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6 घंटे में 2 हजार मुसलमानों का कत्ल… असम के नेल्ली नरसंहार में क्या-क्या हुआ? रिपोर्ट पेश करेगी सरकार

 

नेल्ली नरसंहार चर्चा में है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने इस नरसंहार की रिपोर्ट को असम विधानसभा में पेश करने का निर्णय लिया है. यह असम के इतिहास का काला अध्याय है जिसमें 2,000 लोगों की निर्दयता से हत्या हुई. पढ़ें नरसंहार की पूरी कहानी.

देश की आजादी के बाद कई बार दंगे हुए. इनमें से सिख विरोधी दंगों, मुंबई दंगों और गुजरात दंगों की खूब चर्चा होती है. हालांकि, सिख विरोधी दंगों से एक साल पहले असम में हुए एक नरसंहार की चर्चा आमतौर पर कम ही होती है. बांग्लाभाषियों का यह नरसंहार 18 फरवरी 1983 को हुआ था. तब तिवा, कर्बी और अन्य समुदायों के लोगों ने बांग्लाभाषी मुस्लिमों को निशाना बनाया था. अब इस नरसंहार की रिपोर्ट सरकार सदन में रखने जा रही है. आइए जान लेते हैं कि क्या था नेल्ली नरसंहार, जब केवल छह घंटे में हजारों मुसलमानों का कत्ल कर दिया गया था.

सुंदर पहाड़, उपजाऊ भूमि, नदी और प्राकृतिक संसाधन असम की पहचान हैं पर वहां की सबसे बड़ी विशेषता अलग-अलग नस्लों की आबादी है. इनमें आहोम हैं, बोडो और करबी भी हैं. खासी जनजाति के साथ ही बड़ी संख्या में बंगाली और बिहारी भी असम में रहते हैं. वास्तव में अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग पीढ़ियों के लोग असम में बसते गए और समय के साथ वहीं राज्य के होकर रह गए. इनमें से बहुत से समुदायों ने अपनी परंपरा और संस्कृति के साथ ही साथ असम की संस्कृति और बोलचाल को भी अपना बना लिया.

हालांकि, बढ़ती आबादी के साथ राज्य के संसाधन कम पड़ने लगे. नई पीढ़ी के मन में राजनीतिक इच्छाएं और आकांक्षाओं परवान चढ़ रही थीं. ऐसे में ग़रीबी और पिछड़ेपन के कारण आदिवासी समूहों के युवा अपना अधिकार पाने के लिए सशस्त्र आंदोलन की ओर बढ़ चले. ये समूह एक-दूसरे के खिलाफ ही संघर्षरत हो गए.

अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ आंदोलन

साल 1979 से 1985 के बीच चले इस आंदोलन को असम आंदोलन के नाम से जाना जाता है, जिसका उद्देश्य असम से विदेशियों या अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ना था. ऐसे ही आंदोलन के दौरान 1980 के दशक में लोग बांग्लाभाषियों के विरोध में खड़े हो गए, कई दशकों से असम में बसे बांग्लादेशियों का मूल पेशा खेती है. चूंकि बांग्लादेश की सीमा भी असम से मिली है तो वहां से बड़ी संख्या में घुसपैठिए भी असम आते रहे हैं. वास्तव में यह आंदोलन इन्हीं अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के विरुद्ध था.

Nellie Massacre 1983

नेल्ली नरसंहार में स्थानीय सरकारी मशीनरी और पुलिस के भी शामिल होने का आरोप लगाया गया था.

कई घटनाओं के चलते उपजी हिंसा

उसी दौरान आरोप लगाया गया कि अप्रवासी बांग्लाभाषी मुसलमानों ने लालुंग समुदाय की चार युवतियों का अगवा कर उनके साथ गैंगरेप किया और छह बच्चों की हत्या कर दी. तिवा समुदाय की जमीन पर कब्जा कर खेती करने लगे और गाएं चुरा लीं. यही नहीं, तभी चुनाव हुए, जिसका आदिवासियों ने बहिष्कार किया था पर बांग्लाभाषियों ने मतदान में हिस्सा लिया था. इससे असम के आदिवासी नाराज थे. इसकी प्रतिक्रिया यह रही कि 18 फरवरी 1983 को सेंट्रल असम के नेल्ली क्षेत्र में हजारों आदिवासियों ने मिलकर बांग्लाभाषी मुसलमानों के कई गांवों को घेर लिया.

इसमें नेल्ली समेत इलाके के 14 अन्य मुस्लिम बहुल गांवों को भीड़ ने घेर रखा था. गांव की सभी सड़कों पर कब्ज़ा कर लिया. कई घर जला दिए गए. भागने की कोशिश करने वालों का कत्ल कर दिया. छह घंटे के भीतर दो हजार से भी ज्यादा बंगाली मुसलमानों का सरेआम कत्ल कर दिया गया. हालांकि, गैर आधिकारिक तौर पर मृतकों का यह आंकड़ा तीन हजार से ज्यादा बताया जाता है.

Nellie Massacre 1983 History

18 फरवरी 1983, असम के इतिहास की वो तारीख है जब नेल्ली नरसंहार हुआ था.

स्थानीय पुलिस पर भी लगे थे आरोप

तब नेल्ली नरसंहार में स्थानीय सरकारी मशीनरी और पुलिस के भी शामिल होने का आरोप लगाया गया था. यह नरसंहार तब समाप्त हुआ, जब शाम को सीआरपीएफ पहुंची. हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि कई जीवित बचे लोगों ने बताया था कि स्थानीय पुलिस ने सीआरपीएफ की बटालियन को यह समझाने का प्रयास किया था कि इलाके में कोई हिंसा हुई ही नहीं. धुआं तो खेती के अपशिष्टों के जलने से निकल रहा था. इसके साथ ही स्थानीय पुलिस ने सीआरपीएफ की बटालियन को राष्ट्रीय राजमार्ग पर गश्त के लिए भेज दिया था. आखिरकार सीआरपीएफ की एक बटालियन को एक महिला ने रोका और उसे गांव तक ले गई. इसके बाद मामले का खुलासा हुआ.

किसी को नहीं हुई थी सजा

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 1983 में हुआ नेल्ली नरसंहार आजाद भारत में तब तक का सबसे बड़ा नरसंहार था. उस समय सरकार की ओर से मृतकों के परिजनों को पांच-पांच हजार रुपये मुआवजा दिया गया था. नरसंहार के बाद कई सौ रिपोर्ट दर्ज की गई थीं. बताया जाता है कि पुलिस ने कुल 688 आपराधिक मामले दर्ज किए थे. इनमें से 378 मामलों को सबूतों के अभाव में बंद कर दिया गया था.

इस मामले में कुछ लोग गिरफ्तार भी किए गए थे. 310 आपराधिक मामलों में आरोप तय होने थे. हालांकि साल 1985 में हुए असम समझौते के कारण इन मामलों को भी बंद कर दिया गया. इस तरह से नेल्ली नरसंहार से जुड़े सभी मामले वापस ले लिए गए थे. इसलिए इस जघन्य नरसंहार के लिए किसी को सजा मिलना तो दूर, मुकदमा तक नहीं चला.

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