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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लोकसभा में और गुरुवार को राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब दिया। अर्थात भाषण ठोका। लोकसभा में बोलने के दौरान जिस तरह से उन्होंने अडानी के ‘अ’ का भी उच्चारण नहीं किया, उसी तरह से उन्होंने राज्यसभा में भी किया। कांग्रेस पार्टी, गांधी-नेहरू घराना, पहले की कांग्रेसी सरकारों की आलोचना के इर्द-गिर्द ही उनका भाषण घूमता रहा। एक जगह ‘कीचड़’ और ‘कमल’ का उन्होंने जिक्र किया। ‘कीचड़ उनके पास था मेरे पास गुलाल! जो भी जिसके पास था उसने दिया उछाल’, ऐसा प्रधानमंत्री ने बड़े ही शायराना अंदाज में कहा। ‘आप जितना अधिक कीचड़ उछालोगे कमल उतना ही अधिक खिलेगा’, ऐसा भी उन्होंने कहा। इस पर सत्ताधारी सांसदों ने बेंच थपथपाई। देशभर में भक्त मंडली भी ‘वाह! मोदी’ कहकर खुश हुई होगी, परंतु इस ‘यमक’ के परे के ‘गमक’ का क्या? कीचड़ और कमल यह यमक को जोड़ने के लिए, बोलने के लिए, तालियां हासिल करने के लिए ठीक है। लेकिन आपने अपने भाषण में गांधी-नेहरू घराना, कांग्रेस पार्टी और पहले की कांग्रेसी सरकारों के संबंध में जो कहा वह क्या था? आपके पास गुलाल था और आपने उसे उड़ाया, ऐसी बड़ाई आपने मारी ये ठीक है, परंतु आपके पास भी कीचड़ ही था और वही आपने उछाला। कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में विदेशी यूनिवर्सिटी में हुए किसी ‘शोध’ का आपके द्वारा किया गया उल्लेख किस प्रकार के ‘गुलाल’ का उदाहरण था? एक तरफ हिंदुस्थान का निर्माण कई पीढ़ियों के श्रम और पसीने से हुआ, ऐसा कहना और दूसरी तरफ पहले की सरकारों ने देश को बर्बाद किया, ऐसा कीचड़ फेंकना। पंडित नेहरू महान थे, ऐसा भी कहना और नेहरू-गांधी घराने के नाम पर उंगलियां भी चटकाना। अनुच्छेद-३७० को लेकर उन्हें गुनहगारों के कठघरे में खड़ा करना। उस पर अनुच्छेद-३७० के लाभार्थी कौन ये कहने के लिए मुझे मजबूर न करें, ऐसी धमकी भी देना। यह धमकी मतलब प्रधानमंत्री द्वारा उछाला गया ‘गुलाल’ था, ऐसा यदि सत्ताधारी समूह को लगता होगा तो सवाल ही खत्म। शासक और विरोधियों के बीच दावे-प्रतिदावे, दांव-प्रतिदांव, आलोचना-प्रत्युत्तर ये लोकतांत्रिक व्यवस्था के हिस्से हैं इसलिए शाब्दिक युद्ध में कुछ भी गलत नहीं है। इसके पहले के दौर में भी सत्ताधारी-विपक्ष के बीच तीखे वाकयुद्ध होते ही रहे हैं, परंतु उसमें भी अंतिम हद का भान सभी रखते थे। परस्पर आरोपों का ‘कीचड़’ उछाला गया, तब भी मौका पड़ने पर एक-दूसरे पर सराहना का गुलाल भी उछाला जाता था। अपने खिलाफ कटु टिप्पणी करनेवालों के भाषण पंडित नेहरू सभागृह में आकर सुनते थे। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कांग्रेस और नेहरू के आलोचक ही थे। एक बार पं. नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की, तब वाजपेयी ने नेहरू से कहा कि ‘आप शीर्षासन करते हैं यह मुझे पता है। इस पर मुझे एतराज भी नहीं है, परंतु कृपा करके मेरी पार्टी की छवि उलटकर न देखें।’ अटल जी के इस जवाब पर नेहरू भी खिलखिलाकर हंसे थे। नेहरू की आलोचना का अटल जी का जवाब टक्कर वाला था, परंतु उसमें कहीं भी ‘कीचड़ की बदबू’ नहीं थी। अत्यंत तीक्ष्ण मतभिन्नता और विचार भिन्नता होगी, तब भी कीचड़ से सनी आलोचना कभी-कभार ही होती थी। अब क्या तस्वीर है? बीते सात-आठ वर्षों में तो राजनीतिक विरोधी मतलब शत्रु, सरकार के आलोचक मतलब देशद्रोही, ऐसा एक ‘नैरेटिव’ ही तैयार कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आज विरोधियों की आलोचना मतलब ‘कीचड़’ लगती है। लेकिन बीते आठ वर्षों में उन्होंने और उनकी पार्टी ने विरोधियों पर कौन-सा ‘गुलाल’ उछाला? सिर्फ कीचड़ फेंक ही की। २०१४ के लोकसभा चुनाव से पूर्व राहुल गांधी के प्रति भाजपा समर्थकों द्वारा किए गए उपहास, अपमान को कीचड़ नहीं तो और क्या कहा जाए? गुरुवार को राज्यसभा के भाषण में भी प्रधानमंत्री मोदी ने ‘नेहरू यदि महान थे तो इनके उत्तराधिकारियों द्वारा नेहरू सरनेम का इस्तेमाल करने में शर्म वैâसी?’ ऐसी टिप्पणी की। वह ‘गुलाल’ था, ऐसा प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी का कहना है क्या? अडानी प्रकरण पर मौन आपको गुलाल लगता होगा तो क्या कहा जाए? केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए राजनीतिक विरोधियों का जो दमन बीते सात-साठ वर्षों में हो रहा है, अन्य पार्टियों को खत्म करने का जो राक्षसी धंधा किया जा रहा है, वह आपके हाथ में कीचड़ होने का ही प्रमाण है। अब आप पर कीचड़ फेंक शुरू हुई इसलिए आपने ‘कीचड़’, ‘गुलाल’ और ‘कमल’ इन यमकों को मिलाया, परंतु आपके भी पांव ‘कीचड़’ वाले ही हैं, इस ‘गमक’ को न भूलें। आप भूल भी जाएंगे, तब भी जनता समय-समय पर आपको इसकी याद दिलाएगी ही!