अपराधियों को बरी करते हुए अदालतों को 50 बार उसके परिणाम के बारे में सोचना चाहिए; लेकिन वो नहीं सोचते क्योकि उनके परिवार “अपराध” का शिकार नहीं होते
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सुभाष चन्द्र
कई बार विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के ऐसे निर्णय आते हैं अपराधियों को छोड़ने के जिन्हें देख कर मन विचलित होता है। सबसे बड़ा जुमला तो एक मामले में 4 वर्ष की बच्ची से दुष्कर्म और उसकी हत्या करने वाले मध्य प्रदेश के ही एक मुस्लिम की सजा कम करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छोड़ा था कि Every Sinner Has a Future, Every Saint Has a Past”.
ऐसे निर्णयों का सबसे बड़ा कारण है कि न्यायाधीशों के परिवार सुरक्षित रहते हैं, उनके परिवार का कोई सदस्य, बहन, बेटी अपराध का शिकार नहीं होती और इसलिए उन्हें दर्द का अनुभव करना संभव नहीं होता।
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लेखक चर्चित YouTuber |
दो दिन पहले एक मामला सामने आया है कि मध्यप्रदेश के शाजापुर के बड़ी पोलाए गांव के 40 वर्षीय एक व्यक्ति रमेश खाती ने तीसरी बार एक नाबालिग लड़की का बलात्कार किया जिसकी 8 दिन बाद मौत हो गई।
रमेश खाती ने वर्ष 2003 में अवंतीपुर बड़ोदिया थाना क्षेत्र में एक 5 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था जिसके लिए उसे 10 वर्ष कारावास की सजा हुई और वह 2013 में सजा काट कर बाहर आया।
लेकिन कुछ महीनों के बाद वर्ष 2014 में एक और 8 वर्षीय बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया और ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार देने के बाद उसे मौत की सजा सुनाई। उसके पिता ने अपनी जमीन बेच कर हाई कोर्ट में उसका केस लड़ा और हाई कोर्ट ने उसकी सजा में कोई बदलाव करने की जगह, उसे 2019 में बरी कर दिया। यानी हाई कोर्ट ने उसे पिछले अपराध में हुई सजा पर भी कोई ध्यान नहीं दिया कि यह भीं नहीं सोचा कि यह अपराधी समाज के लिए भविष्य में कितना खतरनाक हो सकता है।
और उसने साबित कर दिया कि वह सच में खतरनाक है। अब तीसरी बार उसने फिर कुकर्म कर दिया। एक फरवरी को उसने राजगढ़ के नरसिंहगढ़ में 11 वर्ष की एक मूक बधिर बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया। 8 फरवरी को उस बच्ची की मौत हो गई। और अब रमेश खाती गायब है जिसे गिरफ्तार करने में पुलिस को अभी सफलता नहीं मिली है। हाई कोर्ट यदि मौत की सजा से बरी नहीं करता तो सुप्रीम कोर्ट यह काम कर सकता था। लेकिन अगर हाई कोर्ट बरी नहीं करता तो कम से कम अब की बार जो 11 वर्षीय बच्ची शिकार बनी, वह बच सकती था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में केस बरसों चलते हैं।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट लगे हुए हैं कि सरकार अब पॉक्सो एक्ट में नाबालिग लड़कियों की सहमति से सेक्स के लिए आयु कम करने पर विचार करे। इस अपराध की कोई सीमा नहीं है और फिर उम्र घटाने की भी कोई सीमा नहीं रहेगी।
और जो सहमति दे ही नहीं सकती, आप तो उसके साथ भी सेक्स की अनुमति दे देते हैं। कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक फैसले में मृत महिला से बलात्कार करने के आरोप में एक व्यक्ति को बरी कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने भी उस फैसले पर मुहर लगा दी। जबकि रेप की परिभाषा में साफ़ लिखा है कि बिना सहमति के किया सेक्स बलात्कार है लेकिन जो सहमति दे ही नहीं सकती, उसके साथ किया गया दुष्कर्म तो माफ़ी के काबिल होना ही नहीं चाहिए। आपने केवल उसे इसलिए छोड़ दिया कि कानून में इस तरह के बलात्कार की कोई सजा नहीं है। तो आपको किसने रोका था कानून में बदलाव करने से जबकि आप कानूनों की परिभाषा अपने हिसाब से रोज बदलते हैं।
मध्य प्रदेश के रमेश खाती का मामला बहुत विचित्र है जो साबित करता है कि कुछ अपराधी सुधर ही नहीं सकते। उसे केवल नाबालिग लड़कियों को अपना शिकार बनाने का चस्का है।