राजनीतिराज्य

मध्यांतर : कांग्रेस की बिसात पर भाजपा में हलचल!

SG

मध्य प्रदेश कांग्रेस समिति ने भोपाल में सोमवार को राजभवन का घेराव कर जता दिया। उसकी सत्तारूढ़ भाजपा से टकराने की शक्ति क्षीण नहीं हुई है। यह प्रदर्शन इतना जबरदस्त था कि प्रशासन ने आक्रामक हुए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पीछे धकेलने के लिए पानी की तेज बौछारें चलार्इं और पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे कांग्रेसियों पर लाठियां भांजी। इसे लेकर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट किया कि शिवराज सरकार तानाशाही रवैए पर उतर आई है, उसने शांति से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर वॉटर केनन चलाया। लाठियां मारीं और सौ से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, परंतु इस सबसे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला दोगुना हो गया है। लोकतंत्र की पीठ में खंजर घोंपनेवाली भारतीय जनता पार्टी कान खोलकर सुन ले कि छह महीने बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी। खरीद-फरोख्त की सरकार की विदाई होगी और जनता का राज आएगा। जय कांग्रेस, जय मध्य प्रदेश। इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस को इस समय विधानसभा में होना चाहिए था, क्योंकि विधानसभा चल रही है। उसका यह प्रदर्शन खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को चरितार्थ करनेवाला है।
विधानसभा चुनाव के लगभग छह महीने शेष बचे हैं। ऐसे में प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों के नेताओं ने जुबानी जंग तेज कर दी है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ जहां आक्रामक दिखाई दे रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शालीनता का आवरण ओढ़ लिया है। हाल ही में टीकमगढ़ में पत्रकारों से बातचीत में सिंधिया के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तीखा हमला बोला और उनके राजनैतिक महत्व को सिरे से नकारते हुए उनकी लोकप्रियता पर सवाल खड़ा कर दिया था। कमलनाथ ने कहा था कि सिंधिया वाकई यदि इतनी बड़ी तोप थे तो फिर भाजपा ग्वालियर-मुरैना में महापौर का चुनाव क्यों हारी? हमें सिंधिया जैसे नेताओं की जरूरत ही नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल हुए निकाय चुनाव में सिंधिया के प्रचार के बावजूद ग्वालियर और मुरैना दोनों ही जगह भाजपा चुनाव हार गई थी। ग्वालियर-चंबल संभाग में यही दोनों नगर निगम हैं। सिंधिया कमलनाथ के इस हमले पर बचते दिखाई दिए। उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि अच्छा हुआ आपकी तोप की परिभाषा में मैं फिट नहीं हुआ, क्योंकि १५ महीने की सरकार में तबादला उद्योग, वादाखिलाफी, भ्रष्टाचार और माफिया राज उत्कर्ष पर पहुंच गया था।
भाजपा की इस समय पूरे प्रदेश में बड़ी एवं भव्य रैलियां और आमसभाएं हो रही हैं। लेकिन जमीन पर जनता खुश दिखाई नहीं दे रही है। श्योपुर में चीता और शिवपुरी में बाघ लाने का भी विशेष प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि इन योजनाओं से नए रोजगार पैदा होने की संभावनाओं से कहीं ज्यादा स्थानीय ग्रामीणों में विस्थापन की आशंकाएं उत्पन्न हो रही हैं क्योंकि इन उद्यानों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए नए राजस्व ग्रामों और कृषि भूमियों को अधिसूचित करने की औपचारिकताएं शुरू कर दी गई है। प्रदेश और केंद्र सरकार से इन ग्रामों को उद्यानों में शामिल करने की स्वीकृतियां मिल जाती हैं तो कई ग्रामीणों को विस्थापन का दंश झेलना होगा। नतीजतन, इन इलाकों के ग्रामीण सत्ता परिवर्तन का मन बना रहे हैं। ग्वालियर-चंबल-अंचल में मानसिकता बदलने के संकेत सबसे ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। इस क्षेत्र की ३४ विधानसभा सीटों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव जताकर भाजपा अधिकांश सीटों पर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है।
