीं की गई। ‘इंदिरा हटाओ’ के भी पोस्टर उस दौर में लगे ही थे और वो लगानेवाले जनसंघ के लोग थे। अब ‘मोदी हटाओ’ ऐसे पोस्टर लगे होंगे तो यह जनभावना है। प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को सत्ता से हटाने का अधिकार उनके विरोधियों को है और लोगों को इस कार्य के लिए जागरूक करना उनका कर्तव्य है। जनता ने विरोधियों की सुनी और मोदी को हटाया तो परिणाम स्वीकार करना होगा लेकिन ‘हमें हटाने की बात नहीं करने देंगे। करोगे तो पुलिसिया कार्रवाई की जाएगी’, ऐसा धमकाकर कहनेवाला दमनकारी लोकतंत्र घातक है और न्या. चंद्रचूड़ ने उनकी दमनशाही पर प्रहार किया है। मोदी के खिलाफ व्यंग्यचित्र बनानेवाले, विनोदी भाषण करनेवाले, सरकार के खिलाफ तीखे लेख लिखनेवालों को देशद्रोही ठहराकर जेल में डाल दिया गया। मीडिया के मुक्त होने के ये लक्षण नहीं हैं। मीडिया के मालिक ‘मोदी’ भक्तों की जेब में खटमल की तरह घूमते हैं और कई पत्रकार, एंकर्स आज सत्ताधारियों के घोषित प्रवक्ता ही बन गए हैं। ‘न्यायालय द्वारा पैâसला देने से पहले ही मीडिया न्याय पर अपनी राय रखने लगी है।’ ऐसा ज्वलंत सत्य मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने व्यक्त किया। सत्ता द्वारा सत्य कहनेवालों को रोका जा रहा होगा तो यह लोकतंत्र पर हमला है। बोलने, लिखने, व्यक्त होने की आजादी आज देश में वास्तव में बची है क्या? इस पर खुद मुख्य न्यायाधीश को ही आशंका है। स्वतंत्रता की रक्षा करने का कर्तव्य जिन्हें निभाना चाहिए, ऐसी तमाम संवैधानिक संस्थाएं सत्ताधारियों की चाकरी में कृतार्थ हुई हैं। मोदी को हटाया न जाए, कभी भी न हटाया जाए, चुनाव के लोकतांत्रिक मार्ग से भी उन्हें न हटाया जाए इसी के लिए तमाम प्रयास अवैध मार्ग से किए जा रहे हैं। इसीलिए मोदी पर टिप्पणी को मानहानि ठहराकर राहुल गांधी को सजा दी जाती है और ‘मोदी हटाओ’ के पोस्टर लगानेवाले देशद्रोही ठहराए जाते हैं। मुख्य न्यायाधीश इस पर भी चिंता व्यक्त करें तो अच्छा ही होगा।