Sunday, November 24, 2024

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अंतरराष्ट्रीय प्रसारमाध्यमों में भारत के विरुद्ध चल रहा ‘दुष्प्रचार युद्ध !’

. विश्‍व में भारत की बदनामी करने हेतु प्रसारमाध्यमों ने कोरोना के उपायों के संदर्भ में किया हुआ दुष्प्रचार !

१ अ. विद्वेषी लेखन करनेवाला ‘द लैन्सेट’ मासिक !

 

१ अ १. कोरोना निर्मूलन के परिप्रेय में भारत के नियोजन की आलोचना करना : ‘द लैन्सेट’ नाम के चिकित्सकीय विषय के एक मासिक में हाल ही में यह प्रकाशित किया गया था कि कोरोना की दूसरी लहर में भारत प्रभावशाली रूप से नहीं लड सकता । भारत में अनेक लोगों की मृत्यु हो रही है । कोरोना के संदर्भ में भारत का नियोजन अच्छा नहीं इत्यादि । कोरोना महामारी एक जैविक युद्ध है, जो १०० वर्षों में एक ही बार आता है । उसके साथ लडते समय हमारी चिकित्सकीय क्षमता अल्प पड गई; परंतु अब भारत ने उसमें बहुत प्रगति की है । भारत के प्रसारमाध्यमों में (मीडिया में) ‘कुछ चीनी अथवा पाकिस्तानी हस्तक होंगे’, ऐसा लगता है । जब विदेशी माध्यमों में भारत के विरुद्ध कुछ बात छप जाती है, तब वे तुरंत उसका संदर्भ देकर भारतीय माध्यमों में लिखना आरंभ कर देते हैं । अ २. भारत में हुए चुनाव और कुंभपर्व पर कोरोना के प्रकोप का ठिकरा फोड देना ! : ‘द लैन्सेट’ मासिक में लिखा गया था कि भारत में चुनाव होने से कोरोना की दूसरी लहर आई; परंतु यह चूक है । जिन ५ राज्यों में चुनाव हुए, वहां सभाएं हुईं और भीड भी इकट्ठा हुई; परंतु उसके कारण वहां कोरोना का प्रकोप बढने का दिखाई नहीं दिया । इसी प्रकार माध्यमों ने कुंभपर्व के संदर्भ में भी दुष्प्रचार किया था । कुंभपर्व में बहुत भीड होती है; परंतु उससे कोरोना का विस्फोट होने का प्रमाणित करनेवाले कोई आंकडें सामने नहीं आए हैं । इसके विपरीत भारत के जिन राज्यों में चुनाव नहीं थे अथवा कुंभपर्व नहीं था, उन राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर आई और बढ भी गई ।

 

१ अ ३. टीकाकरण के आंकडों पर आपत्ति ! : ‘द लैन्सेट’ मासिक का ‘भारत में बहुत ही अल्प लोगों का टीकाकरण हुआ’, ऐसा लिखना भी चूक है । अभीतक भारत में १८ करोड से भी अधिक लोगों का टीकाकरण हुआ है । जो भारतीय हैं, उन्हें भारत की बदनामी करने से पैसे मिलते हैं, ऐसे लोगों के द्वारा ही ऐसे मासिकों को जानकारी मिलती रहती है ।

 

१ अ ४. टीकों के निर्यात के सूत्र के आधार पर विरोध करना : इस मासिक में यह प्रश्‍न उठाया गया था कि भारत ने विदेशों में टीकों का निर्यात क्यों किया ? वास्तव में जब टीकों का निर्यात किया गया, तब भारत में इस महामारी का विस्फोट होनेवाला है, ऐसे कोई भी संकेत दिखाई नहीं दे रहे थे । अब यही लोग यह कहते हैं कि टीकाकरण तो देश के लिए बहुत अच्छी बात है और छोटे बच्चों का भी टीकाकरण होना चाहिए ।

 

