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मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के रंगोत्सव में रंगे होने के दौरान ही राज्य में बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन सरकार को इसकी सुध है क्या? महाराष्ट्र में विधानमंडल का अधिवेशन चल रहा है। उस अधिवेशन में किसानों की समस्याएं कम और राजनीतिक मुद्दे ही अधिक उठाए जा रहे हैं। बुधवार को सुबह में विपक्ष के नेता ने बेमौसम की बारिश से हुए नुकसान का मुद्दा विधानसभा में उठाकर सरकार को आड़े हाथों लिया तो उपमुख्यमंत्री श्री फडणवीस ने विपक्षियों को ही चेतावनी दे दी। ‘राजनीति मत करो, आप राजनीति करोगे तो फिर हमें भी करनी पड़ेगी। पिछली बार के चक्रवाती तूफान के दौरान हुए नुकसान का मुआवजा अभी तक किसानों को नहीं मिला है’, ऐसा तीर श्री फडणवीस ने चलाया। उनका ऐसा कहना मतलब सरकार किसानों के संदर्भ में गंभीर नहीं होने का उदाहरण है। राज्य में जब चक्रवाती तूफान का कहर टूटा था, तब नुकसान का पंचनामा शुरू होने के दौरान कोरोना काल चल रहा था। उस समय महाराष्ट्र की तिजोरी पर मोदी की सरकार भुजंग की तरह बैठी थी। चक्रवाती तूफान से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह आदि लोग तत्काल गुजरात पहुंचे। लेकिन उन्होंने आपदाग्रस्त महाराष्ट्र की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। गुजरात को चक्रवाती तूफान से हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में १५ सौ करोड़ या और कुछ तो दिया लेकिन महाराष्ट्र को ठेंगा दिखाकर निकल गए तथा उसके बाद उन ठेंगे वालों ने खोके गिनकर महाराष्ट्र की सरकार ही गिरा दी। श्री फडणवीस ने राजनीति का संदर्भ दिया इसलिए उक्त जानकारी दी। ‘उस समय मदद नहीं की, इसलिए किसानों की मदद पर अब न बोलें’, ऐसी सोच सही नहीं है। कल की बेमौसम बरसात से महाराष्ट्र का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ। ठाणे, नई मुंबई, पालघर, रायगढ़, कोकण में आम के बौर नष्ट हो गए। पुणे जिले में गेहूं, चना, मक्का, अंगूर को नुकसान हुआ। नासिक में प्याज, अंगूर बर्बाद हो गया। मराठवाड़ा की फसल सीधे सो गई। धुले, नंदुरबार, नासिक, नगर में बरसात की मार से किसानों के चूल्हे बुझ गए। महाराष्ट्र की सरकार के सत्ता की भ्रष्ट राजनीति में मशगूल रहने के दौरान किसान इस तरह से परेशान हुआ है। चावल, गेहूं पूरी तरह से भीग गए। अनार, केला, पपीता को नुकसान हुआ। फलों के बाग नष्ट हो गए और सरकार जुहू के पांच सितारा होटल से ठाणे तक ‘रंग बरसे’ होली खेलती रही। अब कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने नुकसान का पंचनामा तुरंत करने का आदेश दिया है। बागी विधायक-सांसदों को ‘खोके’ मिलते हैं लेकिन किसानों को उनके नुकसान के बदले मदद मिलेगी क्या? यह सवाल ही है। इस बेमौसम की बरसात ने लगभग १३ हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर खड़ी फसल को रौंद डाला। इस असामयिक बारिश और ओलावृष्टि का सर्वाधिक झटका उत्तर महाराष्ट्र को लगा है, परंतु कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार को इस बेमौसम की बारिश से हुए इस नुकसान की फिक्र है क्या? सरकार अभी तक नुकसान का आकलन ही कर रही है। सरकार किसानों के पीछे है, ऐसा मुख्यमंत्री कहते हैं। परंतु सिर्फ पीछे खड़े रहने से किसानों को राहत मिलेगी क्या? महाराष्ट्र का कृषि विभाग ऐसे समय में निश्चित तौर पर क्या करता है। राजस्व विभाग का तंत्र भी किसानों तक पहुंचता है क्या? ऐसे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। महाराष्ट्र के सिर पर जिस तरह से असामयिक सरकार है। उसी असामयिक बारिश का संकट राज्य पर टूटा और इसने हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि पर खड़ी फसल को सुला दिया। इस नुकसान की भरपाई सरकार वैâसे और कब करेगी, यह अन्नदाता के समक्ष सबसे बड़ा सवाल है, परंतु मुख्यमंत्री को उनके चालीस समर्थक विधायकों की ही चिंता है। बाकी जनता उन्हें महत्वपूर्ण नहीं लगती। देशभर में रंगोत्सव धूमधाम से मनाया गया। महाराष्ट्र में इस उत्साह की भांग सत्ताधारियों को थोड़ा ज्यादा ही चढ़ गई थी। भांग पीकर नाचने के लिए खास दिल्ली से मेहमान बुलाए गए थे। रंगपंचमी का जलसा जुहू के पांच सितारा होटल में चल रहा था। उसी समय महाराष्ट्र के किसान बेमौके की बारिश और ओलावृष्टि से बर्बाद हो रहे थे। यह दृश्य विदारक है। यह दृश्य विरोधियों ने सभागृह और सभागृह के बाहर व्यक्त किया इस वजह से तो रंगोत्सव की ‘मदहोशी’ में आई सरकार को जागना चाहिए। विपक्ष के लोग किसानों के मुद्दे को लेकर जागरूक हैं लेकिन सरकार भांग पीकर पड़ी हुई है इसलिए किसान घबरा गया है। सत्ता की भांग चढ़ गई तो शासक इसी तरह निरंकुश बर्ताव करते हैं। महाराष्ट्र में आज यही दृश्य है!