Sunday, November 24, 2024

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जब इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री बनते ही पिता डॉ.के. सुब्रमण्‍यम को हटा दिया, राजीव ने जूनियर को दी वरीयता: डॉ. एस. जयशंकर, विदेश मंत्री

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विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर  (Dr. S.Jaishankar) ने न्यूज एजेंसी एएनआई (ANI) के साथ पोडकास्ट इंटरव्यू में कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने बताया कि किस तरह पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और फिर राजीव गाँधी के कार्यकाल के दौरान उनके पिता डॉ.के. सुब्रमण्‍यम के साथ नाइंसाफी हुई थी। साक्षातकार के दौरान विदेश मंत्री ने बताया कि विदेश मंत्री का पद दिए जाने के साथ उन पर भाजपा ज्वाइन करने का कोई दबाव नहीं था।

एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने विदेश सचिव (Foreign Secretary) से लेकर विदेश मंत्री (Foreign Minister) बनने तक के सफर पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने बताया कि वे ब्यूरोक्रेट्स के परिवार से आते हैं और हमेशा एक बेहतरीन ऑफिसर बनना चाहते थे। अपने पिता को याद करते हुए जयशंकर ने बताया कि उनके पिता सचिव पद (1979) तक पहुँच गए थे।

एस जयशंकर ने अनुसार, जब 1980 में इंदिरा गाँधी की सरकार बनी तो उनके पिता के जयशंकर को उनके पद से हटा दिया गया। के जयशंकर उस वक्त डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में सचिव थे। जयशंकर ने बताया कि उनके पिता संभवतः पहले सचिव थे जिन्हें इंदिरा गाँधी ने सरकार बनने के बाद सबसे पहले हटाया था। एस जयशंकर ने बताया कि राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री रहते हुए भी के. जयशंकर को नज़रअंदाज किया गया और उनके जूनियर को कैबिनेट सचिव बनाया गया। 

एएनआई को दिए तकरीबन पौने 2 घंटे के साक्षातकार में यह हिस्सा 12 वें मिनट से सुना जा सकता है। इस दौरान एस. जयशंकर ने अपने विदेश सचिव से विदेश मंत्री बनने तक के घटनाक्रम पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 2019 में कैबिनेट का हिस्सा बनने के लिए कॉल किया था। जयशंकर ने कहा कि यह पूरी तरह से चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्हें भाजपा ज्वाइन करने को लेकर जोर नहीं दिया गया।

एस जयशंकर ने कहा कि बीजेपी में शामिल होने का फैसला उनका अपना था। उन्होंने कहा कि यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन अपने उत्तरदायित्व के ईमानदारी के साथ निर्वहन और नेतृत्व का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्होंने भाजपा को चुना।

एस. जयशंकर कहते हैं कि उनके पिता एक ईमानदार व्यक्ति थे। हो सकता है इसकी वजह से समस्या हुई हो। उसके बाद वो कभी सचिव नहीं बने। जयशंकर ने बताया कि परिवार में इस बात को लेकर कभी चर्चा तो नहीं हुई लेकिन जब उनके बड़े भाई सचिव बने तो पिता काफी खुश हुए थे। बाद में एस. जयशंकर भी विदेश सचिव बने, हालाँकि तब तक उनके पिता का निधन हो चुका था। पिता ने भले ही उन्हें सचिव के पद पर नहीं देखा, लेकिन पिता के रहते जयशंकर ग्रेड वन तक पहुँच चुके थे जो सेक्रेटरी के बराबर का ही रैंक होता है।

 

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