राजस्थान : इंदिरा गांधी शहरी रोजगार योजना बुरी तरह फ्लॉप, शहरी बेरोजगारी दिसंबर में 4% प्रतिशत और बढ़ी
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राजस्थान में कथित ऐतिहासिक पहल के रूप में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोजगार योजना ऐतिहासिक रूप से फेल हो गई है। इस सितंबर में शुरू की इस योजना में गहलोत सरकार ने जोर-शोर से दावा किया कि इससे शहरी क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलेगा और बेरोजगारी घटेगी। लेकिन तीन माह के बाद भी बेरोजगारी घटने के बजाए राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी और बढ़ गई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में बेरोजगारी दर में नवंबर के मुकाबले 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार पेपर लीक के मामले वैसे ही बेरोजगारों के जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं। गहलोत सरकार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में आने से पहले और जाने के बाद बेरोजगारों को नौकरी देने, कानून व्यवस्था बनाने के बजाए अपने सियासी संग्राम में ही बिजी है।
रोजगार गारंटी की पोल खुली, राज्य के शहरों में बेरोजगारी दर 4 प्रतिशत बढ़ी
राजस्थान में सितंबर में इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना लागू करने के दौरान बड़े-बड़े दावे किए गए थे। सरकार का दावा था कि बेरोजगारों को काम देने वाली यह देश की पहली सबसे बड़ी शहरी रोजगार गारंटी योजना है, जो राजस्थान में शुरू हुई है। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसकी शुरुआत राजधानी जयपुर से की थी। तब मुख्यमंत्री ने दावा किया कि गांवों की तर्ज पर शहरों में भी हर हाथ को रोजगार मुहैया कराया जाएगा। इसे ऐतिहासिक पहल बताते हुए गहलोत ने कहा कि अब राज्य सरकार योजना के तहत शहरों के हर जरूरतमंद परिवार को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराएगी। लेकिन सौ दिन से पहले ही सरकार की पोल खुल गई है। शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी नवंबर में भी बढ़ी थी और दिसंबर में तो शहरी बेरोजगारी आशातीत बढ़ोत्तरी हुई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के ताजा आंकड़ों के अनुसार दिसंबर में प्रदेश में बेरोजगारी दर बढ़कर 28.5 प्रतिशत हो गई है।
सितंबर-दिसंबर के त्योहारी सीजन के बावजूद गहलोत सरकार नहीं दे पाई बेरोजगारों को काम
इससे साफ जाहिर है कि शहरी क्षेत्र के युवाओं और बेरोजगारों को काम देने में गहलोत सरकार विफल साबित हो रही है। सीआईईएल एचआर सर्विसेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) आदित्य नारायण मिश्रा के मुताबिक दिसंबर में नए रोजगार के कोई उल्लेखनीय अवसर नहीं बने। उन्होंने कहा, ‘‘सितंबर-दिसंबर के दौरान त्योहारी सीजन की वजह से उपभोक्ता सामान, वाहन और वित्तीय सेवा क्षेत्र में रोजगार के काफी अवसर थे। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारों को नवंबर-दिसंबर में इसका कोई फायदा नहीं हो पाया। यहां तक कि निर्माण, इंजीनियरिंग और विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाए हैं।
दरअसल, राजस्थान के बेरोजगारी दर में देशभर में दूसरे स्थान पर रहने की बड़ी वजह कांग्रेस के भीतर सियासी संग्राम भी है। सरकार सारे काम-काज को छोड़कर पहले कुर्सी बचाओ अभियान में लगी है। गहलोत वर्सेज पायलट की राजनीति खुलेआम काफी समय से जारी है। लेकिन कांग्रेस आलाकमान किसी पर कोई कार्रवाई न करके हाथ पर हाथ धरे बैठा है। इसका खामियाजा प्रदेश की जनता, युवाओं और बेरोजगारों को भुगतना पड़ रहा है। बाकी कसर प्रदेश में लगातार हो रहे पेपर लीक के मामलों ने पूरी कर दी है। अव्वल को बेरोजगारों के लिए भर्तियां ही बड़ी मुश्किल से निकल रही हैं। बेरोजगार बड़ी उम्मीदों और तैयारी के साथ प्रतियोगी परीक्षाएं देते हैं, लेकिन सरकार सिस्टम में इस कदर जंग लग चुकी है कि बार-बार परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं और सरकार परीक्षा ही रद्द कर देती है। इसके चलते बेरोजगार युवाओं के नौकरी के सपने बार-बार टूट रहे हैं।
