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कांग्रेस का सूरज पूरब में भी बुरी तरह डूबा, देश में कांग्रेस ने 331 एमएलए गंवाए तो बीजेपी 474 विधायक बढ़ाकर और मजबूत हुई

SG

किसी भी पार्टी का समर्थक अथवा विरोधी होना अलग बात है। कई बार अपने लेखों में स्पष्ट कहता रहा हूँ कि कांग्रेस को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए गाँधी परिवार को दूर कर बिना रिमोट नेताओं को सार्वजनिक मंचो पर लाया जाए, क्योकि जब तक कांग्रेस परिवार भक्ति में लीन होकर काम करती रहेगी, राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा का जितना अधिक दखल रहेगा, कांग्रेस को डूबने से कोई नहीं बचा सकता। जनता को इंदिरा गाँधी और राजीव की हत्याओं को बलिदान कहकर अधिक समय तक मूर्ख नहीं बना सकते। बलिदान और हत्या में उतना ही अंतर है जितना जमीन और आसमान में। तुष्टिकरण को त्याग हिन्दुत्व पर बात करनी होगी। समय की नब्ज को पढ़ना होगा। तुष्टिकरण के दिन लद चुके हैं। सत्य को अधिक समय तक अब दबाना मुश्किल है। कांग्रेस ही नहीं समस्त विपक्ष को इस सच्चाई को समझना होगा। यदि विपक्ष बदलते समय को समझने में असफल हो रहे हैं, फिर वह राज करने योग्य भी नहीं।

कांग्रेस नेताओं को मंथन करना होगा कि जब पार्टी ही नहीं रहेगी, तुम्हे कौन पूछेगा? जहां तक भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी की बात है, अपने युवा दिनों से लेकर आज वरिष्ठ होने तक कोई ऐसा चुनाव नहीं देखा, जिसमें इन मुद्दों पर शोर न हुआ हो, लेकिन यह समस्या आज भी ज्यूं की तोह बनी हुई है। कोई नेता अथवा पार्टी इस कटु सच्चाई से इंकार नहीं कर सकता। आज बेकाबू बढ़ती महंगाई का मुख्य कारण है, नेतागिरी ने नाम पर सरकारी खजाने की लूट जैसे हर माह मिलने वाली पेंशन, सुख-सुविधाएं आदि जिन पर हर महीने करोड़ों खर्च होता है। इन मुद्दों को कोई नहीं उठाएंगे क्योकि इस सरकारी लूट को शुरू करने में विपक्ष का ही हाथ है। आता माल किसी को बुरा नहीं लगता।
खैर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कांग्रेस-मुक्त भारत का विजन देश में हर ओर तेजी से साकार हो रहा है। एक ओर पीएम मोदी केंद्र की राजनीति के उदीयमान नक्षत्र बनते जा रहे हैं, दूसरी ओर कांग्रेस जनता के भरोसे और विश्वास के साथ-साथ जनाधार भी खो रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस का ग्राफ लगातार पतन की ओर है। पीएम मोदी ने बीजेपी को जीत का वो मंत्र दिया है, जिस पर सवार होकर पार्टी विजयी अभियान पर निकलती है और हर चुनाव में जनता सीटों से उसकी झोली भर देती है। पीएम मोदी ने सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास के इस मंत्र के साथ ही कल्याणकारी योजनाओं का सैचुरेशन यानी शत-प्रतिशत कवरेज लक्ष्य हासिल करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए हैं। इससे कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति पूरी तरह भरभराकर बिखर गई। एक बार फिर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का सूरज पूरब में भी उदयी नहीं हो पाया और होली से पहले ही नॉर्थ ईस्ट भगवा रंग में रंग गया। मेघालय में कांग्रेस 21 से 5 पर जा गिरी। नगालैंड में कांग्रेस जीरो के साथ विराजमान है। त्रिपुरा समेत तीनों राज्यों में बीजेपी और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है।

