Saturday, November 2, 2024

Uncategorizedराज्य

संपादकीय : तीसरी कड़ी का विवाद …महाराष्ट्र, दिल्ली के तख्त की रक्षा करता है या नहीं?

SG

दिल्ली के दरबार में महाराष्ट्र का जहां कदम-कदम पर अपमान हो रहा है, वहीं अपमानित राज्य सरकार ने महाराष्ट्र को राज्यगीत दिया है। देश का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ है। उसी तरह राज्य सरकार ने ‘जय जय महाराष्ट्र माझा, गर्जा महाराष्ट्र माझा’ को महाराष्ट्र के राज्यगीत के रूप में मान्यता देने का निर्णय लिया है। एक तरफ राज्यगीत की घोषणा की गई और दूसरी तरफ केंद्रीय बजट पेश किया गया। उस बजट में महाराष्ट्र की किस्मत में खाली खोका ही आया है। मुंबई को भी कद्दू मिला। इस गीत के जनक वरिष्ठ कवि राजा बढे हैं और शाहीर साबले ने गाया है। उनके इस महाराष्ट्र गीत ने हमेशा महाराष्ट्र को जगाने का काम किया। महाराष्ट्र का भूगोल, इतिहास, गौरव, शौर्य, देशभक्ति, सांस्कृतिक विरासत का अभिमान इस गाने के शब्दों-शब्दों में भरा पड़ा है। महाराष्ट्र को अपना राज्यगीत तो मिल गया, लेकिन दिल्ली के तख्त ने महाराष्ट्र के सम्मान और विकास का गला घोंटने का जो निश्चय किया है, उसका क्या? महाराष्ट्र का अपमान हो फिर भी चलेगा, लेकिन हम लाचार होकर दिल्ली के खुरों को चाटते रहेंगे, ऐसा राज्य के शासकों ने तय किया है और इस वजह से इस महाराष्ट्र गीत की तीसरी कड़ी को हटा दिया गया है और कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के नसीब में आधा-अधूरा राज्यगीत आया है। महाराष्ट्र का राज्यगीत घोषित करते समय तीसरी कड़ी के महत्वपूर्ण ‘यलगार’ को हटा दिया गया है, क्योंकि इसमें ‘दिल्लीचे ही तख्त राखितो महाराष्ट्र माझा’ का उल्लेख है और मौजूदा दिल्ली के शासकों को ये जिक्र कतई पसंद नहीं आएगा! लिहाजा, इस गीत से क्या इसीलिए ये कड़ी हटाई गई है? यदि हटाई गई है तो उसके पीछे मिंधे सरकार की असल में क्या भूमिका है, यह स्पष्ट होना चाहिए।
निढळाच्या घामाने भिजला
देश गौरवासाठी झिजला
दिल्लीचेही तख्त राखितो,
महाराष्ट्र माझा,
जय जय महाराष्ट्र माझा
गर्जा महाराष्ट्र माझा!
गीत की यह कड़ी यानी महाराष्ट्र गीत की ज्वलंत आत्मा और सच्ची गर्जना है। यदि इस आत्मा को हटा दिया जाए और गर्जना को दबा दिया जाए, तो क्या बचेगा? इसलिए सरकार को इस मामले में सच्चाई सामने लानी चाहिए। महाराष्ट्र शूर, वीरों और स्वाभिमानियों की भूमि है। सभी राज्यों का भूगोल है और महाराष्ट्र का इतिहास है। क्योंकि छत्रपति शिवराय ने महाराष्ट्र में जन्म लिया था। इसलिए ‘हर हर महादेव’ से लेकर ‘जय भवानी, जय शिवाजी’ की गर्जना ने देश को हमेशा जगाए रखा। हिमालय पर संकट आया तब तब सह्याद्रि मदद के लिए दौड़कर गया और छाती पर घाव झेला। इसलिए ‘दिल्लीचेही तख्त राखितो महाराष्ट्र माझा’ की गर्जना के संघर्ष का इतिहास है। इस इतिहास को कोई नकार नहीं सकता। महाराष्ट्र में जब हमारी महाविकास आघाड़ी की सरकार थी तब भी राज्यगीत के चयन का प्रस्ताव आया था। उस समय राजा बढे के ‘जय जय महाराष्ट्र माझा’ के गीत के साथ-साथ श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर द्वारा रचित महाराष्ट्र गीत ‘बहु असोत सुंदर संपन्न की महा, प्रिय अमुचा एक महाराष्ट्र देश हा’ के बारे में भी विचार किया गया था और निर्णय होनेवाला ही था लेकिन वैâबिनेट के कुछ सहयोगियों ने ‘राज्यगीत’ का दर्जा मिलने के बाद उसके ‘प्रोटोकॉल’ और कानूनी नियमों तथा दायित्वों को लेकर सवाल उठाया। ठीक इसी मुद्दे को मराठी संगीतकार अवधूत गुप्ते ने भी सामने रखा है। गुप्ते ने सरकार को लिखे एक पत्र में कहा, ‘जय जय महाराष्ट्र’ गीत को राज्यगीत के रूप में अपनाने का निर्णय प्रशंसनीय है लेकिन अब से राज्यगीत का सम्मान बनाए रखना बंधनकारक होगा, जो स्वागत योग्य है, लेकिन प्रस्तुतीकरण की नियमावली के कारण इस गीत की दुनिया में पैâल रही ‘सुगंध’ बाधित न हो, इसका खयाल रखना होगा। कुछ वर्ष पहले प्रगतिशील विचारों से भारत का ध्वज फहराने का नियम शिथिल किया गया, जिस तरह अब गली, चौक-चौराहों पर तिरंगा शान से लहराता दिखाई देता है, उसी तरह अब ‘महाराष्ट्र राज्यगीत’ महाराष्ट्र और विश्व के कोने-कोने में सुनाई दे, यही मां एकवीरा के चरणों में प्रार्थना!’ श्री गुप्ते का कहना बिल्कुल सही है। महाराष्ट्र गीत का सम्मान अब करना ही होगा। इसके साथ ही महाराष्ट्र के गौरव का भी सम्मान दिल्ली को रखना होगा। महाराष्ट्र मराठी लोगों के त्याग व संघर्ष से निर्माण हुआ राज्य है। पिछले कुछ महीने से महाराष्ट्र को चाहे जो भी रास्ता मिले लूटा जा रहा है और इस साजिश के पीछे दिल्ली का तख्त है। दिल्ली का तख्त भले ही किसी भी बाद-शाह का हो उसने हमेशा महाराष्ट्र से बैर रखा। महाराष्ट्र के स्वाभिमान को ये शाह तीर चुभाते रहे। टूट जाऊंगा लेकिन झुकुंगा नहीं मराठी मानुष का ये तेवर उन्हें चुभता रहा। लेकिन दिल्ली को स्वीकार नहीं इसलिए ‘जय जय महाराष्ट्र माझा’ गीत की तीसरी कड़ी को हटाकर महाराष्ट्र के स्वाभिमान को उनके चरणों में अर्पित करना कितना उचित है? इसलिए राज्य में सरकार भले ही मिंधे की होगी लेकिन महाराष्ट्र गीत की तीसरी कड़ी में दिल्ली के तख्त की रक्षा करनेवाला महाराष्ट्र आज है या नहीं, ये स्पष्ट होना ही चाहिए। किसी को पसंद आए या न आए, महाराष्ट्र यानी देश की ढाल-तलवार है, यह सत्य है! दिल्लीकरों को भी ये स्वीकार करना ही होगा