Saturday, November 2, 2024

राष्ट्रीयस्पेशल

विश्व जल दिवसः दुनिया भर में गहराता जा रहा है जल संकट

World Water Day: Water crisis is deepening across the world

जल एक ऐसा दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन है, जो सिर्फ कृषि कार्यों के लिए ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर जीवन के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन चिंतनीय स्थिति यह है कि जल की कमी का संकट न केवल भारत बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों की एक विकट समस्या बन चुका है। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए जल संरक्षण और रखरखाव को लेकर दुनियाभर में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। सही मायने में यह दिन जल के महत्व को जानने, समय रहते जल संरक्षण को लेकर सचेत होने तथा पानी बचाने का संकल्प लेने का दिन है। यह दिवस मनाए जाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1992 में रियो द जेनेरियो में आयोजित ‘पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (यूएनसीईडी) में की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की उसी घोषणा के बाद पहला विश्व जल दिवस 22 मार्च 1993 को मनाया गया था। दरअसल दुनियाभर में इस समय करीब दो अरब लोग ऐसे हैं, जिन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा और साफ पेयजल उपलब्ध न होने के कारण लाखों लोग बीमार होकर असमय काल का ग्रास बन जाते हैं।
बात यदि भारत के संदर्भ में करें तो हमारा देश पहली बार 2011 में जल की कमी वाले देशों की सूची में शामिल हुआ था और अब स्थिति ऐसी हो चुकी है कि महाराष्ट्र हो या राजस्थान, बिहार हो या झारखण्ड या फिर देश की राजधानी दिल्ली, प्रतिवर्ष विशेषकर गर्मी के मौसम में देश के विभिन्न हिस्सों में पानी को लेकर लोगों के बीच आपस में झगड़े-फसाद की खबरें सामने आती रही हैं। कुछ ही साल पहले शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में पानी की कमी को लेकर हाहाकार मचा था और उसके अगले साल चेन्नई में वैसी ही स्थिति देखी गई। ये मामले जल संकट गहराने की समस्या को लेकर हमारी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त थे किन्तु फिर भी इससे निपटने के लिए सामुदायिक तौर पर कोई गंभीर प्रयास होते नहीं दिख रहे। यही वजह है कि भारत में बहुत सारे शहर अब शिमला तथा चेन्नई जैसे हालातों से जूझने के कगार पर खड़े हैं।
प्रधानमंत्री द्वारा 2019 में देश के हर ग्रामीण क्षेत्र तक नलों के जरिये प्रत्येक घर में जल पहुंचाए जाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ नामक अभियान की शुरूआत की गई थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस मिशन की शुरूआत से पहले देश के ग्रामीण इलाकों में केवल 3.23 करोड़ परिवारों के पास ही नल कनैक्शन थे और इस योजना के तहत 2024 तक 19.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक पानी पहुंचाए जाने का लक्ष्य है। आंकड़ों के अनुसार इस मिशन की शुरूआत से लेकर 28 महीनों की अवधि में कुल 5.44 करोड़ घरों तक नल से जलापूर्ति शुरू की जा चुकी है और इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या कुल 8.67 करोड़ हो चुकी है। हालांकि घर-घर तक जल पहुंचाने का वास्तविक लाभ तभी होगा, जब नलों से जलापूर्ति भी सुचारू रूप से हो और यह केवल तभी संभव होगा, जब जलस्रोतों की बेहतर निगरानी व्यवस्था होने के साथ-साथ जल संरक्षण के लिए कारगर प्रयास नहीं किए जाएं।
पृथ्वी का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक-डेढ़ फीसदी पानी ही ऐसा है, जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए किया जाना संभव है। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में विस्तार से यह वर्णन किया गया है कि पृथ्वी पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा में से मात्र तीन प्रतिशत पानी ही स्वच्छ बचा है और उसमें से भी करीब दो प्रतिशत पानी पहाड़ों व ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा है जबकि शेष एक प्रतिशत पानी का उपयोग ही पेयजल, सिंचाई, कृषि तथा उद्योगों के लिए किया जाता है। बाकी पानी खारा होने अथवा अन्य कारणों की वजह से उपयोगी अथवा जीवनदायी नहीं है। पुस्तक के अनुसार पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से इस एक प्रतिशत पानी में से भी करीब 95 फीसदी पानी भूमिगत जल के रूप में पृथ्वी की निचली परतों में उपलब्ध है और बाकी पानी पृथ्वी पर सतही जल के रूप में तालाबों, झीलों, नदियों अथवा नहरों में तथा मिट्टी में नमी के रूप में उपलब्ध है। इससे स्पष्ट है कि पानी की हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है लेकिन इस भूमिगत जल की मात्रा भी इतनी नहीं है कि इससे लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। वैसे भी जनसंख्या की रफ्तार तो तेजी से बढ़ रही है किन्तु भूमिगत जलस्तर बढ़ने के बजाय घट रहा है, ऐसे में पानी की कमी का संकट तो गहराना ही है।
देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरन्तर घटता स्तर। एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया भर में करीब तीन बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाये खड़ी है और विकासशील देशों में तो यह समस्या कुछ ज्यादा ही विकराल होती जा रही है, जहां करीब 95 फीसदी लोग इस समस्या को झेल रहे हैं। पानी की समस्या एशिया में और खासतौर से भारत में तो बहुत गंभीर रूप धारण कर रही है। विश्वभर में पानी की कमी की समस्या तेजी से उभर रही है और यह भविष्य में बहुत खतरनाक रूप धारण कर सकती है। अधिकांश विशेषज्ञ आशंका जताने लगे हैं कि जिस प्रकार तेल के लिए खाड़ी युद्ध होते रहे हैं, जल संकट बरकरार रहने या और अधिक बढ़ते जाने के कारण आने वाले वर्षों में पानी के लिए भी विभिन्न देशों के बीच युद्ध लड़े जाएंगे और हो सकता है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी के मुद्दे को लेकर ही लड़ा जाए। दुनियाभर में पानी की कमी के चलते विभिन्न देशों में और भारत जैसे देश में तो विभिन्न राज्यों में ही जल संधियों पर संकट के बादल मंडराते रहे हैं।
बहरहाल, पानी की महत्ता को हमें समय रहते समझना ही होगा। इस तथ्य से हर कोई परिचित है कि जल ही जीवन है और पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन जब हम हर जगह पानी का दुरूपयोग होते देखते हैं तो बहुत अफसोस होता है। पानी का अंधाधुध दोहन करने के साथ-साथ हमने नदी, तालाबों, झरनों इत्यादि अपने पारम्परिक जलस्रोतों को भी दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमें समझ लेना होगा कि बारिश की एक-एक बूंद बेशकीमती है, जिसे सहेजना बहुत जरूरी है। अगर हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर खास ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण करके उससे पानी की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सकती है और इस तरह जल संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है।