झारखण्ड : महाशिवरात्रि पर हिंदुओं को शिव बारात निकालने की इजाजत नहीं : कहाँ है संविधान और गंगा-जमुनी तहजीब की दुहाई देने वाले?: इस्लामी कट्टरपंथियों ने की थी हिंसा
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झारखंड के पलामू स्थित पांकी के हिंदू अब महाशिवरात्रि नहीं मना सकेंगे। तोरणद्वार बनाने पर कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा की गई हिंसा के बाद इलाके में धारा 144 लागू कर दिया गया है। धारा 144 का हवाला देकर प्रशासन ने हिंदुओं को शिव बारात निकालने की इजाजत नहीं दी है।महाशिवरात्रि हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इस दिन पूरे भक्तिभाव से हिंदू भगवान शिव की आराधना करते हैं और उनकी बारात निकालते हैं। पांकी को लेकर भी अपनी आस्था के साथ इस बारात को धूमधाम से मनाते आ रहे थे, लेकिन इस बार वे ऐसा नहीं कर सकेंगे।
टीवी पर बैठ संविधान की दुहाई देने वाले, सेकुलरिज्म का रोना रोने वाले और गंगा-जमुना तहजीब के नारों से भ्रमित करने वाले क्यों चुप्पी साधे हुए हैं? अगर स्थिति विपरीत होती, क्या तब भी यही निर्णय होता? शायद इसीलिए दंगे के पहले ही दिन से ही जनता द्वारा योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री की चर्चा कर रही। अगर झारखण्ड का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसा होता प्रदेश में कोई दंगाइयों को बचाने वाला नहीं होता।
पलामू के जिलाधिकारी ए दोड्डे, एसपी चंदन सिन्हा और राँची से आए एक आईपीएस अधिकारी ने मस्जिद के इलाके वाले शहीद भगत सिंह चौक का जायजा लिया। इसके बाद अधिकारियों ने शिव बारात निकालने पर रोक लगाने का निर्णय लिया। अधिकारियों ने हिंदुओं से कहा कि शिवरात्रि को लेकर भावुक होने की जरूरत नहीं है।
हिंसा को लेकर पूरे इलाके में जवानों की तैनाती की गई है। इसके साथ ही ड्रोन से इलाके के निगरानी की जा रही है। जिले के वरिष्ठ अधिकारी भी पांकी में कैंप कर रहे हैं। इसके साथ ही शुक्रवार को जिलाधिकारी ने दोनों समुदायों के साथ बैठक की थी।
महाशिवरात्रि को लेकर बनाए जा रहे तोरणद्वार को लेकर मुस्लिमों ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने हिंदुओं को मस्जिद के सामने गेट बनाने से रोका था। इसके बाद हुए विवाद में हिंदुओं पर पथराव किया गया था और उन पर पेट्रोल ब फेेंके गए थे। इस हमले में कई हिंदू घायल हो गए थे।
स्थानीय लोगों ने बताया कि हिंसा की तैयारी बहुत पहले से की जा रही थी और महाशिवरात्री को लेकर बनाया जा रहा तोरणद्वार के रूप में एक बहाना मिल गया। लोगों का कहना है कि मस्जिद, जिसे स्थानीय मुस्लिम जामा मस्जिद कहते हैं, से लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक प्राचीन हनुमान मंदिर है। यहाँ हर मंगलवार को आरती होती थी। इसकी महिमा को सुनकर लोगों की भीड़ बढ़ती गई।
एक समय ऐसा भी आया कि मंगलवार को मंदिर में 200 लोग तक जुटने लगे। आरती के दौरान लोगों तक आरती आवाज पहुँचाने के लिए मंदिर पर लाउडस्पीकर की व्यवस्था की गई। इसके बाद से मस्जिद कमिटी के लोग इस पर आपत्ति उठाने लगे। उनका कहना था कि इससे उन्हें नमाज पढ़ने में दिक्कत होती है।
वहीं लोगों का कहना था कि उनकी सामूहिक आरती सप्ताह में एक बार होती है और नमाज दिन में पाँच बार। उन्होंने नमाज पर कभी आपत्ति नहीं उठाई तो आरती पर आपत्ति उठाने के कोई औचित्य नहीं है। हिंदुओं का कहना था कि मस्जिद पर 36 मस्जिद हैं, फिर भी नमाज में दिक्कत कैसे हो सकती है।
हालाँकि, हिंदुओं के आग्रह को मस्जिद कमिटी के लोग नहीं माने और एनामुल, महबूब आदि थाने में लगातार शिकायत देते रहे। इतना ही नहीं, नमाज के वक्त लाउडस्पीकर का वॉल्युम भी फुल कर दिया जाता था। इससे लोगों को कई तरह की परेशानी होने लगी। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक स्थानीय दुकानदार ने बताया कि नमाज की आवाज के कारण दुकान में कस्टमर से बात करना मुश्किल हो जाता था। इधर शिकायत और दबाव के बाद पुलिस हिंदुओं को थाने बुलाने लगी।
इसी बात पर आगे चलकर मस्जिद कमिटी के लोगों द्वारा हिंसा को अंजाम दिया गया। हिंसा के लिए हारुन नाम के व्यक्ति के टैक्टर से हिंसा से एक दिन पहले ईंट-पत्थर जुटाए गए थे और उन्हें घरों और मस्जिद की छतों पर रखा गया था। हिंसा के दिन इन्हीं छतों से पथराव किया था।
स्थानीय भाजपा नेत्री मंजूलता दुबे का कहना है कि हिंदुओं के त्योहारों में मुस्लिमों द्वारा अक्सर खलल डाली जाती है। वे शादी-ब्याह तक में किसी ना किसी बहाने से उपद्रव करने की कोशिश करते हैं। लोगों का कहना है कि इस कारण से वहाँ के हिंदुओं को अपना पर्व-त्योहार मानना मुश्किल हो गया है।
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता कमलेश सिंह का दावा है कि प्री प्लानिंग के तहत हिन्दुओं पर हमला करने वालों ने अपनी दुकानों में तोड़फोड़ की और कुछ वाहनों को भी नुकसान पहुँचाया है। ऐसा करने के पीछे कमलेश सिंह ने हमलावरों द्वारा लोगों की हमदर्दी बटोरने के साथ हिन्दुओं को फँसाने की साजिश बताया।