महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष : सुनवाई कल पूरी होगी १० अप्रैल तक फैसला … जो कोर्ट का भी काम नहीं राज्यपाल ने कैसे किया?
SG
सुप्रीम कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी की जोरदार दलील
• टेंशन में शिंदे गुट
• शिवसेना में फूट पड़ गई है, यह राज्यपाल ने कैसे मान लिया? बहुमत परीक्षण के लिए विशेष अधिवेशन कैसे बुला लिया?’
नई दिल्ली
एक तरफ हम स्वायत्त संस्था और विधानसभा अध्यक्ष के कार्य क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं, ऐसा कहते हैं। फिर जो कोर्ट का भी काम नहीं, उसे राज्यपाल ने वैâसे किया? शिवसेना में फूट पड़ी है, यह राज्यपाल ने वैâसे तय कर लिया? बहुमत परीक्षण के लिए विशेष अधिवेशन वैâसे बुला लिया? ऐसा सवाल करते हुए शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के वकील वरिष्ठ कानूनविद अभिषेक मनु सिंघवी ने कल शिंदे गुट को टेंशन में ला दिया।
महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट में कल फिर सुनवाई शुरू हुई। मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ के समक्ष शुरू यह सुनवाई अब अंतिम चरण में पहुंच गई है, क्योंकि मुख्य न्यायाधीश ने कल दोनों पक्षों के वकीलों को गुरुवार तक सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है। बुधवार, शाम तक शिंदे गुट की ओर से वकील नीरज कौल, मनिंदर सिंह और महेश जेठमलानी अपना पक्ष रखेंगे और गुरुवार दोपहर २ से ४ बजे तक वरिष्ठ कानूनविद कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी ये रिजॉइंडर करेंगे। सत्ता संघर्ष का पैâसला अप्रैल के पहले सप्ताह में अथवा १० अप्रैल तक हो सकता है, ऐसा कानून विदों का मत है।
राज्यपाल का पत्र रद्द करो, सारी समस्या हल हो जाएगी!
महाराष्ट्र सत्ता संघर्ष की सुनवाई अब आखिरी चरण में पहुंच चुकी है। कल शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में जोरदर दलीलें दी। इस पर मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने पूछा कि ‘अब घड़ी का कांटा वैâसे उल्टा घुमाएंगे?’ इस पर सिंघवी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार, बहुमत परीक्षण और अन्य मुद्दों पर हमारा हस्तक्षेप करना संभव नहीं, ऐसा आपका कहना है तो राज्यपाल का जो पत्र है, उसे ही रद्द कर दिया तो सारी समस्याएं ही हल हो जाएंगी। राज्यपाल ने अपने अधिकार से परे जाकर निर्णय लिया है। उनके निर्णयवाले पत्र को रद्द करना कोर्ट के हाथ में है। इस पत्र को रद्द करने से सारी समस्या ही हल हो जाएगी।
राज्यपाल ने पहले ही फैसला दिया?
अभिषेक मनु सिंघवी ने राज्यपाल की जल्दबाजी की ओर संवैधानिक खंडपीठ का ध्यान आकर्षित किया। सरकार स्थिर नहीं, यह राज्यपाल ने वैâसे तय कर लिया? शिंदे के पास मौजूद विधायक ही शिवसेना है, ऐसा मानकर उन्होंने नई सरकार को वैâसे शपथ दिला दी? साथ ही जिन विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटक रही है, ऐसे विधायकों को शपथ दिलाकर संबंधित विधायक योग्य साबित होंगे, क्या ऐसा पैâसला ही उन्होंने दे दिया? ऐसा सवाल सिंघवी ने उपस्थित किया।
सिंघवी द्वारा उठाए गए मुद्दे
• यदि कुछ विधायक दूसरी पार्टी में गए तो बचे विधायकों को १०वें अनुच्छेद का संरक्षण रहता है। लेकिन इस मामले में बचे हुए विधायकों को ही संरक्षण नहीं है। बागी विधायकों के दूसरी पार्टी में विलीन न होने पर भी बचे हुए विधायकों को व्हिप जारी किया जाता है।
• राज्यपाल के बहुमत परीक्षण के संदर्भ में लिए गए निर्णय के चलते ही यह स्थिति बनी है। इस मामले के न्यायालय में प्रलंबित रहते हुए राज्यपाल इस प्रकार हस्तक्षेप नहीं कर सकते। राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होने के बावजूद कार्यकारी पद्धति से नियुक्त हुए हैं।
• राज्यपाल ने शिवसेना में फूट को मंजूरी दी। सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कर सकता है तो राज्यपाल वैâसे कर सकते हैं? संवैधानिक प्रमुख पद पर होते हुए भी राज्यपाल ने यह गलती की है।
प्रतोद की नियुक्ति कौन करता है?
