Friday, November 22, 2024

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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन से एक पूर्व आईएएस ने की डिमांड, 23846 मंदिर, चर्च व मस्जिदों की तरह हों आंध्र सरकार से मुक्त

 

पूर्व IAS/IPS की मुख्यमंत्री जगन से डिमांड : 23846 मंदिरों पर आंध्र सरकार का नियंत्रण, चर्च-मस्जिदों की तरह ​हो नियंत्रण से मुक्त

 

मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मु​क्त करने की माँग लगातार उठती रहती है। इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश में पद्मश्री से सम्मानित डॉ. टी हनुमान चौधरी ने कुछ रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के साथ मुहिम शुरू की है। राज्य की जगनमोहन सरकार से इन लोगों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मॉंग की है।

यह बात अब सभी के मन में घर करने लगी है कि आखिर किस आधार पर मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर रखा है? जबकि मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों की भी कम आमदनी नहीं है, क्या कभी सरकार ने उनकी आमदनी का हिसाब माँगा? यदि नहीं,क्यों? देश में क्या हिन्दुओं के मंदिरों में आने वाले चढ़ावे पर ही गिद्ध की नज़र रहती है? जिस दिन सरकार ने मस्जिदों, दरगाहों और चर्चों का हिसाब लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी, सरकार की आंखे खुली रह जाएँगी। मुस्लिम और ईसाई समाज दोनों हाथों सरकार को लूट रहे हैं, जिसको समाप्त करना भी जरुरी है। 
 

इस संबंध में क्राउडकैश (CrowdKash) की याचिका को डॉ. चौधरी सहित कई नामचीन व्यक्तियों मसलन पूर्व आईएएस अधिकारी आईवाईआर कृष्णा राव, के पद्मनाभैया और पूर्व IPS अधिकारियों एम नागेश्वर राव और के अरविन्द राव का समर्थन हासिल है। इन्होंने मंदिरों का प्रबंधन हिन्दुओं के हवाले करने की माँग की है।

याचिका में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश सरकार 23,846 हिंदू मंदिरों और उनकी संपत्तियों को नियंत्रित करती है। इनकी कीमत हजारों करोड़ रुपए है। डॉ. चौधरी का कहना है कि हिंदुओं को अपने मंदिरों के प्रबंधन में उतनी ही स्वतंत्रता होनी चाहिए जितनी कि मस्जिदों और चर्चों के प्रबंधन के लिए दी गई है।

डॉ. चौधरी कहते हैं, “हिंदू मंदिरों के प्रबंधन और प्रशासन से खुद को अलग कर लें। आप (मंदिरों) को सौंपने की तिथि घोषित करें और हिंदुओं से सुझाव माँगे कि मंदिरों को किसे सौंपा जाना चाहिए।” उन्होंने जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार से अपील की कि वह 31 दिसंबर 2021 तक मंदिरों का नियंत्रण हिंदुओं को सौंप दे।

इस याचिका पर अब तक 7,000 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। याचिका में यह भी माँग की गई है कि आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्था अधिनियम, 1987 को निरस्त किया जाए और इसके स्थान पर एक नया कानून बनाया जाए।

याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं को हिंदू मंदिरों और उनकी संपत्तियों को धार्मिक व्यक्तियों और सरकार के साथ हिंदू प्रतिनिधियों को शामिल करने की अनुमति देनी चाहिए। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि धन, संपत्ति और मंदिरों के सभी संसाधनों का उपयोग केवल हिंदू मंदिरों के रखरखाव एवं विकास के लिए, हिंदुओं और हिंदू समुदाय की धार्मिक भलाई के लिए, हिंदू धर्म के संरक्षण, प्रचार और प्रसार के लिए किया जाना चाहिए।

आंध्र प्रदेश सरकार ईसाइयों पर काफी मेहरबान रहती है। पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के सत्ताधारी दल के ही एक सांसद ने ईसाई धर्मांतरण को सरकारी संरक्षण दिए जाने का खुलासा किया था। इसके बाद ऐसे इलाके में चर्च का निर्माण किए जाने का मामला सामने आया जहॉं केवल हिंदू ही रहते हैं। इतना ही नहीं जब ग्रामीणों ने इस पर आपत्ति जताई तो प्रशासन ने उनका कथित तौर पर उत्पीड़न किया।

धर्मांतरण को लेकर मिशनरीज की हकीकत का खुलासा करने वाले YSRCP नेता रघु रामकृष्णा राजू ने प्रदेश की सच्चाई बताते हुए खुलेआम कहा था कि सरकारी रिकॉर्ड में भले ही ईसाइयों की संख्या 2.5% है मगर, हकीकत में ये आँकड़ा 25% से कम नहीं है।

वहीं आंध्र प्रदेश में NGO ‘लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम’ ने अपनी रिसर्च में पाया था कि राज्य में 29841 ईसाई पादरियों को 5000 रुपए का एकबारगी मानदेय दिया गया। ये रुपए ‘डिजास्टर रिलीफ फण्ड’ से दिए गए। साथ ही इनमें से 70% ऐसे हैं, जिनके पास SC/OBC जाति प्रमाण-पत्र थे। जिसके बाद केंद्रीय समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इस मामले में कार्रवाई के लिए आंध्र प्रदेश के अधिकारी को पत्र लिखा था।