SG
शोपियां के चौधरीगुंड से पलायन कर गए सारे कश्मीरी पंडित
जम्मू
केंद्र की मोदी सरकार कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को संरक्षण देने की बात करती है परंतु कश्मीरी पंडितों को न तो यहां सुरक्षा मिल रही है और न ही उनके पलायन का सिलसिला थम रहा है। कश्मीरी पंडित आज भी अपने परिवार के साथ जम्मू में दर-दर की ठोकरें खा रहा है। केंद्र के झूठे वादों से उन्हें कहीं रहने के लिए छांव तक नहीं मिल रही है। घाटी में नौकरियां करने वाले कश्मीरी पंडित बीते २६४ दिन से जम्मू में हर रोज धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। टारगेट किलिंग के बाद वे घाटी लौटने से डरे हुए हैं। कश्मीर से धारा ३७० हटने के साढ़े ३ साल बाद भी कहानी वही है और किरदार भी वही हैं। कुछ कश्मीरी पंडित जो अब तक वहां रह रहे थे, आतंकियों के खौफ से अब उनका गांव भी खाली हो गया है।
जम्मू-कश्मीर के शोपियां का चौधरीगुंड गांव नए-नए वीरान हुए १३ घरों और परिवारों के उजड़ने का गवाह है। यहां रह रहे कश्मीरी पंडितों के आखिरी १२ परिवार भी अब पलायन कर चुके हैं। १५ अक्टूबर २०२२ को पूरन कृष्ण भट्ट की टारगेट किलिंग के बाद ज्यादातर परिवार जम्मू चले गए हैं। अब यहां कोई कश्मीरी पंडित नहीं रहता।’ यही हाल दूसरी बस्तियों का भी है, जो टारगेट किलिंग की घटनाओं के बाद खाली हो गई हैं।
कई घरों में लटके हैं ताले
चौधरीगुंड की गलियों में ४ से ५ फीट तक बर्फ जमी हुई है। वजह ये हैं कि यहां अब कोई नहीं रहता है। रास्ते बंद हैं, क्योंकि वीरान बस्ती की सड़क से बर्फ नहीं हटाई गई। यहां के सभी कश्मीरी पंडितों के घरों में अब ताले लटके हैं। यहां के लोग इतने खौफ में रहते हैं कि किसी का घर पूछने पर भी उनका
नाम तक नही बताते हैं।
२६४ दिनों से धरने पर कर्मचारी
कश्मीर घाटी में काम करनेवाले करीब ४ हजार कश्मीरी पंडित टारगेट किलिंग की घटनाओं के बाद कश्मीर में नौकरी पर जाने से डर रहे हैं। पिछले २६४ दिनों से सैंकड़ों कश्मीरी पंडित कर्मचारी जम्मू के पुनर्वास आयुक्त के दफ्तर के बाहर धरने पर बैठे हैं। पीड़ित सुवेश कहते हैं कि ‘टीचर रजनी बाला की हत्या के बाद हमने तय किया कि अब घाटी में रहना ठीक नहीं है। इसलिए प्रदर्शन को जम्मू शिफ्ट किया।