भरत गोगावले ने सुनील प्रभु को ३ जुलाई को भेजे गए पत्र को राजनीतिक पक्ष के तौर पर नहीं भेजा था। उस पत्र के अंत में ‘शिवसेना विधान मंडल पक्ष’ ऐसा उल्लेख है। इसलिए प्रतोद की नियुक्ति राजनीतिक पक्ष कर सकता है कि विधानमंडल गुट यह यहां पर महत्वपूर्ण होता है, ऐसा शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष के वकील एड. देवदत्त कामत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा।
एकनाथ शिंदे के एक पत्र के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने सुनील प्रभु की जगह भरत गोगावले की प्रतोद पद पर नियुक्ति होने के निर्णय को मान्यता दी। ऐसा कहते हुए एड. कामत ने कहा कि ३ जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर भरत गोगावले ने सुनील प्रभु को पत्र भेजकर प्रतोद पद से निकाले जाने की जानकारी दी। उसी प्रकार विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति पर एकनाथ शिंदे को विधानमंडल पक्ष नेता के पद पर नियुक्ति होने की सूचना इस पत्र में दी।
निर्णय व्यक्तिगत स्तर पर लिया गया
१०वें परिशिष्ट के तीसरे अनुच्छेद के अनुसार, जब मूल पक्ष में फूट पड़नेवाली है लेकिन राज्यपाल को पता है कि मूल पक्ष में किसी भी प्रकार की फूट नहीं पड़ी है, तब भी वे विधायकों को नए गुट को मान्यता वैâसे दे सकते हैं? यह निर्णय व्यक्तिगत स्तर पर जाकर लिया गया है, जो बहुमत के आधार पर लिया जाना चाहिए, ऐसा वरिष्ठ कानूनतज्ञ कपिल सिब्बल ने कहा।
कामत ने शिंदे गुट का पत्र भी दिया
शिंदे गुट ने गुवाहाटी में बैठकर पक्ष का प्रतोद बदलते हुए विधायक भरत गोगावले की प्रतोद पद पर नियुक्ति की थी। इस संदर्भ में शिंदे गुट की ओर से दिए गए पत्र को देवदत्त कामत ने कोर्ट के समक्ष पेश किया, जिस पर शिंदे गुट की ओर से लेटर पैड पर शिवसेना विधान मंडल पक्ष, ऐसा उल्लेख किया गया है। इसे देवदत्त कामत कोर्ट के संज्ञान में लाए।
तब भी हमारा बहुमत : कौल
शिंदे गुट का पक्ष रखते हुए एड. नीरज कौल ने कहा कि अयोग्यता के मामले में संबंधित विधायकों को छोड़ दें, तब भी हम बहुमत में हैं। सिर्फ अयोग्यता का मामला प्रलंबित है इसलिए आप किसी विधायक को विश्वास प्रस्ताव पर मतदान करने से नहीं रोक सकते हैं। ऐसा बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि राज्यपाल को आखिर क्या करना चाहिए था। सात निर्दलीय विधायक कहते हैं कि हमारा सरकार पर विश्वास नहीं है। ३४ विधायक कहते हैं कि हमारा मंत्रालय पर विश्वास नहीं है। कई विधायकों ने समर्थन खींच लिया था। विधान मंडल पक्ष का एक बड़ा धड़ा सरकार से अलग हो गया था। इस परिस्थिति में मुख्यमंत्री को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना एकमात्र मार्ग बचा था। बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचित किया था कि ऐसे मामलों में बहुमत परीक्षण एकमात्र मार्ग हो सकता है। उसे ही पर्याय के रूप में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने चुना, ऐसा एड. कौल ने कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने क्या कहा…
• बहुमत परीक्षण से जुड़ी अयोग्यता प्रक्रिया के चलते यह असल समस्या पैदा हुई है।
• ७ निर्दलीय और ३४ विधायक कह रहे थे कि उनका सरकार पर विश्वास नहीं है। यदि यह सरकार गिराने का कारण होता है तो वास्तव में अयोग्यता के लिए यह मूल कारण नहीं होता है क्या?
• यदि विधायकों की अयोग्यता संदेह के दायरे में है तो बहुमत का प्रश्न वैâसे खड़ा होता है?