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कांग्रेस की जीत के लिए जमीनी बिसात बिछाने की रूपरेखा तैयार कर ली है। इसी सिलसिले में सिंह १७ मार्च को शिवपुरी आ रहे हैं। यहां विधानसभा की पांच सीटें हैं। इनमें से पिछोर पर कांग्रेस विधायक केपी सिंह लगातार छह मर्तबा से जीतते चले आ रहे हैं। आज भी भाजपा के पास उनका सामना करने लायक कोई उम्मीदवार नहीं है। भाजपा ने अब तक पिछोर में जितने भी प्रयोग किए हैं, वे केपी सिंह की रणनीति के आगे परिणाम में शून्य रहे हैं। इसीलिए केपी भाजपा शासन काल में मंत्री रहे लक्ष्मीनारायण गुप्ता को भी पराजित कर चुके हैं। लोधियों का इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट है। इसके बावजूद केपी सिंह भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लोधी को धूल चटा चुके हैं। जिन प्रीतम लोधी की आमद भाजपा में होने की संभावना हैं, उन्हें केपी दो बार मात दे चुके हैं। इस बार यदि प्रीतम भाजपा के उम्मीदवार होते हैं तो केपी को उन्हें हराना और आसान होगा। क्योंकि प्रीतम ब्राह्मण समुदाय का विरोध करके ब्राह्मण मतदाताओं समेत अन्य सवर्ण समाज के मतदाताओं को भी नाराज कर चुके हैं। इस वोट बैंक की भरपाई भाजपा के लिए संभव ही नहीं है। केपी को एक तरह से वॉकओवर मिल गया है। जिले की करैरा विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस के प्रागीलाल जाटव विधायक हैं। दिग्विजय सिंह शिवपुरी आकर मंडलम कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करेंगे। इसके बाद एक-एक कर वे इस इलाके की सभी ३४ विधानसभा सीटों पर संवाद का यह क्रम जारी रखेंगे। शिवपुरी में कांग्रेस लगातार चार चुनाव भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया से हार चुकी है। दिग्विजय सिंह यह पड़ताल करेंगे कि किन कारणों से लगातार चार बार हार का मुख देखना पड़ा है और वैâसे इन परिणामों को कांग्रेस अपने पक्ष में कर सकती है। १९९८ से यशोधरा राजे का यहां वर्चस्व कायम है। दिग्विजय सिंह लगातार हारी हुई सीटों को जीतने की रणनीति बनाने में लगे हैं। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस ने गांधीवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए पूरे प्रदेश में हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के माध्यम से घर-घर जाकर लोगों से संवाद भी स्थापित करना शुरू कर दिया है। यह अभियान मतदाताओं पर खासा असर डाल रहा है।
सिंधिया के कांग्रेस से बाहर जाने के बाद ३४ विधानसभा सीट वाले ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया कोई बहुत बड़ा गुल खिला पाएंगे ऐसा लगता नहीं है। इसीलिए कांग्रेस जहां भी सिंधिया कमजोर दिखते है, वहां चोट करने से नहीं चूक रही है। कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा सिंधिया की स्थितियों से जुड़े उन बिंदुओं को गहरा कटाक्ष करते हुए सामने ला रहे हैं, जिनसे सिंधिया का क्षेत्र में असर क्षीण नजर आए। इस क्रम में दिल्ली में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई थी, उसमें सिंधिया सबसे अंतिम पंक्ति में बैठे नजर आ रहे थे। इससे पता चलता है कि भाजपा में सिंधिया की क्या हैसियत है। केके मिश्रा ने इस चित्र को साझा करते हुए एक और तस्वीर लगाई है, जिसमें सिंधिया कांग्रेस में मजबूत हैसियत वाले नेता दिखाई दे रहे हैं। केके मिश्रा ने इन चित्रों को वैâप्शन दिया है, टाइगर तब और अब। मिश्रा ने एक शेर का उदाहरण देते हुए लिखा कि उसूलों पर जहां आंच आए, वहां टकराना जरूरी है। जिंदा हो तो फिर, जिंदा नजर आना भी जरूरी है।’ यह शेर सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने के बाद अपने एक भाषण में बोला था। किंतु अब उनकी बोलती बंद है।
दरअसल, कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि २०१८ के चुनाव में उसे जिस तरीके से जीत मिली थी, उसी तरीके को फिर से अमल में लाया जाए। वर्ष २०१८ में कांग्रेस ने घोषणा-पत्र की बजाय वचन-पत्र जारी किया था। इसका आशय था कि कांग्रेस घोषणा नहीं कर रही है, बल्कि विकास-कार्य करने का लिखित वचन दे रही है। हमारे यहां ‘प्राण जाएं पर वचन न जाए’ की कहावत भी प्रचलन में है। इस वचन-पत्र की तैयारी में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा जुटे हैं। इस वचन-पत्र के साथ कांग्रेस आरोप-पत्र भी ला रही है। इस पत्र के जरिए सत्तारूढ़ भाजपा को घेरने का काम कांग्रेस करेगी। वर्मा ही इस आरोप-पत्र को तैयार करने में लगे है। वर्मा का कहना है कि जितना वचन-पत्र जरूरी है, उतना ही आरोप-पत्र भी जरूरी है। जहां वचन-पत्र में सरकार बनने पर कांग्रेस क्या-क्या काम करेगी, उन्हें रेखांकित किया जाएगा, वहीं आरोप-पत्र में भाजपा की वादाखिलाफी उजागर करेंगे। भाजपा सरकार ने जो सपने जनता, नौजवानों और किसानों को दिखाए थे, वे कैसे टूटे, यह खुलासा आरोप-पत्र में किया जाएगा।