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चाय-पान कार्यक्रम में विपक्ष को आना चाहिए, उन्हें सुझाव देना चाहिए, ऐसा मुख्यमंत्री श्री शिंदे ने कहा। विधानमंडल सत्र की पूर्व संध्या पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ने विपक्षी दलों के बारे में यह भी कहा, ‘अच्छा हुआ वे नहीं आए। उनके मंत्री जेल गए, जिसने देशद्रोह किया उनका इस्तीफा लेने की हिम्मत उन्होंने नहीं दिखाई। उनके साथ चाय पीना टल गया, यह अच्छा ही हुआ।’ महाराष्ट्र के राजनीतिक विरोधी देशद्रोही हैं, ऐसा ‘मोदी’ छाप वाला बयान भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने दिया। विरोधियों को देशद्रोही करार देना भाजपा की परंपरा है। मिंधे गुट के विधायकों और विधायकों के मुख्य नेता ने भाजपा का ‘बपतिस्मा’ लेकर अपनी भूमिका स्पष्ट की। वास्तव में अजीत पवार ने क्या कहा, उसे समझना चाहिए, लेकिन समझने की क्षमता होगी तभी समझ में आएगा। मूलरूप से महाराष्ट्र में असंवैधानिक तरीके से सरकार बनाई गई। सरकार के चालीस विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटक रही है। सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से सुनवाई चल रही है, उसे देखते हुए जो खुद भाजपा के ‘मिंधे’ बने हुए मुख्यमंत्री हैं, वे और उनके बागी विधायक अयोग्य हो सकते हैं। लिहाजा, महाराष्ट्र पर थोपी गई ऐसी अवैध सरकार के चाय-पान में जाना ही महाराष्ट्र द्रोह कहा जाना चाहिए। क्योंकि इस सरकार को कानून और संविधान का कोई आधार नहीं है। केवल दिल्ली के तानाशाहों के दिमाग में आ जाने मात्र से ही महाराष्ट्र में एक सरकार को गिराकर उनकी मर्जी की सरकार यहां बना दी गई। यह कानूनी नहीं है। इसलिए आज महाराष्ट्र में हर स्तर पर अराजकता और मनमानी पैâली हुई है। किसी का भी किसी से तालमेल दिखाई नहीं दे रहा है। महाराष्ट्र को कमजोर और लाचार बनाने की कोशिश दिल्ली से हो रही है। मुंबई-महाराष्ट्र की कई परियोजनाओं को गुजरात भगा ले जाया गया और मुख्यमंत्री इस पर चुप रहे। यह महाराष्ट्र के साथ बेईमानी है। ऐसी बेईमान सरकार को महाराष्ट्र द्रोही न कहें तो क्या कहें? मुख्यमंत्री शिंदे के स्पेशल गौतम भाई अडानी हो गए हैं। अडानी कंपनियों के शेयर धड़ाधड़ गिर रहे हैं। उनकी फूली हुई अमीरी विश्व सूची से हट गई। महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री देश की शीर्ष दस की सूची में भी नहीं हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री सिर्फ कुर्सी पर हैं और संचालक दिल्ली से बागडोर संभाल रहे हैं। यह महाराष्ट्र का अपमान है। ऐसी महाराष्ट्र द्रोही सरकार के चाय-पान में नहीं जाना ही महाराष्ट्र की सेवा है। महाराष्ट्र के स्वाभिमान के साथ विश्वासघात करनेवाली सरकार दिल्ली ने हम पर थोपी है। यह एक तरह का बोझ ही कहना होगा। इस बोझ तले कुचलकर कोल्हापुर में ५२ गायों की जान चली गई, लेकिन खुद को हिंदुत्ववादी आदि कहनेवाली शिंदे-फडणवीस सरकार ने इस दुर्घटना पर उफ तक नहीं की। कश्मीर में कल फिर दिनदहाड़े पंडितों का हत्याकांड हुआ, लेकिन महाराष्ट्र की बेईमान सरकार ने एक आंसू तक नहीं बहाया। ऐसे महाराष्ट्र द्रोहियों के साये में भी क्यों खड़े रहें? अजीत पवार ने सही निर्णय लिया। देवेंद्र फडणवीस और गिरीश महाजन को जेल भेजने की योजना थी। ऐसी भीगी लड़ी का ‘विस्फोट’ करके मुख्यमंत्री ने बेबसी का परिचय दिया है। दरअसल, ‘ईडी-सीबीआई’ की जांच और गिरफ्तारी का डर था, इसलिए आप वैâसे भाग गए, उस पलायन की मनोरंजक कथा उन्हें बतानी चाहिए थी। गिरफ्तारियों की सुपारी केंद्रीय जांच एजेंसियां ले रही हैं और देशभर में विपक्षियों को गिरफ्तार किया जा रहा है। इन एजेंसियों के मालिक दिल्ली में बैठे हुए हैं तो फडणवीस-महाजन को कौन हाथ लगाएगा? इसके विपरीत महाराष्ट्र में पिछली महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा ‘विक्रांत’ घोटाले से लेकर कई भ्रष्ट मामलों की जांच कराते ही इनकी पतलून गीली हो गई और सत्ता परिवर्तन होते ही इन सभी भ्रष्टाचारियों को ‘क्लीन चिट’ देकर फडणवीस-शिंदे सरकार ने देश की बड़ी सेवा की। विरोधियों के फोन चोरी से सुनने के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को अवैध अनुमति देना देशद्रोह ही है और उस देशद्रोह को ‘क्लीन चिट’ देना उससे भी बड़ा अपराध है। वर्तमान मुख्यमंत्री का कानूनी अध्ययन कच्चा है और जिनकी छाया में वे घूम रहे हैं, उन फडणवीस के पास भले ही वकील की डिग्री है, लेकिन वे महाराष्ट्र द्रोहियों की वकालत करने में खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं। महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा को धूमिल करनेवाली सरकार हमारी छाती पर बिठाई है। उनके मुख से स्वाभिमानियों को देशद्रोही कहने का कसूर तो होगा ही! खुद महाराष्ट्र द्रोह करना और विपक्षी पार्टियों को देशद्रोही कहना, यह ढोंग यही मंडली कर सकती है। उनका चाय-पान नहीं चाहिए! अच्छा हुआ यह टल गया!