मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा ‘खुला’ : इस्लाम क्या कहता है? : मद्रास हाईकोर्ट ने कहा : किसी निजी शरीयत परिषद के प्रमाण-पत्र की मान्यता नहीं
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मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं (Muslim Women) के ‘खुला’ को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएँ ‘खुला’ के तहत अपने शौहर से तलाक लेने की अधिकारी हैं। हालाँकि, कोर्ट ने इसके लिए कुछ प्रावधान बताए हैं।मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ‘खुला’ के तहत तलाक लेने के लिए मुस्लिम महिलाओं को फैमिली कोर्ट जाना होगा। किसी निजी शरीयत परिषद को इस संबंध में प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे प्रमाण-पत्र की कोई मान्यता नहीं है।
क्या है मामला
एक मुस्लिम महिला अपने पति अब्दुल के साथ नहीं रहना चाहती थी। उसने ‘खुला’ के जरिए अपने पति से तलाक ले लिया। इसके लिए 2017 में वह तमिलनाडु के तौहीद जमात की शरीयत परिषद के शरण में गई और वहाँ से इस बाबत प्रमाण पत्र जारी करवा लिया।
महिला के पति ने इस संबंध में साल 2019 में न्यायालय में याचिका देकर इस प्रमाण-पत्र को रद्द करने का आग्रह किया। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस सी सरवनन ने शरीयत परिषद की ओर से जारी प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि महिला को खुला के तहत तलाक लेने के लिए तमिलनाडु कानूनी सेवा प्राधिकरण या फैमिली कोर्ट जाना होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि शरीयत परिषद जैसी संस्थाएँ न तो अदालत हैं और न ही मध्यस्थ। ऐसे में इन्हें प्रमाण पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
मुस्लिम महिलाओं को तलाक का अधिकार
इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं को भी अपने शौहर से तलाक लेने का प्रावधान है। यदि मुस्लिम महिला अपने पति से खुश नहीं है या किसी अन्य वजह से उसके साथ रहना नहीं चाहती है तो वह निकाह को तोड़ सकती है। मुस्लिम महिला तलाक-ए-ताफवीज, मुबारत, ‘खुला’, लिएन या फिर मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 के तहत अपने शौहर से अलग हो सकती है।
मुस्लिम महिला तलाक-ए-ताफवीज़ के तहत तलाक ले सकती है। ताफवीज एक ऐसा अनुबंध है, जिसमें मुस्लिम पुरुष अनुबंध के जरिए निकाह को खत्म करने का अपना अधिकार महिला को सौंपता है। बफातन बनाम शेख मेमूना बीवी AIR (1995) कोलकाता (304) और महराम अली बनाम आयशा खातून इसका प्रमुख उदाहरण है।
मुबारत के जरिए भी शौहर-बीवी अलग हो सकते हैं। मुबारत का शाब्दिक अर्थ होता है पारस्परिक छुटकारा। मुबारत में अलग होने का प्रस्ताव चाहे पत्नी की ओर से आए या पति की ओर से, उसकी स्वीकृति से तलाक हो जाता है। इसके बाद पत्नी को इद्दत का पालन करना अनिवार्य हो जाता है।
लिएन वह प्रक्रिया है, जब कोई मुस्लिम शौहर अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है, लेकिन वह आरोप झूठा हो जाता है तो बीवी को तलाक लेने का अधिकार मिल जाता है।
मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के तहत भी मुस्लिम महिला को तलाक लेने का अधिकार है। इस अधिनियम की धारा 2 के तहत मुस्लिम महिलाओं को शौहर की अनुपस्थिति (चार साल से अधिक), बीवी की भरण पोषण करने में असफलता (शौहर अगर 2 साल से उसका भरण-पोषण नहीं दे रहा है), शौहर को कारावास (कम से कम 7 साल), शौहर द्वारा वैवाहिक दायित्व पालन में असफलता (कम से कम 2 साल से), शौहर की नपुंसकता, शौहर को पागलपन या कुष्ठ-एड्स जैसे संक्रामक रोग होना, बीवी द्वारा निकाह अस्वीकार करना और शौहर की क्रूरता की स्थिति में तलाक लेने का अधिकार है।
क्या है खुला?
खुला के तहत अगर बीवी अपने शौहर से अलग होती है तो उसे अपने शौहर से उसकी जायदाद लौटानी पड़ेगी। पर यह जरूरी है कि दोनों इसके लिए रजामंद हों। उल्लेखनीय है कि खुला की पहल केवल बीवी ही कर सकती है। कुरान और हदीस मे इसका जिक्र है।
वहीं, भारत में मुस्लिमों के बीच मान्य पुस्तक फतवा-ए-आलमगीरी में कहा गया है कि जब निकाह के बाद शौहर-बीवी इस बात पर राज़ी हैं कि अब वे साथ नहीं रह सकते तो तो पत्नी कुछ संपत्ति पति को वापस करके स्वयं को उसके बंधन से मुक्त कर सकती है। जायदाद में बीवी अपनी मेहर की रकम छोड़ सकती है या फिर कोई अन्य रकम/संपत्ति दे सकती है।
खुला को लेकर मुस्लिमों की आपत्ति
‘खुला’ को लेकर हनफी सहित कुछ तबके के उलेमाओं का कहना है कि इसके तहत मुस्लिम महिला तभी तलाक ले सकती है, जब उसका शौहर तैयार हो। अगर शौहर मना कर दे तो महिला के पास मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के प्रावधानों के तहत अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साल 2021 में ‘खुला’ के संबंध में कहा था कि इस प्रक्रिया में पति की स्वीकृति एक शर्त है। वहीं, अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि कुरान एक मुस्लिम पत्नी को एक प्रक्रिया निर्धारित किए बिना उसकी निकाह को रद्द करने के लिए ‘खुला’ का अधिकार देता है।