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Uttarakhand Politics राजधानी देहरादून के एक विद्यालय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम का हिस्सा बने। कार्यक्रम में वह मुख्यमंत्री नहीं एक छात्र की तरह दिख रहे थे।
विकास धूलिया, देहरादून: चर्चा परीक्षा पर हो तो भला कौन मौका चूकना चाहेगा। बात चाहे स्कूली जीवन की हो या फिर राजनीति की, मन में सीखने की ललक हो, लक्ष्य हासिल हो ही जाता है। ऐसा ही कुछ नजर आया प्रधानमंत्री के कार्यक्रम परीक्षा पे चर्चा के समय। राजधानी देहरादून के एक विद्यालय में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बने।
कार्यक्रम में वह मुख्यमंत्री नहीं, एक छात्र की तरह दिख रहे थे। इधर, प्रधानमंत्री ने बोलना शुरू किया, उधर धामी हाथ में नोट पैड लेकर तल्लीनता के साथ कुछ नोट करने लगे। लगभग पूरे कार्यक्रम में वह पैड पर कुछ लिखते ही रहे। शायद प्रधानमंत्री छात्रों को परीक्षा के दबाव से मुक्त होने के लिए जो टिप्स दे रहे थे, धामी उन्हें गंभीरता से बिंदुवार आत्मसात कर रहे थे। अब राजनीति में तो रोज परीक्षा देनी पड़ती है, पता नहीं कौन सी बात कब और कहां काम आ जाए। भगतदा की इच्छा से उत्तराखंड में मची हलचल
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राजनीति से संन्यास का मन बना लिया है। भगतदा ने अपनी इच्छा प्रधानमंत्री के समक्ष जाहिर कर दी है। उन्होंने कहा है कि वह अपना समय अब पढऩे-लिखने में बिताना चाहते हैं। उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय रहे, राज्य के मुख्यमंत्री भी बने, तो स्वाभाविक है कि वह उत्तराखंड का ही रुख करेंगे। भगतदा के इस कदम से राज्य की राजनीति में हलचल नजर आ रही है।
राजनीति में अक्सर होता है कि भलमनसाहत से कही गई बात बूमरैंग की तरह स्वयं पर ही लौट कर प्रहार कर डालती है। ऐसा ही कुछ हुआ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ। जोशीमठ आपदा को लेकर कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री धामी से मुलाकात की। इसके बाद रावत ने इंटरनेट मीडिया में एक पोस्ट की, जिसमें उन्होंने धामी की खुले दिल से सराहना की।
पोस्ट का सार यह था कि धामी बहुत अच्छे स्रोता हैं, अलोचनात्मक सुझावों को भी धैर्य के साथ सुनते हैं। इसी कड़ी में रावत ने युवाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की बात कही, लेकिन उनके पुराने सिपहसालार प्रीतम सिंह ने इसे लपक लिया। बोले, नौजवानों को आगे बढ़ाने का सुझाव तो स्वागतयोग्य है, लेकिन इसमें बहुत देर कर दी। चलो, देर आए, दुरुस्त आए। कुछ समझे, रावत की सक्रियता इस कदर कि कांग्रेस में कहां नौजवानों को चेहरा दिखाने का अवसर मिल पाता है।
हरक की तैयारियों पर नई विपदा का पेच
हरक सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति के धुरंधर, मगर सालभर से नेपथ्य में चल रहे हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में वापसी की, लेकिन चुनाव नहीं लड़ा। कांग्रेस लगातार दूसरा चुनाव हारी, तो राजनीति में नई भूमिका की संभावना पर विराम लग गया। अब हरक अचानक सक्रिय होते दिख रहे हैं। एलान कर दिया कि हरिद्वार सीट से लोकसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं।हरिद्वार से कांग्रेस टिकट के एक प्रमुख दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी हैं। यहां से पहले भी सांसद रहते हुए केंद्र में मंत्री बने। ऐसे में हरक की हरिद्वार से ताल ठोकने की मंशा आसानी से पूरी होगी, लगता नहीं। अब हरक की इस तैयारी के बीच उन पर नई विपदा आन पड़ी है। मामला उनके वन मंत्री के कार्यकाल से जुड़ा है। कार्बेट रिजर्व में टाइगर सफारी के बहुचर्चित मामले में उन्हें भी जिम्मेदार ठहराया गया है। लिहाजा, उनकी मुश्किलें बढ़ना तय है।