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पर्यावरण संतुलन बनाने में होती है मददगार, गौरैया को बनाएं घर-आंगन का मेहमान!

SG  हमारी सोच अब आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगी है। हम प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति थोड़ा मित्रवत भाव रखने लगे हैं। घर के टैरेस पर पक्षियों के लिए दाना-पानी डालने लगे हैं। गौरैया से हम प्रâेंडली हो चले हैं। किचन गार्डन और घर की बालकनी में कृत्रिम घोंसला लगाने लगे। गौरैया धीरे-धीरे हमारे आसपास आने लगी है। उसकी चीं-चीं की आवाज हमारे घर आंगन में सुनाई पड़ने लगी है। गौरैया संरक्षण को लेकर ग्लोबल स्तर पर बदलाव आया है यह सुखद है। फिर भी अभी यह नाकाफी है। हमें प्रकृति से संतुलन बनाना चाहिए। हम प्रकृति और पशु-पक्षियों के साथ मिलकर एक सुंदर प्राकृतिक वातावरण तैयार कर सकते हैं। गौरैया हमारी प्राकृतिक मित्र है और पर्यावरण में सहायक है।
गौरैया प्राकृतिक सहचरी है। कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फुदकती और चावल या अनाज के दाने को चुगती है। कभी घर की दीवार पर लगे आईने पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती दिख जाती है। एक वक्त था, जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते थे, लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई। हालांकि, पर्यावरण के प्रति जागरूकता के चलते हाल के सालों में यह दिखाई देने लगी है। दुनिया भर में २० मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राज्यसभा सदस्य बृजलाल ने अपने घर में गौरैया संरक्षण को लेकर काफी अच्छे उपाय किए हैं। उन्होंने गौरैया के लिए दाना-पानी और घोंसले की व्यवस्था की है। जंगल में आजकल पंच सितारा संस्कृति विस्तार ले रही है। प्रकृति के सुंदर स्थान को भी इंसान ने कमाने का जरिया बना लिया है, जिसकी वजह पशु-पक्षियों के लिए खतरा बन गया है। इंसानों के अधिक दखल से जंगल का पर्यावरण मस्त हो रहा है और पशु-पक्षियों के लिए प्रकृति के अनुकूल वातावरण नहीं मिल पा रहा है। जंगल में बढ़ती ऐसी संस्कृति के खिलाफ विराम लगाने की आवश्यकता है।
कम हो रही है संख्या
आंध्र यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में गौरैया की आबादी में ६० फीसदी से अधिक की कमी बताई गई है। ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन आफ बर्ड्स ने इस चुलबुले और चंचल पक्षी को रेड लिस्ट में डाल दिया है। दुनिया भर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है। गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है। इसकी लंबाई १४ से १६ सेंटीमीटर होती है। इसका वजन २५ से ३५ ग्राम तक होता है। यह अधिकांश झुंड में रहती है। यह अधिक दो मील की दूरी तय करती है।
शहरी हिस्सों में छह प्रजातियां
दुनिया के शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पायी जाती हैं, जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एशिया के साथ अप्रâीका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती हैं। गौरैया घास के बीजों को अपने भोजन के रूप में अधिक पसंद करती हैं। इस पक्षी को बचाने के लिए वन और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कोई खास पहल नहीं दिखती। दुनिया भर के पर्यावरणविद् इसकी घटती आबादी पर चिंता जाहिर कर चुके हैं।
गांवों में अब पक्के मकान बनाए जा रहे हैं। जिसका कारण है कि मकानों में गौरैया को अपना घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल रही है। पहले गांवों में कच्चे मकान बनाए जाते थे। उसमें लकड़ी और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता था। कच्चे मकान गौरैया के लिए प्राकृतिक वातावरण और तापमान के लिहाज से अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराते थे, लेकिन आधुनिक मकानों में यह सुविधा अब उपलब्ध नहीं होती। यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता। गगनचुंबी इमारतें और संचार क्रांति इनके लिए अभिशाप बन गई।