पांच राज्यों में कांग्रेस के जीरो विधायक, 9 राज्यों में हैं 10 से कम एमएलए

मोदी के कुशल नेतृत्व और जन कल्याणकारी नीतियों के चलते लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ रही है। जनमानस मोदी के कांग्रेस-मुक्त भारत के नारे का मुरीद है और बीजेपी की जीत के साथ कांग्रेस का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड से पहले बीजेपी की उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में शानदार वापसी हुई और कांग्रेक ने तो पंजाब में अपनी सरकार भी गंवा दी। बाकी चार राज्यों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत शर्मनाक स्थिति तक पहुंच गया। कांग्रेस को सदमे पर सदमों का दौर 2014 से चल रहा है। गिने-चुने राज्यों को छोड़ दें तो देश की सबसे पुरानी पार्टी कहे जाने वाली कांग्रेस तेजी से सिमट रही है। देश में कुल 4033 विधायक हैं, इनमें कांग्रेस के 658 बचे हैं। पिछले 9 सालों में कांग्रेस विधायकों की संख्या 24% से घटकर 16% ही रह गई है। पांच राज्यों में तो पार्टी का कोई विधायक ही नहीं बचा। वहीं 9 राज्यों में 10 से कम विधायक हैं। 1951 में तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस की अब सिर्फ तीन राज्यों में सरकार बचा है।

