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स्वामी रामदेव की माफ़ी चाहिए बस, इसे “अहम” की लड़ाई बना दिया कोर्ट ने, लेकिन कोर्ट ने कोर्ट की अवमानना की, उसके लिए माफ़ी क्यों नहीं मांगते

सुभाष चन्द्र

पिछली तारीख पर जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ में जस्टिस अमानुल्लाह ने उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों, स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के लिए मर्यादाहीन शब्दों का प्रयोग किया “हम तुम्हें चीर के रख देंगे” जैसे कोई आतंकी बोल रहा हो लेकिन आज उस भाषा के लिए रत्ती भर भी मीलॉर्ड एक शब्द क्षमा मांगने के लिए नहीं बोले  बल्कि सारी सुनवाई आज भी केवल स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की माफ़ी पर होती रही।

आज जस्टिस हिमा कोहली ने शायद पिछले शब्दों पर लीपापोती करने के लिए स्वामी रामदेव से कहा “हमारे देश में आयुर्वेद बहुत प्राचीन है, महर्षि चरक के समय से है, दादी नानी भी घरेलू उपचार करती थी। आप दूसरी पद्धतियों को बुरा क्यों बताते हैं, क्या एक ही पद्धति रहनी चाहिए, इस पर स्वामी जी ने कहा हमने बहुत रिसर्च किया है। इस पर जस्टिस कोहली ने कहा ये ठीक है, आप अपने रिसर्च पर कानूनी आधार पर आगे बढ़ सकते हैं लेकिन हम जानना चाहते हैं आपने इस कोर्ट की अवहेलना क्यों की”। लेकिन जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह द्वारा आतंकी शब्दों पर क्यों खामोश हैं? क्यों सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को तार-तार किया गया? महर्षि चरक पिछली बार क्यों याद नहीं आए?  

 

यकीन मानिए अगर बाबा रामदेव भगवा की जगह पैंट, शर्ट और टाई में होते, इंग्लिश बोलते और सत्ता के नीच,असुर और पामरों का समर्थन करते तो इसी काम के लिए और इन्हीं दवाओं के लिए उन्हें नोबेल प्राइज से लेकर न जाने अब तक कितने पुरस्कार मिल चुके होते। हॉवर्ड से लेकर आईआईएम तक उनके प्रबंधन स्किल पर लेक्चर आयोजित कराते।
बाबा से घृणा केवल उन “अहिंदु हिंदुओं” को है, जिनके मन में भारतीय परंपरागत ज्ञान, परंपरा, हिंदू धर्म और हिंदू ज्ञान-विज्ञान और चिकित्सा पद्धति के लिए घृणा है। बाकी वो जो भी तर्क दे रहा है, सिर्फ आपको भरमाने के लिए है।

 

देश की 140 करोड़ जनता बाबा की ऋणी है, उनके साथ खड़ी है, उनके द्वारा योग व आयुर्वेद को घर-घर पहुंचाने के लिए।

जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि आपको एलोपैथी को बुरा कहने की जरूरत नहीं थी, आप अच्छा काम कर रहे हैं, उसे करिए, दूसरों को बुरा क्यों कुछ कहना। स्वामी जी ने कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद का संघर्ष लंबा है, हम भविष्य में ऐसी गलती नहीं करेंगे, हमें कानून की जानकारी नहीं है लेकिन फिर भी जज अपनी बात पर अड़े रहे। जस्टिस अमानुल्लाह को IMA से यह भी पूछना चाहिए था कि आखिर क्यों एलोपैथी को बढ़ावा देने आयुर्वेद को नीचा किया गया।

 

लेखक 

जस्टिस कोहली ने कहा हम देखेंगे कि हम आपके माफीनामे को स्वीकार करें या नहीं। आचार्य बालकृष्ण ने कहा स्वामी जी का पतंजलि के काम से संबंध नहीं है लेकिन इस पर अमानुल्ल्हा फिर बरस पड़े कि आप बहस मत कीजिए। बाबा ने फिर कहा कि हम अपनी गलती के लिए क्षमा चाहते हैं।

यह और कुछ नहीं अपने “अहम” को ठंडा करने के लिए न्यायाधीश सन्यासियों पर दबाव बना रहे हैं कि उन्हें कोर्ट की अवमानना के लिए जलील करना ही जैसे लक्ष्य रह गया हो।

मीलॉर्ड उबल रहे हैं कि स्वामी रामदेव ने एलोपैथी के बुरा क्यों कहा लेकिन क्या एलोपैथी संस्थाएं और IMA स्वामी रामदेव को आयुर्वेद का सम्मान करने के लिए फूल माला पहनाते हैं। एलोपैथी की संस्थाएं तो तबियत से आयुर्वेद का मज़ाक उड़ाती हैं लेकिन मीलॉर्ड उनसे माफ़ी मांगने के लिए नहीं कहते।

अस्पतालों में डॉक्टर पतंजलि के दंत कांति टूथपेस्ट को उपयोग करने से मना करते हैं कि इससे कैंसर हो जाएगा। IMA का मुखिया ही जब अस्पतालों को धर्म परिवर्तन के लिए उपयोग कर रहा था तो मीलॉर्ड आंखे बंद किए बैठे थे लेकिन आज आयुर्वेद को निशाना बना कर हिंदुत्व पर हमला कर रहे हैं और माध्यम बने हैं स्वामी रामदेव।

आपको यदि स्वामी रामदेव की तरफ से कोर्ट की अवमानना नज़र आती है तो इसका मतलब आप अपने आप को कोर्ट मानते हैं और अगर आप कोर्ट हैं तो आपने मर्यादा लांघ कर जो शब्द बोले वह भी पूरे “सुप्रीम कोर्ट” की अवमानना थी।

चीफ जस्टिस को 21 जजों और 600 वकीलों ने पत्र लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाया जा रहा है और षड़यंत्र बताएं हैं इसके पीछे। हिमा कोहली और अहसानुद्दीन की पीठ पर भी कुछ “अज्ञात” शक्तियों का दबाव माना जा सकता है कि किसी तरह भी रामदेव की खाट खड़ी की जाए और चंद्रचूड़ पर भी दबाव हो सकता है कि दोनों जजों को छेड़ा न जाए।