वर्तमान में राजस्थान में कुल 65 लाख से अधिक बेरोजगार हैं। इनमें से 21.67 लाख बेरोजगार ग्रेजुएट हैं, जो देशभर में सबसे ज्यादा हैं। बिहार में 38.84 लाख और हरियाणा में 24.80 लाख बेरोजगार हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हरियाणा में बेरोजगारी दर राजस्थान से ज्यादा थी, लेकिन इस बीच खट्टर सरकार द्वारा किए गए उपायों से ग्रेजुएट बेरोजगारी दर 33.60 प्रतिशत रह गई है. जो राजस्थान में 53.4 प्रतिशत है। भररत में आबादी के लिहाज से सातवां सबसे बड़ा राज्य राजस्थान बेरोजगारी दर में दूसरे नंबर पर है। राजस्थान में बेरोजगारी का आलम यह है कि प्रदेश में ग्रेजुएट किए हुए हर दूसरे शख्स के पास काम नहीं है। राजस्थान में 65 लाख, बिहार में 38.84 लाख, झारखंड में 18.19 लाख, हरियाणा में 24.80 लाख, पंजाब में 8.10 लाख, मध्य प्रदेश में 6.27 लाख व गुजरात में 4.92 लाख बेरोजगार हैं।
राजस्थान में बेरोजगारी की स्थिति चौंकाने वाली है। कांग्रेस सरकार हर साल बजट में भर्तियों की घोषणा तो कर देती है, लेकिन उनके क्रियान्वयन को लेकर कोई योजना नहीं रहती। भर्ती कराने वाली एजेंसियों के पास भर्ती कैलेंडर तक नहीं होता। इसके अलावा पेपर लीक, नकल और फर्जी अभ्यर्थियों के चयन के कारण भर्तियों की विश्वसनीयता भी खत्म होती जा रही है। हाल में 5 बार स्थगित करने के बाद शिक्षक पात्रता परीक्षा रीट-2021 का आयोजन हुआ तो इसमें भी पेपर लीक हो गया। रिजल्ट में भी गड़बड़ी के बात सामने आई हुई।
राजस्थान में बार-बार पेपर लीक हो रहे हैं और सरकार इसे रोक ही नहीं पा रही है। ताजा मामला द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा के पेपर लीक होने का है। हैरानी की बात यह है कि पेपर माफिया के हौंसले इतने बुलंद हैं कि परीक्षार्थी विशेषज्ञों की मदद से एक बस में आराम से लीक पेपर को हल कर रहे थे, यही बक उन्हें परीक्षा केंद्रों तक ले जा रही थी। पेपर लीक होने की सूचना भी बस में सवार एक यात्री ने पुलिस को दी। तब जाकर पुलिस एक्शन में आई। राजस्थान पुलिस की इस कार्रवाई के साथ ही परीक्षा को स्थगित कर दिया गया। इससे पहले भी पेपर लीक होने के चलते कई परीक्षाएं स्थगित होने से बेरोजगारों के नौकरी के सपने धूमिल हो रहे हैं। इससे पहले रीट लेवल-2 की परीक्षा तो रद्द की करनी पड़ी। लेवल-1 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया अब चल रही है। वहीं लेवल-2 के पुराने पदों को मिलाकर रीट-2022 का आयोजन होगा। आरएएस-2021 में भी यही स्थिति हुई। प्री पर विवाद हुआ तो मेन्स से दो दिन पहले इसे भी स्थगित कर दिया गया। कांस्टेबल भर्ती में 18 लाख, वीडीओ भर्ती में 14 लाख तो वनपाल-वनरक्षक भर्ती तक में 22 लाख से अधिक आवेदन आए हैं। कोरोनाकाल में रोजगार छिने तो वे अब तक पटरी पर नहीं आ पाए हैं।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस की सरकारों में चुनावी वादों को याद रखने की परिपाटी ही नहीं है। कांग्रेस के जिन वादों पर भरोसा करके राजस्थान की जनता ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपी थी, वह उससे बेरोजगारों कि किस्मत का ताला खोलना ही भूल गई है। अपनी अंदरूनी लड़ाई में मस्त गहलोत सरकार का बेरोजगारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं है। हालात यह हैं कि राजस्थान में दिसंबर-17 में स्नातक बेरोजगारों की दर 11.9 प्रतिशत थी, जो कांग्रेस के राज में चार साल बाद दिसंबर-21 में बढ़कर 53.4 प्रतिशत हो गई है। यानि चार गुना से ज्यादा बेरोजगारी दर हो चुकी है, वह भी पढ़े-लिखों की।