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जिस देश में हर चुनाव हिंदुओं में जातिगत विभाजन करके लड़ा जाता हो, जिस देश में आये दिन उनके आराध्य देवी-देवताओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया जाता हो, उस देश में जब कोई कट्टर जनप्रतिनिधि यह बयान दे कि यह देश न तो कभी हिंदुओं का था, न है और न रहेगा! तो उस पर संतप्त प्रतिक्रिया करने से पहले, उसे भविष्य के आईने के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। जिस नीति पर, जिस राह पर इस देश की राजनीति आगे बढ़ रही है, उसका अंततोगत्वा अंजाम यही है। इसलिए समाजवादी पार्टी के शफीकुर्रहमान बर्क के बयान पर प्रहार करने से पहले, उनके शब्दों में छिपी चेतावनी पर भी गौर कर लिया जाना चाहिए।
बेशक, अखंड हिंदुस्थान में हिंदुओं ने मुसलमानों को भी स्थान दिया था, परंतु जिस दिन, धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ, उसी दिन बर्क जैसे लोगों ने दावे करने का नैतिक अधिकार खो दिया था। खैर, यहां का हर एक नागरिक जो देश के लिए जीता है, इस देश के संविधान का सम्मान करता है, फिर वह किसी धर्म या पंथ का ही क्यों न हो, वह हिंदू है। वो न तो भविष्य में हिंदुओं के विलीन होने की बात करता है, न ही हिंदुओं के आराध्य पर कभी उंगली उठाता है। ऐसा वही कर सकता है, जिसे अपनी पहचान पर ही प्रश्न हो। इसलिए चिंता का विषय यह नहीं है कि हिंदुस्थान किसका है? बल्कि चिंता का विषय ये है कि यह सब उस सरकार के कार्यकाल में हो रहा है, जो कथित तौर पर खुद को हिंदू हित वाली सरकार कहती है। इसे विडंबना न कहें तो क्या कहें, जब देश में कथित तौर पर हिंदुओं की सरकार है। पूरी ताकत, पूरी क्षमता वाली, दो-तिहाई बहुमत की मजबूत इरादे वाली सरकार है, तब क्यों आये दिन इस भूमि के आराध्य व उन्हें मानने वाले करोड़ों हिंदुओं का अपमान होता है? क्यों किसी कन्हैयालाल का ‘सिर तन से जुदा’ होता है? और क्यों उसके धर्म ग्रंथों को ओछी राजनीति का हथियार बनाया जाता है? हिंदू हित और हिंदुस्थान द्रोहियों की नजरों में नजरें डालकर शासन करनेवाले शासकों के काल में जब भाजपा से निकला कोई स्वामी प्रसाद मौर्य, आए दिन रामचरितमानस पर प्रश्न खड़ा करके राजनीतिक रोटी सेंकता हो, हिंदुओं में विभाजन के बीज बोता हो, तो मान लेना चाहिए कि हिंदुओं के लिए इससे बुरा दौर और कोई नहीं हो सकता। यदि इस शासन काल में भी राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू विभाजन का खेल जारी है तो निश्चित तौर पर इसमें कोई तो साजिश जरूर है।
जहां तक बर्क साहब का सवाल है तो उन्हें यह अच्छी तरह से जान लेना चाहिए कि यह देश चाहे जिसका भी है, पर यह न तो कभी कट्टर था और न ही कभी हो सकेगा, क्योंकि यह सहिष्णु हिंदुओं की मातृस्थली है। यहां हिंदू, न तो मंगल ग्रह से आयात किया गया है और न ही मध्य-पूर्व से लाकर जबरन थोपा गया है, बल्कि असलियत तो यह है कि इस देश में बर्क जैसी मानसिकता के लोगों का आयात हुआ है। हिंदू यहां सनातन काल से था, है और रहेगा। तन से भी और मन से भी!