
कहा, छात्रों को समान संवैधानिक अधिकार, छात्रावासों में भी सभी नियम और कानून एक
केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि हॉस्टल जेल नहीं हैं और राज्य के सभी मेडिकल कालेजों को सरकार के नए आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है। इससे छात्राओं के लिए बाधाएं हट गई हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्र और छात्राओं को समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं और छात्रावासों में भी लडक़ों और लड़कियों के लिए सभी नियम और कानून समान होंगे। कोझिकोड मेडिकल कालेज अस्पताल की छात्राओं ने पिछले महीने उच्च शिक्षा विभाग द्वारा रात साढ़े नौ बजे के बाद छात्रावास से बाहर जाने पर रोक लगाने वाली अधिसूचना पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा कि रात 9:30 बजे के बाद कफ्र्यू लगा दिया गया, जबकि छात्रों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं था।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि लड़कियों के संवैधानिक अधिकार हैं। उन पर इस तरह भेदभावपूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। छात्रावास जेल नहीं हैं। अदालत ने सभी मेडिकल कालेजों के प्राचार्यों को सरकार द्वारा छह दिसंबर को जारी नए आदेश का पालन करने का भी निर्देश दिया, जिसमें कुछ मौजूदा मानदंडों में ढील दी गई थी और छात्रों को निर्धारित समय के बाद न्यूनतम शर्तों के अधीन छात्रावास में प्रवेश करने की पर्याप्त छूट दी गई थी। अदालत ने नए आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह लिंग-तटस्थ था। राज्य महिला आयोग ने भी कोर्ट को बताया कि नए आदेश में लैंगिक समानता कायम है। उच्च शिक्षा विभाग ने पहले याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत को बताया था कि माता-पिता की मांगों और रात के समय छात्राओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सख्त प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया है।
बता दें कि दो दिन पहले केरल स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय ने अदालत में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कुछ दिलचस्प बातें थीं। इसमें कहा गया कि 18 साल की उम्र में स्वतंत्रता समाज के लिए उचित और अच्छी नहीं हो सकती है और महिलाओं को केवल 25 साल की उम्र में पूर्ण परिपक्वता प्राप्त होती है। लड़कियों के छात्रावासों में रात के कफ्र्यू का बचाव करते हुए यह भी कहा कि बिना किसी नियम के छात्रावास के गेट खोलना समाज के लिए हानिकारक होगा।
परिसर को सुरक्षित बनाना सरकार का दायित्व
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि परिसर को सुरक्षित बनाना सरकार का दायित्व है और महिला छात्रावासों पर कफ्र्यू लगाने से कोई उद्देश्य हल नहीं होगा। बाद में अदालत ने सरकार को सभी भेदभावपूर्ण प्रावधानों को हटाने के लिए एक नया आदेश जारी करने का निर्देश दिया। इसलिए छह दिसंबर को नया आदेश जारी किया गया।