तुष्टिकरण पुजारी लखीमपुर खेरी और गोधरा फाइल्स भी बनाने को जरूर कह रहे हैं, लेकिन मलियाना में हुए मुस्लिम नरसंहार और मुज़फ्फरनगर दंगों पर हिन्दुओं के नरसंहार तथा गोधरा से पूर्व होते रहे दंगों पर कोई नहीं बोल रहा, क्यों? प्राप्त समाचारों के अनुसार बहुत जल्द गोधरा पर भी फिल्म बनाने की योजना बन रही है, जिसमें दंगे के मुख्य कारणों को उजागर कर मुस्लिम कट्टरपंथियों और छद्दम सेक्युलरिस्टों को बेनकाब किया जाएगा। उसका कारण है कि जितने भी छद्दम सेक्युलरिस्ट्स हैं, इनमें से कोई शायद ही कोई जनता में अपनी शक्ल दिखाने लायक रहेंगे।
जम्मू कश्मीर में इस्लामी आतंक को कैसे खाद-पानी मिला, कैसे हिंदुओं के नरसंहार को अंजाम दिया गया, इसके कई पन्ने विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने खोल दिए हैं। इसके बाद से कॉन्ग्रेस और कश्मीर की पारिवारिक पार्टियाँ (नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी) अपने पाप छिपाने के लिए पूरे विवाद में जगमोहन का नाम घसीट रही है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब कश्मीर के इस्लामी आतंकियों के बचाव और हिंदुओं पर हुई ज्यादती पर पर्दा डालने के लिए इन लोगों ने जगमोहन का नाम घसीटा है। हम आपको बता चुके हैं बाद में बीजेपी में शामिल हुए जगमोहन (वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे), कभी नेहरू-गाँधी परिवार के कितने करीबी थे। उन्हें जम्मू-कश्मीर पहली पार कॉन्ग्रेस ने ही भेजा था। हम यह भी बता चुके हैं कि क्यों कश्मीर से अपना घर छोड़कर भागने को मजबूर किए गए हिंदू जगमोहन को आज भी अपना मसीहा मानते हैं।
कड़क नौकरशाह जगमोहन का पूरा नाम जगमोहन मल्होत्रा था। वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। 2021 की मई में उनका देहांत हो गया था। लेकिन, कश्मीर के अनुभवों को लेकर उन्होंने काफी कुछ लिखा है। कश्मीर पर उन्होंने चर्चित किताबें भी लिखी हैं। इन किताबों में जो कुछ दर्ज हैं वे बताते हैं कि 19 जनवरी 1990 (यह तारीख कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर चर्चित है) के बाद की 26 जनवरी को लेकर भी इस्लामी आतंकियों ने तगड़ी प्लानिंग की थी। उनके मंसूबों को विफल कर जगमोहन ने कश्मीर को कैसे बचाया था, यह जानने से पहले उनके एक पत्र के कुछ अंश पढ़िए;
आदरणीय राष्ट्रपति जी,
ठीक दस दिन पहले मैंने अपना कार्यभार संभाला था। तब से अब तक मैं एक छोटी रिपोर्ट लिखने के लिए दस मिनट का समय भी नहीं निकाल सका। स्थिति इतनी गंभीर और संकटपूर्ण थी।
… यह वाकई चमत्कार था कि 26 जनवरी को काश्मीर बचा लिया गया और हम राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी उठाने से बच गए। इस दिन की कहानी लम्बी है और यह बाद में पूरे ब्यौरे के साथ बताई जानी चाहिए।
… मैंने 26 जनवरी को हुई घटनाओं में अपनी भूमिका पूरी तरह अदा की है और मुझे इसका गर्व है। लेकिन अपना काम जारी रखना मेरे लिए कठिन हो जाएगा यदि यह प्रभाव बना रहा कि जनता में मुझे पूरा समर्थन नहीं प्राप्त है। पहले से ही मुझे एक टूटा और बिखरा प्रशासन मिला है। यदि कमांडर पर ही हर रोज छिप कर वार किया जाए तो सफलता का क्या अवसर रह जाता है इसकी कल्पना की जा सकती है।
… कामचलाऊ समाधानों या सुगम रास्तों का सहारा लेना आत्मघाती नहीं तो गलत जरूर होगा। विष महत्वपूर्ण अंशों तक पहुॅंच चुका है। जब तक कि उसे पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाता, हम एक संकटपूर्ण स्थिति से दूसरी में ही लड़खड़ाते रहेंगे।
आपका
-जगमोहन
साभार: कश्मीर: समस्या और समाधान
साभार: कश्मीर: समस्या और समाधान