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दरअसल, मई २०१४ से पहले देश में बेईमानी का बोलबाला था। नेता बिरादरी में तो पूछो मत। चूंकि एक पार्टी ने एक फर्जी गांधी को आगे कर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया और बाद में उसे लपककर खुद को सबसे ज्यादा पावन और ईमानदार घोषित कर दिया, जिसे गोदी मीडिया ने भरपूर समर्थन दिया। जब वे स्वयंभू ईमानदार जीतकर आए तो बेईमानों को लगा कि अगर ईमानदारी से बेईमानी की जाए तो सत्ता तक पहुंचा जा सकता है। लिहाजा जिनका ईमानदारी से बेईमानी के लिए अपनी पार्टी में दम घुट रहा था वे अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर गोदी सेठ पोषित पार्टी में शामिल हुए और एकाध तो मुख्यमंत्री तक बन गए। बंगाल वाला भी इसी उम्मीद में आया था मगर बंगाल की जनता को बेईमान पार्टी ही अच्छी लगी। यह चमत्कार वैâसे घटित हो गया, नया झांसाराम भी नहीं बता पा रहा है। दरअसल, वे जैसे गद्दीनशीन हुए उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपने व्यापारी दोस्तों की बेईमानी पर ध्यान देना बंद कर दिया। दोस्त जो पहले गरीब हुआ करता था, उसने बेईमानी को ईमानदारी से आगे बढ़ाया और फिर तेजी से सबसे बड़ा अमीर बन गया। फिर विदेशियों ने उसके खिलाफ साजिश रची और एक रिपोर्ट से उसकी ईमानदारी वाली बेईमानी बाजार में दिगंबर हो गई। तब उसने भी फर्जी देशभक्ति और छलावे वाले राष्ट्रवाद की चादर से लेकर कंबल तक के पीछे छिपकर अपने पाप को छिपाने की जुगाड़ बिठाई, मगर नाकाम और इधर रोज बाजार में उसके शेयर धड़ाम। अब बिहार वाला जो उनके साथ ईमानदार, सुशासक, साफ-सुथरा हुआ करता था, जैसे ही पाला बदला, सबसे ज्यादा बेईमान और कुशासक हो गया है। सबसे बड़ी बात अपने गुरु को मार्गदर्शक मंडल में डालकर भूलने/भुलाने वाली जमात के मुखिया अब एक छाते पर भी कुतर्क के साथ अट्टहास कर रहा है।
पटरी पर लौटे बोस
दिल्ली दरबार से राजभवन के स्थाई भाजपाई शिष्टाचार सीख लौटे बंगाल के राज्यपाल डॉ. आनंदा बोस आखिर पटरी पर लौटते नजर आ रहे हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रमाणिक के काफिले पर हुए हमले की घटना को लेकर राज्यपाल आनंदा बोस ने बाकायदा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि प्रशासनिक अधिकारी बिना किसी भय या पक्षपात के अपना कर्र्तव्य निभाएं। यह काफी चौंकानेवाली बात है कि ऐसी घटनाएं ऐसी भूमि पर हुर्इं जो अपनी परिष्कृत संस्कृति और सभ्य आचरण के जीवंत इतिहास के लिए जानी जाती है। कानून हाथ में लेने की कोशिश करनेवाले असामाजिक तत्वों से सख्ती से निपटा जाएगा। हिंसा को जड़ से उखाड़ फेंका जाएगा। संविधान को कायम रखना चाहिए। बंगाल यह उम्मीद करता है कि प्रत्येक अधिकारी बिना किसी भय या पक्षपात के अपना कर्तव्य निभाएं। चाहे वह पुलिस में हो या फिर शासन के किसी भी विंग में। कानून व्यवस्था के रख-रखाव में किसी भी तरह की ढिलाई से अराजकता पैदा होगी, जो कभी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सरकार अपराधियों से निपटते समय तत्काल और प्रत्यक्ष कार्रवाई करेगी और कानून के शासन को बनाए रखेगी। राज्यपाल ने तुरंत कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है।
सुरक्षा हटी, इज्जत घटी
राजनीति में भूतपूर्व विधायक, सांसद, मंत्री का जलवा तब तक है, जब तक उन्हें सरकारी सुरक्षा मिलती रहे। इससे उनका रॉब गालिब रहता है। गुजरात में जब भूपेंद्र पटेल-२ सरकार ने सत्ता संभाली तो नाराजगी थी। कई पूर्व मंत्रियों को हटा दिया गया और उम्मीदवारों को छोड़ दिया गया। लेकिन पूर्व मंत्रियों के पास शेखी बघारने के लिए सिर्फ एक ही चीज थी। मंत्री के रूप में उन्हें दिया गया सुरक्षा कवच बरकरार रहा। विधायकों के पास बंदूक के साथ चार सुरक्षा गार्ड हुआ करते थे, जो उन्हें शक्ति का अहसास कराते थे। लेकिन अब वे शक्तिहीन हो गए क्योंकि सरकार ने पूर्व २४ मंत्रियों को मिलने वाला सुरक्षा कवर वापस लेने का पैâसला किया। इन पूर्व मंत्रियों में राजेंद्र त्रिवेदी, जीतू वघानी, पूर्णेश मोदी, प्रदीप परमार, अर्जुन सिंह चौहान, बृजेश मेरजा, जीतू चौधरी, कीर्ति सिंह वाघेला, गजेंद्र सिंह परमार, मनीषा वकील, विनोद मोरडिया, देवा मालम और निमिषा सुथार शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, पूर्व गृह राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा के लिए राहत की बात यह है कि उनकी सुरक्षा वापस नहीं ली गई है।