Saturday, November 23, 2024

राज्य

50 हजार से सीधे चार लाख रुपए सालाना हो गई मेडिकल की पढ़ाई की फीस

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हम दिन-रात तीन साल, चार साल घिसते हैं कि किसी तरह NEET क्वॉलिफाई हो जाए और हमें सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल जाए. लेकिन NEET में अच्छी रैंक लाने के बावजूद हमें पढ़ाई के लिए अपना घर और जमीन गिरवी रखनी पड़ रही है. पहले अमीर का बच्चा प्राइवेट कॉलेज में जाता था, क्योंकि उसकी फीस थोड़ी सी महंगी होती है. गरीब का बच्चा सरकारी कॉलेज में एडमिशन लेता था. लेकिन अब माहौल ऐसा हो गया है कि अमीर का बच्चा ही प्राइवेट कॉलेज में जा रहा है और अमीर का बच्चा ही गवर्नमेंट कॉलेज में भी जा रहा है. अगर हमें पहले से पता होता कि सरकारी मेडिकल कॉलेज में भी इतनी फीस है, तो मैं तैयारी करने से पहले ही हार मान लेता.
NEET यानी National Eligibility Cum Entrance Test. मेडिकल की तैयारी करने वालों के लिए डॉक्टर बनने का प्रवेश द्वार. डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट जी-जान लगाकर NEET को क्रैक करने की कोशिश करते हैं. ताकि अच्छे नंबर ला सकें और किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले सकें. लेकिन जरा सोचिए कि दिन-रात की मेहनत के बाद ठीक एडमिशन के समय आपको पता चले कि सरकारी मेडिकल कॉलेज की फीस ‘आठ गुना’ तक बढ़ा दी गई है, तो फिर क्या होगा?

क्या है मामला?

उत्तराखंड में कुल तीन मेडिकल कॉलेज हैं. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, दून. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर. चौथा अल्मोड़ा में निर्माणाधीन है. 26 जून 2019 को उत्तराखंड सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी और मेडिकल कॉलेज, दून में बॉन्ड सिस्टम को खत्म कर दिया.बॉन्ड सिस्टम के बारे में बताते हुए हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज के छात्र कमल गहतोड़ी कहते हैं,

शुरुआत में जब हल्द्वानी में पहला मेडिकल कॉलेज बना, तो उत्तराखंड सरकार को पहाड़ों और दुर्गम क्षेत्रों में डॉक्टर्स चाहिए थे. उस समय ये निर्णय लिया गया कि स्टूडेंट्स को बॉन्ड के जरिए सब्सिडाइज फीस की सुविधा दी जाएगी. अगर आप बॉन्ड भरते हैं, तो 5 साल या 3 साल जहां उत्तराखंड सरकार आपकी ड्यूटी लगाएगी, वहां आपको सर्विस देनी पड़ेगी. इसके तहत आपसे फीस केवल 50-60 हजार रुपए ही ली जाएगी. अगर बॉन्ड नहीं भरते हैं, तो आपको फीस चार लाख रुपए देनी पड़ेगी. पिछले साल 26 जून को सरकार का एक नोटिस आया, जिसमें लिखा था कि रिक्त पदों में से ज्यादातर भर चुके हैं. जो खाली हैं, वो भी आने वाले दिनों में बॉन्डेड डॉक्टर्स के जॉइन करने के बाद भर जाएंगी, इसलिए बॉन्ड की व्यवस्था को दो मेडिकल कॉलेजों से हटा दिया गया.

