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केंद्र ने सभी राज्यों को फोरलेन प्रभावितों को भू अधिग्रहण के मुआवजे पर ढाई फीसदी से ज्यादा प्रशासनिक खर्च नहीं करने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रदेश में इसे नौ प्रतिशत के हिसाब से खर्च किया जाता रहा।
इसका खामियाजा आज तक फोरलेन प्रभावित भुगत रहे हैं, जिन्हें बजट की कमी बताकर आधा-अधूरा मुआवजा ही मिल रहा है। इस गड़बड़झाले को खुद केंद्रीय सड़क परिवहन एवं उच्च मार्ग मंत्रालय सामने लाया, जिसे फोरलेन प्रभावितों ने उजागर किया है। इस पर अधिकारियों को भी जवाब देना मुश्किल हो गया है।
पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की संस्तुति के बाद केंद्र ने सभी राज्यों को फोरलेन प्रभावितों को भू अधिग्रहण के मुआवजे पर ढाई फीसदी से ज्यादा प्रशासनिक खर्च नहीं करने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रदेश में इसे नौ प्रतिशत के हिसाब से खर्च किया जाता रहा। इसमें सात प्रतिशत स्थापना व्यय और दो फीसदी कंटीजेंसी के रूप में व्यय किए गए।
वर्ष 2014-15 में हिमाचल प्रदेश को 12.99 करोड़, 2015-16 में 920.31 करोड़ और 2016-17 में 1272.18 करोड़ रुपये हिमाचल को मिले थे। हिमाचल प्रदेश भूमि अधिग्रहण प्रभावित मंच के अध्यक्ष बीआर कौंडल ने बताया कि प्रदेश में फोरलेन प्रभावितों को फैक्टर-एक के अनुसार ही मुआवजा देने की बात हुई है, जबकि ये फैक्टर-दो के अनुसार मिलना है।
अन्य राज्यों ने भी ऐसा ही किया
हिमाचल प्रदेश के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने भी ऐसा ही गड़बड़झाला किया है।
एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे अधिकारी
इस बारे में जब प्रधान सचिव राजस्व से बात की तो उन्होंने कहा कि यह मामला लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) से संबंधित है। उनसे ही बात करें। जब हिमाचल प्रदेश पीडब्ल्यूडी (नेशनल हाईवे) के मुख्य अभियंता पीके शर्मा से पूछा तो उन्होंने कहा कि यह मामला नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) से संबंधित है। उनके अधिकारियों से बात कर लें। जब एनएचएआई शिमला के क्षेत्रीय अधिकारी अब्दुल बेसिल से बात की तो उन्होंने कहा कि हम ढाई प्रतिशत ही दे रहे हैं। इस बारे में राज्य सरकार के राजस्व विभाग से ही पता करें कि क्या मामला है। इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है।