अफगानिस्तान की महिलाओं का दर्द : ‘काश अल्लाह ने हम औरतों को बनाया ही नहीं होता’: हो रहा जानवरों से भी बदतर सलूक
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अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए भारतीय मुसलमानों विशेषकर महिला वर्ग को कट्टरपंथी मुल्लाओं के चुंगल से बाहर आने की कोशिश करनी चाहिए। ये लोग अपनी कुरीतियों को छुपाने के लिए हिन्दुओं को जातियों में बांट ध्यान हटाते रहे हैं, लेकिन शिक्षित हिन्दू भी अशिक्षित बन इनके मकड़जाल में फंस आपस में ही लड़ने लगता है। जिस दिन हिन्दुओं ने इन कट्टरपंथियों से पूछना शुरू कर दिया कि “बताओ तुम मुसलमानों में कितनी जातियां हैं? तुम मुसलमानों में एक जाति दूसरी जाति की मस्जिद में नमाज क्यों नहीं पढ़ सकता? एक जाति का मुर्दा दूसरी जाति के कब्रिस्तान में क्यों नहीं दफनाया जा सकता? क्यों नहीं एक जाति का दूसरी जाति में निकाह होता?” आदि आदि, इतना ही नहीं, हिन्दुओं में जातिवाद को बल देने डॉ भीमराव आंबेडकर के विचारों का गुणगान करते हैं, लेकिन डॉ आंबेडकर ने इस्लाम पर क्या विचार व्यक्त किए हैं, कभी नहीं करते चर्चा, क्यों? जिस दिन हिन्दुओं ने ये सवाल करने शुरू कर दिए, यकीन मानो, 60% तो इनकी दुकान बंद हो जाएगी यानि इनकी चौथराहट पर लगाम।
अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से तालिबान ने वहाँ इस्लामिक कानून शरिया के तहत कई कड़े नियम लागू किए हैं। गत सप्ताह तालिबान ने महिलाओं की उच्च शिक्षा और गैर-सरकारी संगठनों में काम करने पर रोक लगा दी। इसके बाद से, अफगानिस्तान में रहने वाली महिलाओं की स्थिति पर संकट और अधिक गहरा गया है। मौजूदा हालातों को लेकर एक अफगानी महिला ने कहा है कि काश अल्लाह ने महिलाओं को न बनाया होता।
दरअसल, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में कब्जा कर लिया था। इसके बाद से अब तक, तालिबान ने महिलाओं के पार्क में जाने, स्कूली शिक्षा, महिलाओं के सार्वजनिक स्थानों चेहरा ढँकने, बिना पुरुष साथियों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध जैसे कई फरमान जारी किए थे। इसके बाद अब, तालिबान ने महिलाओं की उच्च शिक्षा पर भी रोक लगा दी गई है।
इस रोक को लेकर एक 19 वर्षीय अफगानी महिला ने कहा है कि वह पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय जाना चाहती है। लेकिन प्रतिबंध के बाद वह नहीं जा सकती। उसने तालिबानी सरकार के फैसले पर दुःख जताते हुए कहा, “काश अल्लाह ने कभी औरत नहीं बनाई होती। अगर हम इतने बदकिस्मत ही हैं तो इससे अच्छा है कि हम मर जाएँ। हमारे साथ जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है। जानवर खुद से कहीं भी जा सकते हैं, लेकिन हम लड़कियों को अपने घरों से बाहर कदम रखने का भी अधिकार नहीं है।”
तालिबान सरकार के इस फैसले का वहाँ लगातार विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन की कई तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं। विरोध कर रही लड़कियों का कहना है, “तालिबान ने यूनिवर्सिटी से लड़कियों को बाहर कर दिया। बाहर के सम्मानित लोग, कृपया हमारा समर्थन करें, या तो सभी के लिए अधिकार हो या किसी के लिए नहीं।”
रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी काबुल में हुए प्रदर्शन के बाद तालिबानी सरकार ने विरोध कर रही लड़कियों को गिरफ्तार किया था। इनमें से कुछ लोगों को बाद में छोड़ दिया गया। वही, कुछ ऐसे वीडियो भी सामने आए हैं जिनमें तालिबान के सुरक्षा अधिकारियों को अपने अधिकारों के हनन का विरोध कर रही महिलाओं के साथ मारपीट करते देखा जा सकता है।
अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चिंता जताई है। यही नहीं, यूएन ने अफगानिस्तान में कई कार्यक्रमों को भी रोक दिया है। साथ ही, चेतावनी देते हुए कहा है कि इन प्रतिबंधों के कारण संयुक्त राष्ट्र कुछ अन्य चीजों पर भी रोक लगा सकता है। इस चेतावनी को लेकर अनुमान लगाया जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान को मिलने वाली फंडिंग पर रोक लगा सकता है।