Sunday, November 24, 2024

राष्ट्रीय

पति-पत्नी में कोई भी एक दूसरे से मांग सकता है भरण-पोषण, बांबे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर लगाई मुहर

Between husband and wife, anyone can demand maintenance from each other, Bombay High Court has stamped on the order of the lower court

नई दिल्ली। पति पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में जब गुजारे भत्ते की बात आती है तो ज्यादातर भरण-पोषण पाने के अधिकार का आदेश पत्नियों के पक्ष में जाता है, लेकिन कानून में दोनों को एक दूसरे से गुजारा भत्ता मांगने और पाने का अधिकार है। बांबे हाई कोर्ट ने एक आदेश में तलाक होने के बाद पत्नी द्वारा पति को 3,000 रुपये महीने अंतरिम भरण पोषण के तौर पर देने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-25 के तहत पति पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण पोषण मांगने का अधिकार है। इतना ही नहीं, तलाक होने के बाद भी पति व पत्नी एक दूसरे से भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकते हैं और कोर्ट इसका आदेश दे सकता है। कानून की इस व्याख्या ने भरण पोषण के कानूनी अधिकार को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।
बांबे हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के दो आदेशों पर अपनी मुहर लगाई है। एक आदेश पत्नी द्वारा 3,000 रुपये महीने पति को गुजारा भत्ता देने का था और दूसरे में पत्नी द्वारा आदेश पर अमल नहीं किए जाने पर वह जिस स्कूल में पढ़ाती है वहां के प्रधानाचार्य को आदेश दिया गया था कि महिला के वेतन से प्रतिमाह 5,000 रुपये काटकर कोर्ट में भेजे जाएं। हाई कोर्ट ने दोनों आदेशों को सही ठहराते हुए मामले में दखल देने से मना कर दिया और महिला की याचिका खारिज कर दी।
महिला की ओर से जोर देकर कहा गया था कि उसका तलाक हो चुका है और तलाक की डिक्री 2015 में पारित हो चुकी है। ऐसे में पति उससे भरण पोषण की मांग नहीं कर सकता। लेकिन हाई कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 की व्याख्या करते हुए कहा कि पति या पत्नी कोई भी अर्जी दाखिल कर स्थायी भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकता है और कोर्ट डिक्री पास करते वक्त या उसके बाद किसी भी समय ऐसी अर्जी पर भरण पोषण देने का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि कानून में कही गई लाइन ‘उसके बाद किसी भी समय’ को सीमित अर्थ में नहीं लिया जा सकता और न ही कानून बनाने वालों की ऐसी मंशा हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि अगर इसी धारा की उपधारा दो और तीन को देखा जाए तो उसमें कोर्ट को किसी भी समय बदली परिस्थितियों के मुताबिक आदेश में बदलाव करने का अधिकार है। हाई कोर्ट ने कहा कि धारा-25 सिर्फ तलाक की डिक्री तक सीमित नहीं है। डिक्री धारा-नौ में दाम्पत्य संबंधों की पुनर्स्थापना की हो सकती है, धारा-10 में ज्युडिशियल सेपरेशन की हो सकती है या फिर धारा-13 में तलाक की हो सकती है अथवा धारा-13बी में आपसी सहमति से तलाक की हो सकती है। तलाक को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी डिक्रियों में पक्षकार पति पत्नी ही रहते हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि तलाक के बाद पति या पत्नी ऐसी अर्जी नहीं दाखिल कर सकते। भरण पोषण के प्रविधान गुजारा करने में असमर्थ जीवनसाथी के लाभ के लिए हैं। इस धारा का इस्तेमाल पति या पत्नी में से कोई भी कर सकता है चाहे डिक्री धारा-नौ से लेकर 13 में किसी भी तरह की क्यों न पारित हुई हो, उस डिक्री से शादी टूट चुकी हो या बुरी तरह प्रभावित हुई हो। हाई कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच तलाक की डिक्री से धारा-25 के प्रविधान का दायरा सीमित नहीं किया जा सकता।
इस कानूनी व्यवस्था पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि हाई कोर्ट ने वही कहा है जो कानून में लिखा है। कानून पति-पत्नी दोनों को गुजारे भत्ते का दावा करने का अधिकार देता है। ऐसा आदेश देते वक्त कोर्ट सिर्फ यह देखता है कि मांग करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है कि नहीं। वह भत्ता पाने के मानक पूरे करता है या नहीं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पत्नी द्वारा पति को भरण-पोषण देने का आदेश बहुत कम सुनने को मिलते हैं। 11 वर्ष न्यायाधीश रहने के दौरान उनके सामने पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता मांगने के तो बहुत से मामले आए, लेकिन पति द्वारा भरण-पोषण मांगने का कोई मामला नहीं आया। कुछ कानूनविदों का यह भी मानना है कि भरण-पोषण की अर्जियां तलाक की डिक्री पास करते वक्त ही निपटा दी जानी चाहिए। तलाक होने के बाद भरण-पोषण का दावा नहीं किया जा सकता। तलाक की डिक्री देने वाले जज का दायित्व है कि वह उसी समय इन पहलुओं को देखे और आदेश दे।
क्या था मामला
महाराष्ट्र के इस मामले में शादी 1992 में हुई थी और 2015 में पत्नी की तलाक की अर्जी स्वीकार करते हुए अदालत ने तलाक की डिक्री पारित कर दी थी। पत्नी ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक लिया था। बाद में पति ने अदालत में अर्जी दाखिल कर पत्नी से स्थायी भरण-पोषण दिलाने की मांग की। पति ने कहा कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है जबकि उसकी पत्नी एमए-बीएड है, शिक्षिका है और उसका वेतन 30,000 रुपये महीने है। उसने पत्नी का करियर बनाने में अपने पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में उसे पत्नी से 15,000 रुपये महीने स्थायी गुजारा भत्ता दिलाया जाए। इसके अलावा 3,000 रुपये महीने अंतरिम गुजारा भत्ता भी मांगा था। निचली अदालत ने 2017 में अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश दिया था। जब पत्नी ने आदेश का पालन नहीं किया तो पति ने बकाया दिलाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने 2019 में पत्नी के वेतन से 5,000 रुपये प्रतिमाह काटकर बकाया देने का आदेश दिया था। पत्नी ने दोनों ही आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।