Sunday, November 24, 2024

राज्य

सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट मत … विधानसभा अध्यक्ष पर रखना चाहिए था विश्वास!

SG

नई दिल्ली
महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कल से सुनवाई शुरू हो गई है। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार, नबाम राबिया मामला, विधायकों की अयोग्यता आदि मुद्दों पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी ने जोरदार बहस की। शिंदे गुट के वकीलों द्वारा महाराष्ट्र के लिए राबिया मामला वैâसे मायने रखता है? यह बताने का प्रयास किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट मत व्यक्त करते हुए कहा कि राबिया मामले के आधार पर हम महाराष्ट्र का पैâसला नहीं करेंगे। तथ्यों के आधार पर निर्णय लेंगे। संविधान ने विधानसभा अध्यक्ष को शक्तियां प्रदान की हैं इसलिए उन पर भरोसा किया जाना चाहिए था। आज फिर सुनवाई होगी।
महाराष्ट्र में अवैध रूप से बनी `ईडी’ सरकार की वैधता को शिवसेना ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। शिवसेना से गद्दारी कर पार्टी से बाहर जानेवाले विधायकों पर अपात्रता की कार्रवाई तथा सत्ता संघर्ष के दौरान पैदा हुए कानूनी पेच के समय दायर सभी याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक खंडपीठ के समक्ष सुनवाई शुरू है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने नबाम राबिया मामले के समीक्षा की जरूरत बताई। राबिया मामले में महाभियोग का नोटिस देने के बाद अध्यक्ष अयोग्यता पर पैâसला नहीं ले सकते। स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव विधानसभा सत्र के दौरान ही पेश किया जा सकता है। साथ ही राजनीतिक शिष्टता बनाए रखने के लिए दसवीं अनुसूची दी गई है। हालांकि, उन्होंने मुख्य रूप से यह मुद्दा उठाया कि कहीं दसवीं अनुसूची का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है। इन मुद्दों को उन्होंने प्रमुखता से उठाया।
शिंदे गुट की ओर से ऑनलाइन मौजूद वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे व अन्य वकीलों ने महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष के मामले में राबिया मामले का हवाला देने की कोशिश की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि नबाम राबिया मामले से महाराष्ट्र का फैसला नहीं होगा। हम तथ्यों की जांच के बाद पैâसला लेंगे। महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष के मुद्दे पर मंगलवार को चार घंटे तक बहस चली। बहस दो सत्रों में हुई, सुबह ग्यारह बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो से चार बजे तक। इस मौके पर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी के वकीलों ने मुख्य रूप से बहस की, जिसके बाद शिंदे गुट की ओर से बहस करने के लिए साल्वे ने समय मांगा, खंडपीठ ने उन्हें बुधवार को बहस करने के लिए कहा।

राबिया मामले के आधार पर महाराष्ट्र का पैâसला नहीं
कपिल सिब्बल की दलीलें
मंत्रिमंडल की सलाह के बिना राज्यपाल अधिवेशन सत्र नहीं बुला सकता। राज्यपाल को अधिवेशन सत्र बुलाने का अधिकार नहीं है।
उपाध्यक्ष के अधिकार में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। लेकिन उपाध्यक्ष अपात्र विधायकों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। विधायकों के अपात्र ठहराए जाने पर वे अपील कर सकते थे।
१६ विधायकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का नोटिस जारी किया गया, तब विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया था। इस नोटिस के कुछ ही देर बाद अविश्वास प्रस्ताव को लाया गया।
विधानसभा के चल रहे सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसे लेकर सदन में मतदान होता है, तब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता तो समझ में आता। महाराष्ट्र में मेल भेजकर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। यह पूरी तरह गलत है।
सभागृह शुरू रहने के दौरान नोटिस और अगले सात दिन का समय दिया जाए, ऐसा न होने से लोग अपनी मनमर्जी से सरकार गिरा देंगे। आजकल सदन की कार्रवाई कम हो रही है। फिर १४ दिन के नोटिस का क्या होगा?
राजनीतिक शिष्टता को कायम रखने के लिए १०वीं सूची दी गई है। हालांकि, शिंदे गुट के विधायकों ने दसवीं सूची का गलत इस्तेमाल किया। फिलहाल वर्तमान सरकार के पास जो बहुमत है, वह असंवैधानिक है।
राबिया मामले में एजेंडा सेट किया गया था। अरुणाचल में तत्कालीन सभापति ने २१ लोगों को अयोग्य करार दिया था। हालांकि, अरुणाचल में डिप्टी स्पीकर के पैâसले को कोर्ट ने बदल दिया। यदि उचित निर्णय नहीं लिए गए तो १०वीं अनुसूची का क्या फायदा है?

सिंघवी ने क्या कहा?
शिंदे गुट के विधायकों को बैठक में उपस्थित रहने का नोटिस दिया था लेकिन विधायक उपस्थित नहीं हुए।
उपाध्यक्ष ने विधायकों को अपात्र घोषित करने का निर्णय लिया। राबिया मामले में विधायकों को अयोग्य ठहराने का कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
दिलचस्प बात यह है कि विधायकों को सात दिन का समय भी दिया गया था। उपाध्यक्ष ने संतुलन बनाने की कोशिश की। इसलिए नबाम राबिया मामला महाराष्ट्र के मामले में लागू नहीं होता है।
राबिया मामले ने विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार में हस्तक्षेप किया है। जिस तरह से १०वीं सूची के माध्यम से फिलहाल बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है अब सीधे दसवीं अनुसूची को ही प्रâीज करने की कोशिश की जा रही है।
हरीश सालवे की दलीलें
नया विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने के कारण ये पूरा मामला उन्हीं के पास गया है इसलिए उपाध्याक्ष के पास कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।