व्यक्ति परिचय
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( आदरणीया अनामिका अनु जी )
आज साहित्योदय के पटल पर एक जानकार नाम ,चर्चित व्यक्तित्व पर कलम चलाना ,सृजन करना या कुछ लिखने में अजीब सा लग रहा ,पता नहीं क्यों ।परिचय या मुलाकात एकाध बार यूं ही अनायास सा देशप्राण या किसी समारोह में हुआ है शायद …..! स्मृतियां धुंधली हो रही ,संभव है कि उन्हें भी इसका भान न हो …खैर ,!याद करना या रख पाना भी दुरुह कार्य है किसी के लिए भी ।
हर लम्हा जेहन में ठहरता है अगर रु ब रु परिचय में किसी से मिल बैठकर बातें की गयी हों ….किसी से भी ।.
आदरणीया अनामिका अनु जी बहुआयामी व्यक्तित्व की धरोहर हैं ।क्षेत्र चाहे कला का हो या साहित्य का ,नाटक (ड्रामा ) का हो या दूरदर्शन आकाशवाणी ,समाचारपत्रके संपादन का हो या कोई अन्य क्षेत्र भी ।वाराणसी की साधनास्थली जिसकी भी हो कलम या व्यक्तित्व की खनक गूंजती ही है ।
पहचान की रौशनी दूर दूर तक फैली है इनकी ।कितनी कशिश है रचना की शुरूआत में …ओह !
” नहीं होती पूजा हमसे
नहीं पढा जाता हमसे नमाज
न प्रार्थना में मोमबत्ती जलाती हूं — दरअसल ये शब्द नहीं हैं
जिंदगी के अंधेरों और उजालों के बीच अनुभवों की तहरीर है ,इस कविता के हर लफ़्ज़ को सर आंखों पर रखकर लिखा गया है
लोगों की निगाहों के हर मुकाम से मिले तंज मज़ाह निगारी के बेस्वाद फल हैं ।क़लम की क़यामत की हर तहरीर शब्दों के हमरक़ाब होती है ।लफ़्ज़ों के पिरोए मोतियों की खनक़ भला क्यूं जाए ?कविता का भाषिक स्वरुप हर बार नई पड़ताल तलाशती है ।
और दूसरी कविता ….
सपाट बयानी की दहलीज़ लांघती हुई पूछती है —
” जिंदा हो तो जिंदा होने का प्रमाण दो
,मात्र सांसों के चलने का नाम जिंदगी नहीं दोस्त ,
समय संदर्भ से जूझती व्यवस्था पर हथौड़ा ही तो है ?
मेरे हिसाब से किसी झन्नाटेदार चांटे की तरह ।
मैं कोई लंबा चौड़ा बखान करने की स्थिति में नहीं हूं ,इसलिए कि शब्द कहीं रौ में बहकर मुझसे परेशान न हो जाय ।
आदरणीया अनामिका अनु की परिचयात्मकता इतना तो अवश्य ज्ञात हुआ कि इनकी रचनाओं में ज्यादा रेलेवेंट है ।मस्तिष्क और हृदय के बंटवारे का सरलीकरण इनकी रचनाओं में झलकता है ।पता नहीं इस तरह का मूल्यांकन सही है या नहीं पर कई दिशाओं में लेखनी झंकृत होती है ।
आज इतना ही …,
क्षमायाचना सहित ….!
संजय ‘ करुणेश ‘