Saturday, November 23, 2024

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अडानी विवाद : विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचा रहे भारत के तथाकथित देशप्रेमी नेता

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जिस विदेशी हिंडनबर्ग की रपट पर अपने आपको देशहितैषी कहने वाले नेता और उनकी पार्टियां विदेशी दान या कहे भीख पर गौतम अडानी पर कर रहे हंगामें से ये लोग देश का हित कर रहे हैं अथवा अहित? इस कटु सच्चाई को हर देशप्रेमी को समझनी होगी। जबसे बिकाऊ नेताओं ने अडानी पर हंगामा बरपाया है, विदेशी उद्योगपतियों के शेयर में बढ़ोतरी देखी जा सकती है यानि ये उपद्रवी नेता किसकी सहायता कर रहे हैं? क्या है इन नेताओं का चरित्र, चुनाव लड़ते किसी पार्टी से और सत्ताभोग के लिए दूसरी पार्टी में जा मिलते हैं। देश को खोखला करते नेता और उनकी पार्टियों को भी चुनावी मैदान में धूल चटाकर इनकी असलियत दिखाने का समय आ गया है।   भारत वैश्विक मंच पर एक ताकत बन गया है। कोराना महामारी से लेकर यूक्रेन-रूस संकट के बावजूद भारत की विकास रफ्तार से विश्व के ताकतवर देशों में खलबली मची हुई है। बहुत सारे ताकतवर देश अब तक भारत को बहुत सारे सामान बेचा करते थे यानी निर्यात किया करते थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जैसे-जैसे आत्मनिर्भर हो रहा है उनकी दुकानदारी पर संकट के बादल छाने लगे हैं। इससे घबराए पश्चिम के देश भारत और पीएम मोदी के खिलाफ षडयंत्र में जुट गए हैं। और हमारे तथाकथित देशप्रेमी नेता उनके हाथ की कठपुतली बन देश का अहित कर रहे हैं। 

देश में होने हैं 10 चुनाव, इसीलिए रची जा रही साजिशें

देश में इस साल 9 विधानसभा चुनाव होने हैं और 2024 में लोकसभा चुनाव भी है। ऐसे में विदेशी ताकतें अपनी पूरी शक्ति झोंककर पीएम मोदी को सत्ता से बाहर करना चाहती हैं। इसीलिए बीबीसी डाक्यूमेंट्री लाई गई और उसके बाद भारत के विकास में योगदान देने वाली प्रमुख कंपनी अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट। लेकिन ऐसी साजिश करने वालों को समझनी चाहिए भारत का मतलब अडानी नहीं है। भारत में विकास की रफ्तार अब थमने वाली नहीं है।

मोदी की लोकप्रियता साजिशकर्ताओं के लिए चिंता

मोदी लगातार तीन साल से लोकप्रियता में वैश्विक स्तर पर सबसे ऊपर बने हुए हैं। यह केवल देश की बात नहीं है विदेशों में भी पीएम मोदी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि देश में। भारत के खिलाफ साजिशकर्ताओं के लिए यह भी एक चिंता का सबब है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि भारत को बदनाम कैसे किया जाए जिससे निवेशक दूरी बना लें और पीएम मोदी के विकास के संकल्प पर ब्रेक लगाया जा सके। पद्म विभूषण से सम्मानित आनंद महिंद्रा ने सही ही कहा है कि भारत ने भूकंप, सूखा, मंदी, युद्ध और आतंकवादी हमलों के कई दौर देखे हैं। इसीलिए भारत के खिलाफ कभी शर्त मत लगाना।

 

अडानी ग्रुप के वैश्विक विस्तार मिशन से डरी विदेशी कंपनियां

पिछले कुछ सालों में अडानी ग्रुप ने अपना प्रभाव जमाया है। गौतम अडानी ने अडानी ग्रुप के वैश्विक विस्तार मिशन को आगे बढ़ाया। ऐसे में वैश्विक रूप से अडानी ग्रुप का बढ़ना भला विदेशी कंपनियों को कैसे रास आ सकता है। तब तो और नहीं जब अडानी ग्रुप भारत की पहचान को दिनोदिन और सुदृढ़ करने में आगे की ओर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी दुनिया में जिस गति से भारत विरोधी नैरेटिव को फैलाया जा रहा है उसमें काफी वृद्धि हुई है।

