Thursday, October 10, 2024

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डिप्रेशन का डिजास्टर! …नए दौर में महामारी की बदली परिभाषा

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हिंदुस्थान में तनाव बन गया है महारोग
डिप्रेशन यानी तनाव अब केवल मानसिक परेशानी नहीं रहा। यह ढेर सारी शारीरिक परेशानियों से जुड़ा है। तनाव ने नए दौर में महामारी की परिभाषा को बदल दिया है। यह हिंदुस्थान में महारोग बन गया है, जो चिकित्सा जगत को चिंतित कर रहा है। बीते ढाई-तीन साल में वैज्ञानिक अनुसंधानों ने हमें सचेत किया है कि तनाव सीधे या घुमा-फिराकर दिल के रोग, ब्रेन स्ट्रोक, डायबिटीज, वैंâसर, फेफड़ों की बीमारियों, लीवर सिरोसिस और बांझपन के अलावा व्यसन, मोटापे और आत्महत्या की ओर ले जानेवाला अवसाद में योगदान दे रहा है। यह मौत के कारणों में से एक है। फिर भी लोग तनाव को तब तक परेशानी नहीं मानते जब तक यह ज्यादा घातक बीमारियों में प्रकट नहीं होता। चिकित्सकों के मुताबिक शरीर में तनाव को माप नहीं सकते हैं। इसलिए जब कोई बड़ी घटना घटती है, तभी अपनी बेहद तनावपूर्ण जीवनशैली का एहसास होता है।
कोविड महामारी ने पहले से ही तनावग्रस्त जिंदगी में तनाव को और बढ़ा दिया है, जो शरीर से भारी कीमत वसूल रहा है। जनरल फिजिशियन डॉ. श्रीजीत शिंदे कहते हैं कि महामारी तो कंट्रोल में आ गया है लेकिन हार्ट अटैक के मामलों में बढ़ोतरी हुई है, जिसमें तनाव का अहम योगदान है। ऐसा लग रहा है कि अब हिंदुस्थान एक नई महामारी की चपेट में आ गया है। यह चुपचाप आनेवाली बीमारी है, जो तनाव से पैदा होती है। बता दें कि मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्लेटफॉर्म ‘द सेंटर ऑफ हीलिंग’ ने १० हजार लोगों पर एक सर्वे किया था, जिसमें ७४ फीसदी ने तनाव और ८८ फीसदी ने बेचैनी की शिकायत की। सर्वे में शामिल करीब ७० फीसदी डॉक्टरों ने मरीजों के आने की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की। साथ ही ५५ फीसदी ने कहा कोरोना महामारी के बाद पहली बार आनेवाले मरीज बढ़े हैं।
हाइपोथैलेमस मस्तिष्क का कमांड सेंटर
तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया की कुंजी उसके एंडोक्राइन सिस्टम यानी अंत:स्रावी प्रणाली और हाइपोथैलमिक-पिट्यूटरी एड्रीनल (एचपीए) एक्सिस में है। हाइपोथैलेमस मस्तिष्क का कमांड सेंटर है, जो मनोदशा, शरीर का तापमान, हृदय गति, खान-पान, यौन इच्छा, ऊर्जा, प्यास और नींद का चक्र सरीखी कई सारी चीजों को दुरुस्त करता है। यह हार्मोन के स्राव को भी नियंत्रित करता है यानी उन रसायनों को जो रक्तप्रवाह के साथ बहते हुए शरीर के तमाम ऊतकों और अंगों तक जाते हैं और कई कामों को सक्रिय करते और उनमें तालमेल बिठाते हैं। शारीरिक खतरों, बॉस की डांट-फटकार, कोई बुरी खबर अथवा रोजमर्रा के तनाव के चलते जब मस्तिष्क को स्ट्रेसर के कारणों का एहसास होता है, तो वह योजनाबद्ध और समन्वित शारीरिक प्रक्रियाओं का सिलसिला शुरू कर देता है। इस बीच दिल ज्यादा तेज धड़कता है, नब्ज और रक्तचाप बढ़ जाता है और सांस ज्यादा तेज चलने लगती है। मस्तिष्क और रक्त प्रवाह में ज्यादा ऑक्सीजन और ग्लूकोज छोड़ दिए जाते हैं, जो शरीर में तनाव से लड़ने के लिए जरूरी ऊर्जा का विस्फोट पैदा करते हैं। डॉ. मधुकर गायकवाड कहते हैं कि कॉर्टिसोल हमारे जिंदा रहने का हार्मोन है और हमारे विचारों से नियंत्रित होता है। जब हमारे विचार तनावपूर्ण हो जाते हैं, तो शरीर अपनी रक्षा के लिए यह हार्मोन छोड़ता है। जब हम लंबे वक्त तक तनाव में रहते हैं तो शरीर में बहुत ज्यादा कॉर्टिसोल हो सकता है, जो न तो हमारी सेहत के लिए अच्छा है और न हमारी कुशलता के लिए।
वजूद के लिए अभिशाप
न्यूरोसर्जन डॉ. चंद्रकांत तिवारी का कहना है कि अध्ययनों से पता चलता है कि हाल के वर्षों में तनाव प्रक्रिया जरूरत से ज्यादा बार सक्रिय हो रही है। वॉशिंगटन डीसी स्थित सोसाइटी फॉर रिसर्च इन चाइल्ड डेवलपमेंट के जुलाई २०१८ के अध्ययन से पता चला कि हाईस्कूल की परीक्षा में कम नंबर आने के कारण छात्रों में कॉर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। एक और अध्ययन से जो ओरेकल और अमेरिकी रिसर्च फर्म वर्कप्लेस इंटेलिजेंस ने अक्टूूबर २०२१ में किया, उसमें पता चला कि इसमें शामिल १,१०० लोगों में भारतीय पेशेवर सबसे ज्यादा तनावग्रस्त थे। अध्ययन में ८० फीसदी के वैश्विक औसत के मुकाबले ९१ फीसदी भारतीय पेशेवरों ने कहा कि वे अत्यंत तनावग्रस्त हैं। तनाव की वजहें रुपए-पैसे की चिंता और भावनात्मक मसलों से लेकर करियर से जुड़ी परेशानियों और खुद अपनी जिंदगी से कट जाने तक कई थीं। फोर्टिस अस्पताल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रिमा चौधरी के अनुसार, हमारे शरीर की तनाव प्रक्रिया जीने-मरने की स्थितियों के लिए तैयार की गई होती है। मगर आज यह तंत्र मामूली बातों से सक्रिय हो जाता है। बहुत ज्यादा सोच-विचार या हर बात की बहुत ज्यादा बखिया उधेड़ना हमारे वजूद के लिए अभिशाप और तनाव के ऊंचे स्तर का कारण बन गया है।
बीमारियों की जड़
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने २०१६ में तनाव को २१वीं सदी का स्वास्थ्य महारोग करार दिया था। तनाव निश्चित कारणों और लक्षणों वाली बीमारी भले न हो, पर समय के साथ शरीर के अंगों पर इतना कहर बरपाता है कि जिंदगी के लिए खतरा बन जाता है। मुलुंड स्थित फोर्टिस अस्पताल के सीनियर नेप्रâोलॉजिस्ट डॉ. अतुल इंगले का कहना है कि मेडिकल शब्दावली में हम तनाव को दीर्घकालिक सूजन की शारीरिक अवस्था के रूप में देखते हैं। किडनी पर इसके असर को लेकर वे कहते हैं कि यह असर सीधा नहीं होता, पर जिस तरह यह जीवनशैली को प्रभावित करता है। लोग पानी कम पीते हैं, पोषक आहार से समझौते करते हैं और डायबिटीज या उच्च रक्तचाप की ज्यादा संभावना को न्यौता दे बैठते हैं। ये सब किडनी की गंभीर बीमारी के कारणों के रूप में जाने जाते हैं।
दिल- हड्डियों के लिए भी घातक
शरीर के दूसरे अंगों जैसे हृदय, मांसपेशियां, मस्तिष्क और प्रजनन प्रणाली पर तनाव और भी गंभीर तरीकों से असर करता है। विशेषज्ञों को सबसे ज्यादा चिंता हृदय के जोखिम की है। तनाव से पैदा होने वाली प्रक्रिया को आज अच्छी तरह पहचान लिया गया है। हृदय की आंतरिक परत में बदलाव और खून के थक्के जमने का ज्यादा जोखिम है। दोनों से ही अचानक दिल का दौरा पड़ सकता है या धड़कन रुक सकती है। सिर्फ तनाव है तो दिल की बीमारियों का जोखिम ज्यादा होता है, पर समय से पकड़ लिया जाए तो सही किया जा सकता है। डॉ. नेताजी मुलिक के अनुसार, उच्च रक्तचाप या डायबिटीज सरीखे दूसरे जोखिम कारक भी हों तो जोखिम नौ गुना ज्यादा बढ़ जाता है। तनाव से बाद में मांसपेशियों और जोड़ों की बीमारियां भी हो सकती हैं।
ऐसे हो सकता है तनाव कम
अब दवाइयां और इलाज अकेला या पहला तरीका नहीं रह गया है। एक आरंभिक अध्ययन के मुताबिक, प्राकृतिक वातावरण में टहलकर तनाव के स्तर को काफी कम किया जा सकता है। क्रिस्टल हीलिंग से लेकर ध्यान तक, प्राणायाम से टहलने तक, अपनी सामाजिक व्यवस्था बनाने से पत्रिकाओं में लिखने तक, बागवानी से लेकर जिगसॉ पहेलियां हल करने तक अलग-अलग और नई-नवेली तकनीकियां अब तनावमुक्त होने में आपकी मदद कर सकती हैं।

