जहां रहते थे पांडवों के पिता, वहां के मंदिरों को बना दिया गोदाम : पाकिस्तान में ‘पंज तीरथ’ का बुरा हाल
SG
पाकिस्तान में हिंदुओ और हिंदू तीर्थ स्थलों की दुर्गति किसी से छिपी हुई नहीं है। पाकिस्तान के पेशावर स्थित महाभारत कालीन तीर्थ स्थल पंज तीरथ के जमीनों पर कब्जा हो चुका है। तीर्थ स्थल के 2 मंदिरों का गोदाम की तरह उपयोग किया जा रहा है। पंज तीरथ की यह दुर्दशा तब है जब प्रांतीय सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है। तीर्थ स्थल की जमीन को लेकर स्थानीय पार्क और प्रांतीय सरकार के बीच विवाद भी चल रहा है। 10 दिन पहले ही पेशावर हाई न्यायालय ने मामले के निपटारे में अधिक समय लगने को लेकर नाराजगी भी जताई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1947 से पहले तक हिंदुओं के प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थ स्थलों में शामिल पंज तीरथ अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इस्लामी आक्रांताओं के हमलों ने इस स्थल को बहुत नुकसान पहुंचाया। देश के विभाजन तक यहां 2 ही जीर्ण-शीर्ण मंदिर बच पाए थे। बाद में इस क्षेत्र को चाका यूनुस फैमिली पार्क चलाने वाली कंपनी को पट्टे पर बेच दिया गया। वर्ष 2019 में खैबर पख्तूनख्वा सरकार ने पंज तीरथ को राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित कर दिया।
विरासत स्थल घोषित किए जाने के बाद भी पंज तीरथ की जमीन पर सरकार का कब्जा नहीं हो सका है। बिटर विंटर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यहां स्थित मनोरंजन पार्क मंदिरों को गोदामों की तरह इस्तेमाल कर रहा है। पार्क का मालिकना हक रख रही कंपनी विरासत स्थल की एक कनाल (0.125 एकड़) और 11 मरला जमीन वापस देने को तैयार है। जबकि पुरातत्वविदों (Archaeologists) का कहना है कि पंज तीरथ के हिस्से लगभग पाँच कनाल (0.625 एकड़) जमीन आती है।
रिपोर्ट की मानें तो जब पुरातत्विद उस स्थल पर जाने की कोशिश कर रहे थे तो हथियारबंद लोगों ने उन्हें भगा दिया। मामला संज्ञान में आने के बाद पेशावर उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी, 2023 को नाराजगी व्यक्त की थी। न्यायालय ने कहा था कि तीन साल से अधिक समय के बाद भी इस मुद्दे को हल नहीं किया गया है। न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने की ओर इशारा किया।
पंज तीरथ का इतिहास
पंज तीरथ महाभारत कालीन तीर्थ स्थल है। यहाँ पांडवों के पिता पांडु रहने के लिए आया करते थे। यहाँ स्थित पाँच तालाबों का संबंध पाँडवों (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) से है। यहाँ कई मंदिर और बगीचे हुआ करते थे। हिंदू कार्तिक के महीने में इस स्थान पर स्नान के लिए आया करते थे। स्नान के साथ-साथ कुछ लोग 2 दिनों तक यहाँ ठहर कर पूजा पाठ भी किया करते थे। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह स्थल पर बौद्ध भी पूजा पाठ किया करते थे।
पंज तीरथ में बुद्ध के भिक्षापात्र के निशान भी मिले हैं। सन 1747 में अफगान दुर्रानी राजवंश के दौर में इस स्थल को नुकसान पहुँचाया गया। सन 1834 में सिख शासन के दौरान हिंदुओं ने इसे फिर से बनवाया और एक बार फिर से इस स्थान पर कार्तिक स्नान व पूजा शुरू हुई।
पुरातत्व निदेशालय ने खैबर पख्तूनख्वा सरकार से पंज तीरथ से अतिक्रमण हटाए जाने और जरूरी संरक्षण कार्य करने की अनुमति माँगी है। पंज तीरथ के चारों ओर बाउंड्री वाल बनाने की भी गुजारिश की गई है।