१ अ ५. विश्‍व में भारत की बदनामी होने के उद्देश्य से दुष्प्रचार करनेवाला मासिक : ‘द लैन्सेट’ में इससे पूर्व भी अनेक अनुचित लेख प्रकाशित हो चुके हैं, जिसके कारण विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने भी उसका विरोध किया था । इस मासिक में प्रकाशित होनेवाली प्रत्येक बात १०० प्रतिशत सत्य होती ही है, ऐसा नहीं है । यह मासिक विश्‍व में भारत की बदनामी करने हेतु दुष्प्रचार करता है और भारत का अहित चाहनेवाले लोग ऐसे माध्यमों की सहायता करते हैं ।

 

२. जनता को भारतीय प्रसारमाध्यमों द्वारा टीकाकरण के संदर्भ में किए जा रहे दुष्प्रचार की बलि नहीं चढनी चाहिए !

२ अ. टीकाकरण प्रक्रिया का किया गया विरोध ! : जनवरी २०२१ में भारत ने टीकाकरण अभियान का आरंभ किया, तब देश के बुद्धिजीवी, राजनेता और गैरसरकारी सामाजिक संगठन (एन्.जी.ओ.) ने प्रसारमाध्यमों के द्वारा इसका पुरजोर विरोध किया और ‘हम टीका नहीं लेंगे’, ऐसा भी बताया । टीकाकरण अभियान के विरोध में इंडियन एक्स्प्रेस ने १८२, ‘लोकसत्ता’ ने १७२, ‘नवभारत टाइम्स’ ने २३६, ‘हिन्दुस्थान टाइम्स’ ने १२३, ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने २८, ‘द वायर’ मासिक ने ७८ और ‘स्क्रोल’ ने १२२ लेख प्रकाशित किए थे । जिन टीकों की संपूर्ण विश्‍व ने प्रशंसा की, उन्हीं टीकों की भारत के अधिकांश राजनीतिक दलों ने बदनामी की । भारत के गैरसरकारी संगठन (एन्.जी.ओ.) सदैव भारत के प्रति दुष्प्रचार करते हैं । ऐसे २६५ संगठनों ने टीकाकरण अभियान का विरोध किया ।

 

२ आ. टीकाकरण की आलोचना, आलोचना और आलोचना ही ! : भारतीय नौकरशाही के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी टीके के विरोध में बोलने लगे । माध्यमों में भी ‘टीके के कारण कितना हानि पहुंची’, इसकी झूठी जानकारी प्रसारित की गई । इसके फलस्वरूप पहले २-३ महिने टीका लेने के लिए कोई आगे नहीं आया । जब भारत ने ६५ देशों को इस टीके का निर्यात किया और उससे ये देश खूष हुए, तब भारतीय लोगों के ध्यान में आया कि यह अतिबुद्धिजीवी लोगों के कृत्य थे । देश में जब कोरोना की दूसरी लहर आई, तब टीका लेने के लिए लोगों की भीड उमडने लगी और तब मांग और आपूर्ति का गणित बिगड गया ।

 

२ इ. अपने देश के ही पैर पीछे खींचनेवाले राष्ट्रद्वेषी ! : जब लोगों ने टीके लेना आरंभ किया, तब इन्हीं माध्यमों में ‘भारत में टीकों की आपूर्ति नहीं की जा रही है और दूसरे देशों को टीकों का निर्यात किया जा रहा है’, यह दुष्प्रचार करना आरंभ किया । इसका अर्थ ‘चीत भी मेरी और पट भी मेरी !’ हमारे देश में हमारे ही देश के पैर पीछे खींचनेवाले बहुत लोग हैं । सामान्य जनता को ऐसे लोगों के झांसे में नहीं आना चाहिए ।

 