2014 से पहले कांग्रेस की 11 राज्यों में सरकार, अब तीन राज्यों में ही बची
पीएम मोदी के केंद्र में आविर्भाव के बाद कांग्रेस की दयनीय दशा और दिशा को आंकड़ों में जानें तो हालात आसानी से समझ में आ जाएंगे। 2014 से पहले कांग्रेस सरकार 11 राज्य में थी। ये राज्य थे-हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, केरल-गठबंधन, महाराष्ट्र-गठबंधन, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, उत्तराखंड, अरुणाचल और असम। कांग्रेस के छह राज्यों में दस से कम विधायक थे। ये राज्य थे-पुडुचेरी, तमिलनाडु, गोवा, नगालैंड, बिहार और दिल्ली। इतना ही नहीं देश के 14 राज्यों में तब कांग्रेस मजबूत विपक्ष की भूमिका में हुआ करती थी। ये राज्य थे- बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, नगालैंड, ओडिशा, पुडुचेटी, पंजाब, राजस्थान तमिलनाडु, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल। एकमात्र सिक्किम ही ऐसा राज्य था, जिसमें कांग्रेस का कोई विधायक नहीं था।
पांच राज्यों में जीरो विधायक और नौ राज्यों में विधायक दो अंकों में भी नहीं
पीएम मोदी नौ साल में ही कांग्रेस-मुक्त भारत के नारे को चरितार्थ करके दिखा दिया है। आज की बात करें तो कांग्रेस देश के सिर्फ तीन राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में अपने बूते पर सरकार में है। तीन राज्यों- बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में गठबंधन सरकार में कांग्रेस बची है। सत्ता में ही नहीं विपक्ष में भी कांग्रेस की भूमिका सिमट रही है। जहां मोदी-इरा से पहले वह 16 राज्यों में मुख्य विपक्षी दल थी। अब सिर्फ नौ राज्यों में रह गई है। वे राज्य हैं- असम, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और पंजाब। कांग्रेस के हालात इतने बदतर हो गए हैं कि नौ राज्यों में तो उसके 10 से कम विधायक रह गए हैं। ये राज्य हैं- अरुणाचल, गोवा, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, ओडिशा, तेलंगाना, यूपी, पुडुचेरी। इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति क्या होगी कि पांच राज्यों-आंध्र प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में कांग्रेस का पूरी तरह सूपड़ासाफ हो चुका है। इन राज्यों में उसके जीरो विधायक हैं।
मोदी का जादू: कांग्रेस ने 331 विधायक गंवाए तो बीजेपी ने 474 बढ़ाए
2014 में नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से पहले देश की तीस विधानसभाएं में कुल 4120 विधायक थे। इनमें से कांग्रेस विधायक 989 थे। यानि पार्टी की 24% हिस्सेदारी थी। अब नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव के बाद देश में कुल 4033 विधायक हैं। बता दें कि जम्मू-कश्मीर को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से 2023 में विधायकों की संख्या घटी है। अब कुल विधायकों में से कांग्रेस के पास 658 विधायक हैं। यानि हिस्सेदारी घटकर 16% पर ही आ गई है। दूसरी ओर 2014 में नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से ठीक पहले बीजेपी के 947 विधायक थे। कुल विधायकों में पार्टी की हिस्सेदारी 23% थी। आज की बात करें तो नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव के बाद बीजेपी विधायकों की संख्या तेज गति से बढ़कर 1421 पर पहुंच गई है। कुल विधायकों में बीजेपी की हिस्सेदारी एक तिहाई से ज्यादा यानि 35% हो गई है।
लोकसभा में हालत और पतली, कांग्रेस के 10 फीसदी भी सांसद नहीं बचे
विधानसभाओं में ही नहीं, पीएम मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद लोकसभा में भी कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है। कांग्रेस के न सिर्फ सांसद घटे हैं, बल्कि उसे पसंद करने वाले मतदाता भी तेजी से गिरे हैं। जहां 1952 में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 45 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं पिछले दो लोकसभा चुनावों में उसका मत प्रतिशत बुरी तरह से घटकर 19 फीसदी के करीब ही रह गया है। यानि पीएम मोदी का कांग्रेस-मुक्त भारत का विजन बहुत तेजी से काम कर रहा है। यही हालात रहे तो अगले साल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सिमट जाएगी।
वर्ष     कुल सीट कांग्रेस जीती वोट शेयर लाभ हानि
1952   401     364     45.0%      —
1957   403     371     47.8%    +2.8%
1962   494     361     44.7%    -3.1%
1967   520     283     40.8%    -3.9%
1971   518     362     43.7%    +2.9%
1977   543     154     34.5%    -9.2%
1980   543     353     42.7%    +8.2%
1984   543     415     48.1%    +5.9%
1989   543     197     39.5%     -8.6%
1991   543     244     36.4%     -3.1%
1996   543     140     28.80      -7.6%
1998   543     141     25.8%     -3%
1999   543     114     28.3%     +2.5%
2004   543     145     26.5%     -1.9%
2009   543     206     28.6%     +2.1%
2014   543       44     19.5%     -9.1%
2019   543       52     19.7%     +0.2%
कांग्रेस-मुक्ति की दोतरफा मार: डूबते जहाज को देख कई नेताओं ने दामन छोड़ा
कांग्रेस को दरअसल दो तरफा मार झेलनी पड़ रही है। पीएम मोदी के दूरदृष्टा विजन के चलते वह जनता के बीच अलोकप्रिय तो होती ही जा रही है। इसके साथ ही जैसे जहाज डूबने से पहले चूहे सबसे पहले भागते हैं, वैसे ही कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी का दयनीय भविष्य देखते हुए लगातार उसे छोड़ते जा रहे हैं। पार्टी में यूं तो असंतोष और बगावत का सिलसिला काफी पुराना है, लेकिन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला बहुत तेज हुआ है। इसका कारण कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ का कमजोर होना, गांधी परिवार के समझ से परे फैसले और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी और अनादर करना है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद न सिर्फ बीजेपी का विस्तार हुआ है, बल्कि कांग्रेस के कई बड़े नेता हाथ का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं। हालात इतने बदतर हैं कि पिछले नौ साल में आठ पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई बड़े नेता ही कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं।
दरअसल, कांग्रेस आलाकमान तिकड़ी की मनमानी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री ही नहीं, कई और कद्दावर नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। पार्टी का जहाज सियासत के समंदर में हिचकोले खा रहा है। कांग्रेस का कुनबा लगातार बिखरता जा रहा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यशैली से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की लंबी कतार है। कांग्रेस से एक के बाद एक कई युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने या आलाकमान से नाराजगी से यह सवाल उठना जायज है कि क्या वाकई बिना जनाधार वाले नेता तानाशाही कर रहे हैं।
घुटन-उपेक्षा महसूस कर रहे कई नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी के अंदर युवा नेता घुटन और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि पार्टी उनकी योग्यता और क्षमता के मुताबिक भूमिका नहीं दे रही है। हाइकमान की हिटलरशाही और मनमर्जियों से पार्टी में सियासी घमासान मचा हुआ है। इसलिए नेता अब अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद कैप्टन अमरिंदर सिंह और आरपीएन सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया। राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शुमार किए जाने वाले पांच युवा नेताओं में से तीन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। जब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब पांच नेताओं का अक्सर जिक्र होता था। ये पांच नेता हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा। हालांकि भले ही सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा अभी कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं, लेकिन कुछ चीजें बड़े घटनाक्रम की तरफ भी इशारा करती हैं। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा बीते कुछ साल से लगातार कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाते हुए चिंता जाहिर करते रहे हैं और कुछ मौकों पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ भी कर चुके हैं।
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