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कार्यकारी संपादक
ठाकरे की शिवसेना एक झटके में शिंदियों की हो गई। चुनाव आयोग ने सिर्फ ४० विधायकों के वोट गिनकर शिवसेना और धनुष-बाण का सौदा कर डाला। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। लोकतंत्र की हत्या हुई है, ऐसा हमेशा कहा जाता है लेकिन हत्या कैसे की जाती है, यह शिवसेना के मामले में चुनाव आयोग ने दिखा दिया। आगे क्या होगा?
चुनाव आयोग के एक फैसले से ठाकरे की ऐतिहासिक शिवसेना शिंदियों की हो गई। उस शिवसेना का ताम-झाम और बोझा सिर पर लेकर श्रीमान शिंदे कब तक टिके रहेंगे? शिवसेना मतलब ‘ठाकरे’ यह समीकरण बीते पचास वर्षों से है। यह दुनिया जान चुकी है, लेकिन सिर्फ चुनाव आयोग समझ नहीं पाया।
चुनाव आयोग ने आंखें बंद करके शिवसेना का नाम, चिह्न, धनुष-बाण आदि बागी शिंदे गुट को दे दिया। फिर भी उन्हें कोई ‘शिवसेना’ मानने को तैयार नहीं है तथा चुनाव आयोग के फैसले की हर स्तर पर खिल्ली उड़ाई जा रही है। हिंदुस्थान की सभी ‘स्वायत्त’ संस्थाओं और एजेंसियों का जिस रफ्तार से अधोपतन शुरू है, उसे देख देश अराजकता के दावानल में धकेला जा रहा है।
चुनाव आयोग के निर्णय पर इंसाफ मांगने के लिए शिवसेना सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गई है। असली शिवसेना हमारी ही है, सर्वोच्च न्यायालय में यह ‘ठाकरे’ को सिद्ध करना पड़ रहा है, यह महाराष्ट्र का और न्याय व्यवस्था का दुर्भाग्य है! अब न्यायालय में क्या होगा? इसके जरिए एक बात याद आ रही है।
जंगल में एक भैंस को भागते देखकर हाथी ने पूछा, ‘क्यों, क्या हुआ? इतना डरकर भागने की वजह क्या है?
भैंस- अरे बाबा, वो लोग गायों को पकड़कर ले जा रहे हैं।
हाथी- लेकिन तुम गाय कहां हो?
भैंस- वो मुझे पता है, लेकिन मैं गाय नहीं हूं। हिंदुस्थानी अदालतों में ये सिद्ध करने में मुझे २५ साल लग जाएंगे।
इतना सुनते ही हाथी भी घबराकर भागने लगा।
वर्तमान में न्याय व्यवस्था सहित देश की तमाम सरकारी एजेंसियों की यही अवस्था है। सत्य और उससे जुड़े सबूतों का इनके लिए कोई मोल नहीं रह गया है। सत्य यह रक्षक और सबूत नहीं हो सकता है।
खून मतलब क्या?
शिवसेना का नाम और धनुष-बाण चिह्न बेईमान गुट के हाथ में चले जाने से महाराष्ट्र में अराजकता पैâल गई है और देश की न्यायप्रिय जनता को सदमा लगा है। लोकतंत्र का खून हो गया। सत्य मार दिया गया, ऐसे उदाहरण विपक्षी हमेशा देते रहते हैं। लेकिन लोकतंत्र की हत्या कैसे होती इसका प्रत्यक्ष दर्शन चुनाव आयोग ने करा दिया। शिवसेना में फूट पड़ी और शिंदे के नेतृत्व में ४० विधायक पार्टी छोड़कर चले गए। यह ज्यादा-से-ज्यादा विधायक दल की फूट तो हो सकती है। विधायक और सांसदों के पार्टी छोड़ने से पार्टी पर उनका स्वामित्व नहीं हो सकता। लेकिन हमारे विद्वान चुनाव आयोग ने फूटे हुए विधायकों-सांसदों के मतों की गिनती करके पैâसला सुनाया। फिर महाराष्ट्र के सैकड़ों नगरसेवकों, जिला परिषद सदस्यों, अन्य जनप्रतिनिधियों को मिले मतों की गिनती क्यों नहीं की गई? शिवसेना के इन बागियों को उम्मीदवारी दी और निर्वाचित कराया, इस पर आयोग का ध्यान नहीं गया। क्योंकि उन्हें सच्चाई को छिपाकर ही निर्णय देना था और दिल्ली के सत्ताधारियों का ऐसा आदेश था। शिवसेना ने विधानसभा, लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार खड़े किए थे। जो जीते उनमें से कुछ फूट गए। उनके मत निर्णायक कैसे सिद्ध हो सकते हैं? जो पराजित हुए उन शिवसेना प्रत्याशियों को भी लाखों मत मिले हैं। चुनाव आयोग ने अपना स्वतंत्र स्वाभिमान नहीं रखा और अपने ही पूर्ववर्ती श्री शेषन का आदर्श नहीं रखा। शिवसेना को खरीदने और बेचने का पैâसला दिल्ली ने पहले ही कर लिया। उस सौदे में आयोग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना होने पर भी शिंदे की सेना को कोई शिवसेना मानने को तैयार नहीं है। पत्रकार निखिल वागले ने इस पर तंज कसा है। उनका कहना है, ‘हमें शिवसेना बुलाओ, ऐसा पत्र शिंदे सेना ने प्रसार माध्यमों को भेजा है। कैसे कहेंगे? आप असली शिवसेना कहां हो?’
