हिमाचल प्रदेश

हिमाचल समाचार:-फार्मा कंपनियों पर संकट; 5 हजार इकाइयां बंद होने के कगार पर, केंद्र सरकार जल्द उठाए कदम

केंद्र की कठोर नीतियों पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण ने उठाई आवाज

बीबीएन

देश की दवा निर्माण व्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली छोटी और मझोली दवा निर्माता इकाइयां आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही हैं। केंद्र सरकार की कठोर नीतियों और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की हालिया सख्त कार्रवाइयों ने इन इकाइयों को बंदी की स्थिति तक पहुंचा दिया है। इसी को लेकर ज्वॉइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल एमएसएमई ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को विस्तृत ज्ञापन भेजकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

फोरम ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने राहत नहीं दी तो आने वाले महीनों में लगभग चार से पांच हजार इकाइयां बंद होने की नौबत में पहुंच जाएंगी, जिससे न केवल किफायती दवाओं का उत्पादन ठप होगा बल्कि भारत का दुनिया की फार्मेसी के रूप में मिला गौरव भी संकट में पड़ सकता है। प्रतिनिधियों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने बीते वर्षों में जीएसटी सुधार और अन्य योजनाओं से उद्योग को आत्मविश्वास दिया और छोटे निर्माताओं ने गुणवत्ता सुधार में निवेश भी किया, लेकिन अब सीडीएससीओ की नीतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े उद्योगों के हित में और छोटे निर्माताओं के खिलाफ काम कर रही हैं। सबसे गंभीर समस्या पहली जनवरी, 2026 से लागू होने वाले रीवाइज्ड शेड्यूल एम मानकों को लेकर है, जिनका पालन भारी निवेश किए बिना संभव नहीं है और मौजूदा कर्ज बोझ में डूबी इकाइयां इसे वहन नहीं कर सकतीं, इसलिए मांग की गई है कि 50 करोड़ रुपए से कम वार्षिक टर्नओवर वाली इकाइयों को कम से कम पहली अप्रैल, 2027 तक मोहलत दी जाए।

फोरम ने भेदभाव का जड़ा आरोप

फोरम ने यह भी आरोप लगाया है कि रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, जहां छोटे उद्योगों को सिलेक्टिव तरीके से निशाना बनाया जाता है, जबकि बड़ी कंपनियों की ओर से अमरीका और अन्य देशों में हर महीने दवाओं की रिकॉल रिपोर्ट आने के बावजूद उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं होती। एक और बड़ा संकट बायो इक्विवेलेंस अध्ययन को लेकर है, जिसे दशकों से प्रमाणित दवाओं पर भी अनिवार्य कर दिया है और जिसकी लागत प्रति दवा 25 से 50 लाख रुपए है, जो छोटे उद्योगों के लिए मौत का फरमान है।

एक मंच पर आई 21 एसोसिएशन

इस जवलंत मुद्दे को लेकर देशभर की 21 से अधिक प्रमुख एसोसिएशनों ने संयुक्त मंच बनाया हैं, जिनमें सीआईपीआईए फोप, एसएमपीएमए, एचडीएम (बद्दी), एचपीएम (हरियाणा), केपीडीएमए (कर्नाटक), पीएमएटी (तमिलनाडु), डीएमएमए (गुजरात), एमपीपीएमओ (मध्यप्रदेश), आरपीएमए (राजस्थान), ओडीएमए (ओडिशा) और वीडीएमए (विदर्भ) सहित अन्य शामिल हैं।

फार्मा सेक्टर के अस्तित्व के लिए केंद्र सरकार जल्द उठाए कदम

हिमाचल दवा निर्माता संघ के प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है, किंतु इसके लिए केंद्र सरकार का सहयोग और कम से कम दस वर्षों का स्पष्ट रोडमैप आवश्यक है, क्योंकि नियमों को इतना कठोर बनाकर छोटे उद्योगों को समाप्त करना देश के स्वास्थ्य तंत्र और आने वाली पीढिय़ों दोनों के लिए घातक होगा।

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