 

सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, बिल गेट्स के फंड से आस्ट्रेलिया में हुआ अडानी का विरोध

एनजीओ http://350.org को Tides Foundation द्वारा अत्यधिक वित्त पोषित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि टाइड्स फाउंडेशन को फंड कौन देता है? सिर्फ एक साल के लिए नाम और रकम देखें! इसमें सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिडयार और बिल गेट्स के नाम हैं।

वालस्ट्रीट जनरल की प्रोपेगेंडा रिपोर्ट, अडानी को ही भारत बता दिया

बीबीसी डाक्यूमेंट्री और हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद विदेशी प्रोपेगेंडा मीडिया के साथ ही भारत के विपक्षी दलों और लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम को सरकार पर हमला करने का टूल मिल गया। अडानी का मतलब भारत नहीं है लेकिन वालस्ट्रीट जनरल ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही लिखकर प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की। उसने लिखा- हिंडनबर्ग ने “हिंदू राष्ट्रवादी पीएम” मोदी के आर्थिक विकास के गुजरात मॉडल से भरोसा हिला दिया है और “यह कॉर्पोरेट भारत के बारे में बहुत कुछ कहता है”।

 

भारत की छवि खराब करने का षड्यंत्र

ब्रिटिश न्यूज़ एजेंसी बीबीसी (BBC) ने अपनी डॉक्टूमेंट्री के माध्यम से पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने की कोशिश की और अब उसके बाद हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के जरिये अडानी ग्रुप पर हमला कर अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाने की साजिश रची गई। इन सभी का एक साथ आना संयोग नहीं हो सकता। इसके पीछ इन विरोधियों का अपना लाभ तो है ही साथ ही साथ भारत की छवि खराब करने का षड्यंत्र भी है। हिंडनबर्ग जैसे रिपोर्ट भी ऐसे ही षड्यंत्र रच रहे हैं। अब फिच रेटिंग्स ने भी कह दिया है कि फिलहाल अडानी ग्रुप की कंपनियों के रेटिंग्स पर असर नहीं है।

आनंद महिंद्रा ने कहा- भारत के खिलाफ कभी शर्त मत लगाना

पद्म विभूषण से सम्मानित आनंद महिंद्रा ने अडानी संकट के जरिए भारत की आर्थिक ताकत पर सवाल उठा रहे लोगों को करारा जवाब दिया है। बेबाकी के साथ अपनी बात कहने वाले महिंद्रा ने एक ट्वीट में कहा, ‘ग्लोबल मीडिया में अटकलें लगाई जा रही है कि क्या बिजनस सेक्टर की मौजूदा चुनौतियां भारत की आर्थिक ताकत बनने का सपना पूरा कर सकेगा। मैंने भूकंप, सूखा, मंदी, युद्ध और आतंकवादी हमलों के कई दौर देखे हैं। मैं केवल यही कहूंगा कि भारत के खिलाफ कभी शर्त मत लगाना।’ इस तरह महिंद्रा ने विदेश ही नहीं बल्कि देश में भी ऐसे लोगों को जवाब दिया है जो अडानी संकट के बहाने सरकार की इकॉनमिक पॉलिसीज पर सवाल खड़े कर रहे हैं। ट्विटर पर उनके एक करोड़ से अधिक फॉलोअर्स हैं।

 

हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ शेयर शार्ट-शेलिंग भी करती है, इसीलिए उसकी भूमिका पर संदेह