बदले की राजनीति
गृहमंत्री अमित शाह और उनके बॉस नरेंद्र मोदी की बदले और प्रतिशोध लेने की राजनीति से शिवसेना पर इतिहास का सबसे भयंकर हमला हुआ। अमित शाह के अहंकार के कारण यह सब हुआ। २०१९ में भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस-राष्ट्रवादी के साथ जाने का पैâसला उद्धव ठाकरे ने लिया। मुख्यमंत्री के पद को लेकर चुनाव के पहले दिए गए वचन का भाजपा ने पालन नहीं किया। उसी वजह से महाराष्ट्र में नया महाभारत हुआ। भाजपा-शिवसेना ने एक साथ चुनाव लड़ा। फिर भी शिवसेना, कांग्रेस-राष्ट्रवादी के साथ गई, यह जनादेश का अपमान होने की बात शाह से लेकर फडणवीस तक सभी ही कह रहे थे। लेकिन वर्ष २०१४ में भाजपा ने शिवसेना को दगा दिया। दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ अलग-अलग चुनाव लड़ा और फिर भी सत्ता के लिए ये दोनों दल एक साथ आए। यह भी जनादेश कहां था? कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ चुनाव के बाद भाजपा ने सत्ता स्थापित की। यह भी जनादेश नहीं था। इसलिए जनादेश का अपमान किया। इस वजह से शिवसेना तोड़ी और सत्ता बनाई, यह तोते जैसी रट सही नहीं है। शिवसेना एक तरह के द्वेष और बदले की भावना से तोड़ी गई। महाराष्ट्र पर, मराठी लोगों पर प्रतिशोध की तलवार चलाने के लिए दिल्ली ने फिर एक बार मराठी लोगों का ही इस्तेमाल किया। शिंदे और उनके लोगों द्वारा की गई बेईमानी को इतिहास में काली स्याही से दर्ज किया जाएगा। जो बीते ५०-५५ वर्षों में कांग्रेस नहीं कर पाई, गुंडों के गिरोह, पाकिस्तान से नहीं हो सका, वो शिंदे जैसों को साथ लेकर मोदी-शाह ने कर दिखाया।
विधायक क्यों गए?
शिंदे के साथ १० से ज्यादा विधायक नहीं थे। अमित शाह व श्री फडणवीस ने अगुवाई करके शिवसेना के विधायकों को तोड़ा और सूरत भेजा। ‘आप सूरत पहुंचो। चुनाव आयोग और आगे के सभी पैâसले शिंदे के पक्ष में दिलाए जाएंगे। चिह्न व शिवसेना शिंदियों को ही मिलेगा’, ऐसा शेष बचे बागी विधायकों से कहा गया और इस बारे में सूतोवाच फडणवीस से लेकर शिंदे गुट के विधायकों ने बीते कई दिनों में सार्वजनिक रूप से किया है। कल के नतीजे से सत्य तय हो गया। उद्धव ठाकरे के हाथ में शिवसेना नहीं रहेगी। सब कुछ शिंदियों को ही देंगे, ऐसा विधायकों-सांसदों से दृढ़तापूर्वक कहा गया और बाद में वैसा ही हुआ।
मुंबई की लूट
शिवसेना को तोड़कर और धनुष-बाण चिह्न बागी गुट को देकर हमने अलग ही बड़ा भीम पराक्रम किया है, ऐसी शेखी के साथ श्री अमित शाह कोल्हापुर में आए और उन्होंने जोरदार भाषण दिया। सत्ता अमर नहीं और लोकतंत्र को मारनेवालों का अंत दुनियाभर में हुआ, वो यह भूल गए। रावण का भी राज्य गया और दिल्ली के मुगलों की सल्तनत भी समाप्त हो गई। लोग आक्रोशित होकर उठे तो अंग्रेजों को भी हिंदुस्थान छोड़ना पड़ा। किसी दौर के अपने ही स्वामित्व वाले लाल किला परिसर में मुगलों के वंशज आज जीवित रहने के लिए जूझ रहे हैं। हिंदुस्थान को लूटने के लिए ही अंग्रेज आए थे। लॉर्ड हेस्टिंग्ज ने आगरा पैलेस में मुगल सम्राट के स्नानगृह को तोड़ दिया और वहां के संगमरमर की लादियों और नक्काशियों को निकालकर इंग्लैंड के जॉर्ज चतुर्थ को भेंट स्वरूप दे दिया। शेष बचे सभी सामानों की नीलामी लॉर्ड विलियम बेंटिक ने की थी। आज के दिल्ली वाले मुंबई सहित महाराष्ट्र को इसी तरह लूटना चाहते है और इसके लिए उन्होंने शिवसेना को महाराष्ट्र से उखाड़ फेंकने की साजिश रची। पुणे के शनिवार वाड़ा पर अंग्रेजों का यूनियन जैक फहराने का कार्य हमारे ही बीच के एक सहयोगी ने किया, उसका नाम बालाजी पंत नातू था। उन्हीं बालाजी पंत के विचारों के उत्तराधिकारी को दिल्ली ने महाराष्ट्र की सत्ता पर बैठाया। महाराष्ट्र के ऊपर से शिवसेना के भगवे को हमेशा के लिए उतारना है।
बेईमानों के हाथ में छल से शिवसेना का धनुष-बाण देकर पहला कदम बढ़ाया है।
मराठियों ने मृत मां का दूध नहीं पीया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्वाभिमान, अस्मिता की जंग छिड़ेगी!
तब तक जागते रहो!