महिलाओं में ब्रेन स्ट्रोक का बढ़ा खतरा
कुछ साल पहले १,३८,७८२ लोगों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि बहुत ज्यादा समय, ऊर्जा और ध्यान की मांग करने वाली नौकरियों में काम से जुड़े तनाव खासकर महिलाओं में ब्रेन स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा देते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पवन ओझा के अनुसार, इससे रक्त के थक्कों का जोखिम बढ़ जाता है जो फिर दिमाग में पहुंचकर स्ट्रोक को जन्म देता है। इसके अलावा तनाव याददाश्त पर भी असर डालता है। आखिर में एक हार्मोन की गड़बड़ी का अनिवार्य असर दूसरे हार्मोन पर पड़ सकता है, जिससे प्रजनन क्षमता और हार्मोन से जुड़ी सेहत भी प्रभावित होती है। मनोचिकित्सक डॉ. सुवर्णा माने के अनुसार, अगर आप लंबे वक्त से तनावग्रस्त हैं तो यह डोपामाइन, सेरोटोनिन ४४ और दूसरे प्रजनन हार्मोन में सीधे विघ्न डाल सकता है, जिससे फिर अवसाद, कम कामेच्छा, बांझपन, पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम सरीखी स्थितियां उत्पन्न होती हैं।