हिंडनबर्ग अमेरिका की इनवेस्टमेंट रिसर्च कंपनी है। 2017 में इसे ‘नाथन एंडरसन’ नाम के एक अमेरिकी व्यक्ति ने स्थापित किया था। इस कंपनी का मुख्य काम शेयर मार्केट, इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव्स पर रिसर्च करना है यानी कि शेयर मार्केट में कंपनियां पैसों की हेरा-फेरी तो नहीं कर रही हैं या फिर बड़ी कंपनियां अपने फायदे के लिए अकाउंट मिसमैनेजमेंट तो नहीं कर रही हैं। लेकिन इनवेस्टमेंट रिसर्च करने के साथ-साथ यह एक शार्ट-शेलर कंपनी भी है जोकि शेयर मार्केट में अलग-अलग कंपनियों के शेयर खरीदती और बेचती है और उससे मुनाफा कमाती है। इससे यह साफ हो जाती है कि हिंडनबर्ग ने शेयर के जरिये अपने मुनाफे के साथ-साथ इस रिसर्च के जरिये विदेशी मीडिया और भारत के विपक्षी दल को सरकार पर हमला करने का एक टूल दिया है।

 

अडानी के शेयरों में गिरावट से विदेशी कंपनियों को फायदा

अडानी के शेयरो में गिरावट और निवेशकों के नकारात्मक रुझान से इस सेक्टर की विदेशी कंपनियों को फायदा होगा। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कुछ छिपाना और कुछ बताना वाली नीति को अपनाया है यानी उसने अडानी ग्रुप के बारे में उन्हीं चीजों को बताया है जो उसके हित में हैं और जो शेयर बाजार में अडानी ग्रुप के शेयरों की कीमत को घटाने का काम करे। अडानी पर हमला करने से बहुत से समूहों को कई गुना लाभ होता है। अडानी साम्राज्य सोलर मैन्युफैक्चरिंग, लॉजिस्टिक्स, इंडस्ट्रियल लैंड, डिफेंस, एयरोस्पेस, फ्रूट्स, डेटा सेंटर्स, रोड, रेल, रियल एस्टेट लेंडिंग, कोल और कई अन्य क्षेत्रों में मौजूद है।

 

वैश्विक रूप से आगे बढ़ रहा है अडानी ग्रुप

अडानी ग्रुप पिछले 12 साल से ऑस्ट्रेलिया में मौजूद है। ग्रुप ने कई विरोधों के बाद भी कारमाइकल कोयला खदान का विकास किया। 2017 में अडानी ने चीनी बेल्ट एंड रोड पहल में सेंधमारी की। उस वर्ष, अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (लिमिटेड) ने कुआलालंपुर से 50 किमी दूर स्थित कैरी द्वीप में कंटेनरों को संभालने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। यह सभी अपेक्षाओं के विपरीत था इससे भी अधिक, यह मलेशिया में भारत की स्थिति को बढ़ावा देने वाला था।फिर श्रीलंका में चीनी उपस्थिति के बीच अडानी समूह को कोलंबो बंदरगाह पर एक पश्चिमी कंटेनर टर्मिनल के विकास और संचालन का ठेका मिला है। कुछ महीनों के भीतर, समूह ने द्वीप राष्ट्र में दो पवन ऊर्जा परियोजनाओं को समाप्त कर दिया। अडानी की उपस्थिति से बांग्लादेश के बिजली क्षेत्र को भी बढ़ावा मिल रहा है।

इज़राइल ने हाइफा बंदरगाह अडानी समूह को सौंपा

एशिया के बाहर भी अडानी ग्रुप भारत की मौजूदगी बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. पिछले साल, अडानी समूह ने इज़राइल के हाइफा बंदरगाह में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए 1.18 अरब डॉलर खर्च किए। अडानी अब इज़राइल में चीनी राज्य के स्वामित्व वाले शंघाई इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप के साथ सीधी प्रतिस्पर्धा में है। राष्ट्रवाद के संदर्भ में यह चीनी राज्य के व्यापारिक हितों पर सीधा हमला है। तंजानिया में, अडानी ने पूर्ववर्ती प्रीमियम बीआरआई परियोजना के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके चीन को भारी झटका दिया। देखना होगा कि समूह तेजी से यूरोप और यहां तक ​​कि अजरबैजान जैसे भौगोलिक क्षेत्रों में अपने पैर फैला रहा है।

यह सच है कि अडानी से पहले टाटा, रिलायंस और कई अन्य कंपनियों ने भी अन्य देशों में विस्तार किया। लेकिन उनके विस्तार के बीच उल्लेखनीय अंतर हैं। एक तो ये कि इन औद्योगिक समूहों ने भारत के बढ़ते दबदबे के समानांतर विस्तार नहीं किया। दूसरा अंतर यह है कि अडानी को पीएम मोदी का करीबी माना जाता है, जो सच न भी हो तो भी विदेशी ताकतों को झटका देना तय है।