यानी कि सरकार के एक आदेश के बाद छात्रों के पास 50 हजार रुपए सालाना फीस देने का ऑप्शन खत्म हो गया. अब उन्हें चार लाख रुपए फीस देना ही था. ये आदेश भी एडमिशन के लगभग 15 दिन पहले आया.ऐसे में हुआ क्या कि बहुत सारे छात्र, जो इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम नहीं इकट्ठा कर सकते थे, जिनके पास इतना पैसा नहीं था, उन्हें इतनी मेहनत और सारी योग्यताओं के बावजूद पीछे हटना पड़ा. राकेश बताते हैं,

पहाड़ में रहने वाले लोगों की आय बहुत कम है. ज्यादातर आबादी टूरिज्म पर निर्भर है. बाकी खेती-किसानी करते हैं. नौकरी-पेशा लोगों की संख्या बहुत कम है. हर कोई सरकारी कॉलेज इसीलिए चाहता है कि फीस ज्यादा न लगे. लेकिन पिछले साल जब बॉन्ड सिस्टम खत्म हुआ, तो तो कई सारे बच्चे अच्छी रैंक होने के बावजूद एडमिशन नहीं ले पाए. इनमें मेरा एक दोस्त भी शामिल है, जो इस समय पंतनगर में वेटनरी की पढ़ाई कर रहा है. वो MBBS में पैसे न होने की वजह से एडमिशन नहीं ले पाया, जबकि उसने NEET क्वॉलिफाई करके गवर्नमेंट कॉलेट में सीट पाई थी.

पिछले साल एडमिशन के ठीक पहले बॉन्ड सिस्टम को खत्म करने का फैसला छात्रों के लिए एक बड़े झटके की तरह था. उस समय तो किसी तरह स्टूडेंट्स ने रिश्तेदारों से कर्ज लेकर और सेविंग्स निकालकर एडमिशन ले लिया, लेकिन अब इस साल फिर से उतनी ही फीस चुका पाना संभव नहीं हो पा रहा.गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी के छात्र दीपक बताते हैं,

पहले 50-70 हजार तक फीस हुआ करती थी. अभी 4.26 लाख फीस है. पिछले साल हम इसका विरोध नहीं कर पाए, क्योंकि इतनी ज्यादा मुश्किल से सीट मिलती है और इतना कम्पिटीशन के बाद वहां तक पहुंचे थे. उस समय किसी तरह करके हमने फीस भरी. थोड़ी बहुत हमारी सेविंग्स थी और बाकी रिश्तेदारों की हेल्प से पहले साल की फीस भर दी थी. मेरे परिवार में भी बस थोड़ी सी खेती है. भइया लोग परिवार में हैं, जो प्राइवेट नौकरी करते हैं. खर्चा चल जाता है थोड़ा-बहुत घर का. अभी तो कोरोना की वजह से वो सब होटल वगैरह भी बंद है, जहां सब लोग काम करते थे और दुकान भी बंद है. अब हम लोग 31 जुलाई तक चार लाख रुपए कहां से जमा करें?

ऐसा नहीं है कि फीस जमा करने के बाद छात्र चुप बैठे रहे. उन्होंने पूरे साल विरोध किया. इस बढ़ी हुई फीस के विरोध में उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. मुख्यमंत्री, राज्यपाल समेत सभी कैबिनेट मंत्रियों को पत्र लिखा. सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलाया. लेकिन अब तक कोई पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला. दून मेडिकल कॉलेज की स्टूडेंट प्राची बताती हैं,

4.26 लाख फीस पहले से थी. लेकिन तब बॉन्ड का ऑप्शन भी था. यानी कि जो बच्चे फीस नहीं भर पाते थे, वे बॉन्ड भर लेते थे. अब इन्होंने बॉन्ड सिस्टम को खत्म कर दिया और फीस भी कम नहीं की. यही मुद्दा हमने कोर्ट के सामने रखा है. पिछले साल घर वालों ने किसी तरह से रिश्तेदारों से हेल्प लेकर फीस भरी. अब फिर से नोटिस आ गया है कि 31 जुलाई तक फीस देनी है. एक तो ये कोरोना की महामारी, ऊपर से हम इस स्थिति में हैं भी नहीं कि फीस दे सकें.

हम सीएम हाउस गए, गवर्नर हाउस गए. सारे मंत्रियों के पास गए. सारे बच्चों की साइन वगैरह के साथ सबको लेटर लिखे. हमारे कॉलेज में अगर कोई सरकार का प्रतिनिधि आता था, तो हम उसके सामने भी इस मुद्दे को उठाते थे. लेकिन सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला. उन्होंने पूरी तरह से आंखें बंद कर रखी है. उनको पता सब है, लेकिन फिर भी कुछ नहीं कर रहे हैं.

