SG
क्रिगलर नज्जर सिंड्रोम था पीड़ित
मुंबई
अमदाबाद निवासी आठ माह का बच्चा जानलेवा बीमारी क्रिगलर नज्जर सिंड्रोम से परेशान था। माता-पिता ने बच्चे को गुजरात के कई चिकित्सकों को दिखाया लेकिन खासा लाभ नहीं हुआ। इसके बाद वे बच्चे को लेकर मुंबई पहुंच गए। यहां उन्होंने उसे बच्चे को निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। अस्पताल में चिकित्सकों ने तमाम मेडिकल जांच कर टोटल रोबोटिक लिवर डोनर हेपेक्टोमी सर्जरी कर बच्चे की जान बचाते हुए जीवनदान दिया है। एक तरह से कहा जाए तो रोबोट ने बच्चे का लीवर फिट कर दिया। अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि पश्चिम हिंदुस्थान में किसी छोटे बच्चे पर इस तरह की यह पहली सर्जरी है।
गुजरात के अमदाबाद में रहनेवाले दंपति को दो महीने पहले पता चला कि उनके आठ माह का बेटा जानलेवा बीमारी क्रिगलर नज्जर सिंड्रोम नामक बीमारी का शिकार हो चुका है। इसके बाद मानो उनके पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई, क्योंकि इसी बीमारी के चलते उनके बड़े बेटे की पहले ही मौत हो चुकी थी। यह बीमारी जब छोटे बेटे में होने की जानकारी चिकित्सकों ने दी तो वे हताश हो गए थे। इस बीमारी के चलते बेटा पीलिया, दस्त, उल्टी और तेज बुखार से जूझ रहा था। दंपति ने उसका स्थानीय स्तर पर कई अनुभवी चिकित्सकों से इलाज कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। ऐसे में एक स्थानीय डॉक्टर ने उन्हें लीवर प्रत्यारोपण के लिए मुंबई के परेल स्थित ग्लोबल अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी। इसके बाद परिवारवालों ने बच्चे को तुरंत मुंबई आकर ग्लोबल अस्पताल में भर्ती करा दिया। हालांकि, इस दौरान सबसे जटिल समस्या प्रत्यारोपण के लिए लीवर की आवश्यकता थी। ऐसे में बच्चे की मां ने अपने लीवर का एक हिस्सा दान करने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद लीवर, अग्न्याशय और आंतों के प्रत्यारोपण कार्यक्रम और एचपीबी सर्जरी के निदेशक डॉ. गौरव चौबल के नेतृत्व में चिकित्सकों की टीम ने टोटल रोबोटिक लीवर डोनर हेपेटेक्टोमी सर्जरी कर बच्चे की जान बचाई।
क्या है टोटल रोबोटिक डोनर हेपेटेक्टोमी?
डॉ. गौरव चौबल ने बताया कि टोटल रोबोटिक डोनर हेपेटेक्टोमी एक छोटे से चीरे के जरिए की जाने वाली सर्जरी है। इस सर्जरी से मरीज को काफी फायदा हो रहा है। यह सर्जरी होनेवाले रक्तस्राव और संक्रमण के खतरे को भी कम करती है। ओपन हेपेटेक्टोमी की तुलना में इसमें जोखिम कम है। उन्होंने कहा कि इस सर्जरी में रिकवरी तेजी से होती है और सर्जरी के बाद तीसरे दिन लीवर डोनर को छुट्टी दे दी जाती है, जबकि खुली सर्जरी में डोनर को कम से कम ६ दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है।