फिच रेटिंग्स ने कहा- फिलहाल अडानी ग्रुप की कंपनियों के रेटिंग्स पर असर नहीं

अडानी समूह के स्टॉक्स में भारी गिरावट के बीच रेटिंग एजेंसी फिच की तरफ से बड़ा बयान आया है। फिच रेटिंग्स ने कहा है कि शार्ट सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का अडानी समूह की कंपनियों के रेटिंग्स और उनके सिक्योरिटिज पर फिलहाल कोई असर नहीं पड़ने वाला है जिसे उसने पहले से रेटिंग दी हुई है। साथ ही फिच ने कहा कि कंपनी के कैश फ्लो के उसके अनुमान में भी कोई बदलाव नहीं आया है। फिच रेटिंग्स के इस बयान से अडानी समूह को राहत मिली है।

फिच रेटिंग्स ने मौजूदा समय में अडानी समूह के 8 कंपनियों को रेटिंग दी हुई है। जिसमें अडानी ट्रांसमिशन को BBB-/Stable, अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के सीनियर सिक्योर्ड डॉलर नोट्स को BBB- रेटिंग हासिल है। अडानी इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड को सीनियर सिक्योर्ड डॉलर नोट्स को BBB-/Stable, अडानी ट्रांसमिशन को BBB-/Stable, अडानी ग्रीन एनर्जी के सीनियर सिक्योर्ड डॉलर नोट्स को BBB-/Stable, मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड को सीनियर सिक्योर्ड डॉलर नोट्स BB+/Stable रेटिंग्स हासिल है।

अडानी पर हमला 2017 में ही शुरू हो गया था

यह हमला हिंडनबर्ग शोध रिपोर्ट के बाद 25 जनवरी 2023 को शुरू नहीं हुआ है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया से 2016/17 में शुरू हुआ था। अडानी को 2010 में ऑस्ट्रेलिया में कारमाइकल कोल माइन का प्रोजेक्ट मिला था। 2017 में http://350.org एनजीओ के नेतृत्व में कुछ एनजीओ द्वारा अडानी के खिलाफ विरोध शुरू किया गया था। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिए एक ग्रुप #StopAdani बनाया।

भारतीय एनजीओ NFI को भी सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन देती है फंड

सीमा चिश्ती एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार

भारत में एक एनजीओ नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) है। अब एनएफआई के दानदाताओं की एक सूची देखिए। इसमें सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर, ओमिड्यार, बिल गेट्स और अजीम प्रेमजी के नाम भी हैं। सीमा चिश्ती एनएफआई में मीडिया फेलोशिप सलाहकार हैं। वह द वायर में संपादक हैं। वह कारवां के लिए लिखती हैं और वह माकपा नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं!

अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में एनजीओ IPSMF शुरू हुआ

अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में एक एनजीओ IPSMF शुरू हुआ, जो Altnews, The Wire, The Caravan, The News Minute, आदि प्रचार समाचार वेबसाइटों को फंड करता है। अब IPSMF के संस्थापक सदस्यों की सूची में नाम देखें। अगर आप प्रोपगंडा वेबसाइटों से जुड़े लोगों की टाइमलाइन चेक करेंगे, तो आपको अडानी के खिलाफ लगभग वही प्रॉपेगैंडा ट्वीट और समन्वित हमले मिलेंगे। इस कार्टेल ने अडानी के खिलाफ अपने प्रचार लेख और ट्वीट के साथ सोशल मीडिया और उनकी वेबसाइटों पर समन्वित हमले की शुरुआत की है।

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के किरदार अलीशान जाफरी को एक विदेशी फंडेड NFI में फेलोशिप मिली। उन्हीं के साथ शुरू हुई थी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री! सीमा चिश्ती ने उनकी मदद की और उनका मार्गदर्शन किया। सीमा चिश्ती दस साल तक बीबीसी की संपादक रहीं और अब वह द वायर की संपादक हैं।

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