३. भारतीय न्यायतंत्र को प्रशासन चलाने की ओर ध्यान देने की अपेक्षा लंबित अभियोंगो को समाप्त कर लोगों को न्याय दिलाना अपेक्षित !३ अ. न्यायालय की मर्यादाएं और प्रशासन का कर्तव्य : जो काम न्यायालय का नहीं है, ऐसे क्षेत्र में भी न्यायालय ने ध्यान देना आरंभ किया है । न्यायालय की एक पीठ ने ऑक्सिजन के वितरण करने हेतु १२ विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का निर्णय लिया । भारत में सहस्रों चिकित्सालय हैं । जिन्हें देशभर के वितरण पद्धति का अनुभव नहीं है, ऐसे लोग देश में ऑक्सिजन का कैसे वितरण कर सकेंगे ? यह काम प्रशासन का है । न्यायालय प्रशासन को वास्तविकता का केवल भान करा सकता है; परंतु वितरण का काम नहीं कर सकता । इसी सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के विरोध में चल रहे आंदोलन के समय आंदोलनकारियों की मांगों को जान लेने हेतु एक समिति का गठन किया था; परंतु यह समिति कुछ भी नहीं कर सकी ।

 

३ आ. सरकार जब कानून बनाती है, तब उसमें कुछ उचित-अनुचित हो सकता है और उसकी पडताल करने का काम न्यायालय का होता है । किसान आंदोलन की अवधि में भी एक समिति गठित की गई । जब कोई कानून बनता है, तब संसद में उसपर बडी चर्चा होती है और उसके उपरांत ही संवैधानिक पद्धति से उसे पारित किया जाता है । कुछ लोग भले ही उसपर आपत्ति दर्शाते हों; परंतु कानून बहुमत से पारित होता है । यहां भी न्यायालय द्वारा गठित समिति को किसान संगठनों ने महत्त्व नहीं दिया ।

 

३ इ. आज के समय में उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालयों में करोडों अभियोग लंबित हैं और वो सामान्य लोगों को न्याय नहीं दिला सकते । ऐसी स्थिति में न्यायालयों को प्रशासन चलाने की अपेक्षा लंबित अभियोगों को समाप्त कर लोगों को तुरंत न्याय दिलाना चाहिए ।

 

४. चीनी विषाणु के कारण भारत की हुई हानि की भरपाई करवाने के लिए वैश्‍विक न्यायालय में चीन के विरुद्ध अभियोग चलाया जाना चाहिए !

चीनी विषाणु की दूसरी लहर में यह ध्यान में आया कि यह विषाणु जेनिटीकली मॉडिफाइड है । सामान्यतः जब कोई विषाणु टूट जाता है, तब उसकी शक्ति न्यून होती है; परंतु जब यह विषाणु टूटता है, तब उसकी शक्ति बढने की बात ध्यान में आई है । क्या इस विषाणु को आर्टिफिशियल इंटलिजन्स पद्धति से बनाया गया है ? विश्‍व स्वास्थ्य संगठन इस संदर्भ में कुछ भी नहीं कर सकता; परंतु वह मूर्खता निश्‍चितरूप से कर रहा है ।

 

भारतीय माध्यमों ने किहा कि इस चीनी विषाणु का भारत में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन अर्थात अंगों का टूटकर क्षत-विक्षत होना) हुआ, तो विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने उसे ‘इंडियन वेरिएंट’ नाम दिया । इस संगठन ने चीन से निकले हुए विषाणु को चीनी विषाणु नहीं कहा, तो उसे कोरोना अर्थात कोविड १९ नाम दिया । इसपर भारतीय माध्यमों को इस संगठन के पूछना चाहिए थे । यह भारत की बदनामी करने की एक अलग पद्धति है । विश्‍व के कुछ वैज्ञानिकों ने यह शोध किया कि वर्ष २०१६ में चीन ने कोरोना विषाणु तैयार किया है । चीन ने वैश्‍विक जैविक युद्ध आरंभ किया है तथा उसने वर्ष २०१५-१६ में ही उसका नियोजन किया था । इसे ध्यान में लेते हुए इस विषाणु के कारण भारत की हुई हानि की भरपाई कराने हेतु चीन पर दबाव बनाया जाना चाहिए और चीन के विरुद्ध वैश्‍विक न्यायालय में अभियोग चलाया जाना चाहिए !’

 

– (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन, पुणे