दूसरे राज्यों में क्या है फीस?

छात्रों का दावा है कि उत्तराखंड के MBBS स्टूडेंट्स की फीस पूरे देश में सबसे ज्यादा है. अन्य राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अधिकतम फीस एक लाख पच्चीस हजार तक है. कमल गहतोड़ी बताते हैं,

हम लोगों ने दूसरे स्टेट्स के मेडिकल कॉलेजों की फीस के बारे में पता किया. दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में तो मात्र 250 रुपए सालाना फीस है. मौलाना आजाद देश के टॉप मेडिकल कॉलेजों में से है. हमारे कॉलेज का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी उनके टक्कर का नहीं है. पहाड़ी राज्यों की बात करें, तो हिमाचल में बिना बॉन्ड के फीस 50 हजार सालाना है. पूरे देश भर के मेडिकल कॉलेजों की फीस देखने के बाद हमें यही पता चला कि बॉन्डेड या नॉन-बॉन्डेड सबसे ज्यादा फीस जो है, वो 1 लाख 20 हजार के आसपास तक ही है. लेकिन हमारे उत्तराखंड में फीस लगभग चार गुना है.

क्या चाहते हैं छात्र?

हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज ने 31 जुलाई तक छात्रों को फीस जमा करने के लिए कहा है. एक तो कोरोना लॉकडाउन की वजह से आर्थिक तंगी और दूसरी तरफ पिछले साल का कर्ज. और अब फिर से इस साल के लिए चार लाख रुपए का इंतजाम करना छात्रों के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे में छात्रों की सरकार से यही मांग है कि भले ही बॉन्ड सिस्टम को दोबारा न शुरू किया जाए, लेकिन फीस इतनी रखी जाए, जितनी वहन की जा सके. दूसरे राज्यों की ही तरह 1 लाख 20 हजार रुपए तक फीस रखी जाए.छात्र #WeDemandAReasonableFee हैशटैग से कैम्पेन चला रहे हैं. छात्रों का कहना है कि ये फीस इतनी ज्यादा है कि डिग्री पूरा करने के लिए उन्हें अपना घर और ज़मीन तक गिरवी रखना होगा. किसान परिवार से आने वाले कमल गहतोड़ी कहते हैं,

या तो बॉन्ड का ऑप्शन मत हटाइए और अगर हटा रहे हैं, तो फिर उस हिसाब से फीस रखिए. अगर इतनी ज्यादा फीस रहेगी, तो बच्चे चाहकर भी MBBS नहीं कर पाएंगे. चार लाख तक का एजुकेशन लोन तो बिना गारंटर और बिना सिक्योरिटी के मिल जाता है. 7.5 लाख तक के लिए किसी गारंटर के साथ-साथ अपनी प्रॉपर्टी दिखानी पड़ती है. इसके ऊपर जितना आपको लोन चाहिए, उसके 1.25 गुना आपको अपनी प्रॉपर्टी गिरवी रखनी होगी, तब ही लोन मिलेगा.

गरीब और जरूरतमंद तबके को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी होती है. लेकिन यहां सरकार दोनों ही चीजों में फेल हो रही है. महंगी फीस की वजह से गरीब छात्र तो डॉक्टरी की पढ़ाई के बारे में सोच भी नहीं सकता है. अगर घर, जमीन गिरवी रखकर 25 लाख रुपए खर्च करके डिग्री ले भी ली, तो आप खुद ही सोचिए कि उसकी प्राथमिकता क्या होगी? हरसंभव तरीके से पैसा कमाकर अपना लोन चुकाना या फिर जरूरतमंदों का इलाज करना?सरकार का क्या कहना है?

मेडिकल कॉलेज, चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत आते हैं. यह विभाग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पास ही रखा है. हमने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन बात हो नहीं पाई. हमने चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव और निदेशक से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो सकी. अगर उनकी तरफ से कोई जवाब आता है, तो हम आगे अपडेट कर देंगे.