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भारतीय जनता पार्टी हो या संघ परिवार गाय और बीफ को लेकर हमेशा ‘सतर्क’ रहते हैं। खासकर, गौमांस भक्षण को लेकर इस मंडली का रवैया बेहद सख्त होता है। ‘मैं बीफ खाता हूं’ या ‘बीफ खाने में क्या गलत है?’ जैसे ही कोई इस प्रकार बोलता है, यह मंडली उस पर टूट पड़ती है। लेकिन अब भाजपा के मेघालय प्रदेशाध्यक्ष एर्नेस्ट मावरी ने अपनी ही पार्टी के लिए पंचायत कर दी है। मावरी ने बहुत खुले तौर पर कहा है ‘हम गौमांस खाते हैं, यह हमारी संस्कृति है और मेरी पार्टी को इससे कोई आपत्ति नहीं है।’ इस बारे में भाजपा और परिवार मंडली का क्या कहना है? गौमांस खाना उचित है या नहीं, यह यहां मुद्दा नहीं है। सवाल है भाजपा और परिवार के दोहरेपन का। मुद्दा गौमांस खाने का हो या हिंदू धर्म का, इन मंडलियों की भूमिका हमेशा दोधारी रही है। भाजपा के हिंदुत्व का रंग उसकी राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से बदलता रहता है। यानी अगर दूसरा कोई अलग राजनीतिक रुख अपनाता है, तो वे तिलमिला जाते हैं, लेकिन जब वे खुद कुछ करते हैं, तो उसे ‘राष्ट्रीय आवश्यकता’ जैसा दार्शनिक मरहम लगा दिया जाता है। महबूबा मुफ्ती जैसी अलगाववादी और हिंदुत्व की मुखर विरोधी महिला की पार्टी के साथ भाजपा जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्य में सत्ता में बैठ सकती है। तब उनका हिंदुत्व संकट में नहीं पड़ता। जैसा हिंदुत्व के बारे में है, वैसा ही गौमांस खाने के विवाद के साथ है। एक तरफ तो ये मंडली गाय की रक्षा और गौमांस खाने को लेकर मुट्ठी बांधकर चीखती रहती है। हम ही वैâसे गौ रक्षक हैं, इसका दिखावा करते हुए औरों को चार बातें सुनाते रहते हैं। लेकिन जब गोवा, मेघालय अन्य या उत्तर-पूर्व के भाजपा शासित राज्यों की गौमांस नीति का विषय आता है, तो वे ‘हाथ की घड़ी मुंह पर उंगली’ रखकर चुप्पी साध लेते हैं। ना कहने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने इसी महीने गौमांस को लेकर ‘साहसिक’ बयान दिया था। ‘हम उन लोगों के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं कर सकते जिन्हें मजबूरी में गौमांस खाना पड़ा है।’ ऐसा होसबले ने स्पष्ट किया था। भाजपा के मेघालय के प्रदेशाध्यक्ष एर्नेस्ट मावरी अब उनसे एक कदम आगे निकल गए हैं। ‘गौमांस खाना हमारी संस्कृति है। इसलिए हम गौमांस खाते हैं और भाजपा को इससे कोई आपत्ति नहीं है।’ ऐसी सीधी स्पष्टोक्ति ही मावरी ने दे डाली है। दो साल पहले मेघालय में भाजपा के एक तत्कालीन मंत्री सनबोर शुलाई ने तो कहा था, ‘चिकन, मटन और मछली के बजाय बीफ, गौमांस खाइए। उसमें मजा आता है!’ इन शब्दों में उन्होंने गौमांस की तरफदारी की थी। शुलाई का ये बयान ‘हिंदुत्व विरोधी’ और ‘गौमाता विरोधी’ था, लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं हुआ था। मावरी के खिलाफ भी किसी तरह का कोई हंगामा होने की संभावना नहीं है। क्योंकि भाजपा का हिंदुत्व मेघालय की सत्ता से बंधा हुआ है। जहां भाजपा सत्ता में नहीं होती वहां भाजपा वाले गाय और गौमांस को लेकर आग लगाते हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पूरे देश में ‘बीफ’ को लेकर ‘मॉब लीचिंग’ की गई वह भाजपा के दोतरफा गाय प्रेम की बलि थी। अब भी हरियाणा मे गौ तस्करी के संदेह में दो मुस्लिम युवकों को जिंदा जलाकर मारने का मामला सुर्खियों में है। मूलरूप से राजस्थान के रहनेवाले इन युवकों पर कुछ लोगों ने गौ तस्करी का आरोप लगाकर राजस्थान के भरतपुर जिले से अपहरण कर लिया था। आरोप है कि उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई और बाद में दोनों को जिंदा जला दिया गया। आरोप यह भी है कि आरोपी हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता हैं। भाजपा शासित राज्यों में स्वयं घोषित ‘गौ रक्षकों’ द्वारा इस तरह की ‘मॉब लीचिंग’ कोई नई बात नहीं है। ऐसे तथाकथित गो रक्षकों के झुंडों को संरक्षण देना, इस तरह की झुंडशाही के बल पर खुद के राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकना और गोवा से लेकर उत्तर-पूर्व तक भाजपा शासित राज्यों में गौमांस की बिक्री ‘सरकारी संरक्षण’ में करना, गोमांस खाने के विवाद पर अपनी सुविधानुसार आंख-कान बंद कर लेना। एक तरफ ‘बिगबुल’ घोटालों पर चुप्पी साध लेना और दूसरी तरफ वैलेंटाइन डे पर ‘काऊ हग डे’ मनाइए। यानी गाय को गले से लगाने का फरमान जारी करना। बाद में मामला उल्टा पड़ता नजर आता देख फरमान वापस ले लेना। इनके गोवा के दिवंगत मुख्यमंत्री ‘बीफ’ की वकालत करते थे। ‘बीफ बाहर से लाकर गोवाकरों की जरूरतें पूरा करेंगे।’ ऐसा वे कहते थे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी देश से टनों में बीफ का निर्यात बंद नहीं हुआ है। क्योंकि इस सरकार का गाय प्रेम करोड़ों की विदेशी मुद्रा के प्रेम में बह गया है। कत्लखाने जानेवाली गायों की पुकार को नजरअंदाज करके यह सब चल रहा है। भाजपा का हिंदुत्व भी अलग है और गाय प्रेम भी ढोंगी है। इस ढोंग का बुरखा उनके मेघालय के प्रदेशाध्यक्ष एर्नेस्ट मावरी ने ही फिर से फाड़ दिया बस इतना ही!