स्पेशल

कविता

 

गुनगुनाती रही
……………….

नयन झरते रहे , रुत
सताती रही ,
याद उनकी खयालों में
आती रही !

दिल मचलता रहा बात
होती रही ,
ये शमा रात भर
झिलमिलाती रही ।

खुद उदासी से अपनी
तड़पती रही ,
दर्द अपना जहाँ को
सुनाती रही !

ये सितम आपका
और खामोशियाँ ,
मैं समंदर में दिल के
बसाती रही।

रोज साँसों में खुद की
बसाकर सदा ,
जिंदगी को गले से
लगाती रही !

इस तरह से सता के
कहॉं चल दिये ?
अंजुमन में तुझे मैं
बुलाती रही !

वो यहीं पास हैं , आ
रहे हैं सनम ,
बोलकर झूठ खुद को
भुलाती रही !

रूह बन हसरतें सब
बताती मुझे ,
बन ग़ज़ल और खुद
गुनगुनाती रही !

पास आते अगर आप
खामोश भी ,
तो नजर से नजर फिर
मिलाती रही !

पास आजा सनम दूर
जाओ नहीं ,
बोलकर दूरियाँ मैं
मिटाती रही !

प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी