Sunday, November 24, 2024

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मिशन भ्रष्टाचार या अत्याचार? केंद्र के प्रतिशोध से विपक्ष बेजार

SG

कालाधन वापस लाकर हर खाते में १५ लाख रुपए डालने, सस्ता ईंधन, सस्ती रसोई गैस, सस्ता राशन, हर साल लाखों रोजगार और भ्रष्टाचार मुक्त भारत जैसे अनेक सपने दिखाकर सत्ता के सिंहासन पर आसीन हुए पीएम मोदी और उनकी सरकार नोटबंदी से जीएसटी तक कई हथकंडे अपना चुकी है। दावा ये किया गया था कि देश से आतंकवाद समाप्त होगा, कालाबाजारियों की कमर टूटेगी। लेकिन केंद्र सरकार के तमाम दावे बीते आठ वर्षों में झूठे साबित हुए हैं। २०१४ से पहले साढ़े ४०० रुपए में मिलनेवाले गैस सिलिंडर की कीमतें आज १,१०० रुपए तक पहुंच चुकी है। पेट्रोल-डीजल १०० के पार बिक रहा है। अनाज और दूसरी खाद्य सामग्रियों की कीमतें भी कई गुना बढ़ चुकी हैं लेकिन इन समस्याओं के समाधान के बजाय केंद्र सरकार ‘मिशन भ्रष्टाचार’ के बहाने विपक्ष पर अत्याचार या यूं कहें कि विरोधियों के संहार में मशगूल है। केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपाई सरकार द्वारा देश एकछत्र राज करने की नीति को ही अपना एकमात्र लक्ष्य बना लेने का खामियाजा देश को भुगतना पड़ा है। २०१४ से पहले महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के खिलाफ जोर-शोर से आवाज उठानेवाली तथा केंद्र पर केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगानेवाली भाजपा आज नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र की कमान संभाल रही है। लेकिन बीते आठ वर्षों से केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार के शासनकाल में क्या बदला है ये सवाल जनता को आज सता रहा है। देश में महंगाई, बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रो रहा है। नतीजतन देश का विदेशी मुद्राभंडार भी लगातार खाली हुआ है तो वहीं अनाज का उत्पादन घटने के कारण वर्ष २०२३ में भी महंगाई से राहत मिलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। दूसरी ओर केंद्र सरकार भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर विपक्षी दलों को बदनाम कर रही है तथा नेताओं को चुन-चुन प्रताड़ित कर रही है ताकि वे टूट जाएं, समर्पण कर दें या फिर खत्म हो जाएं। भाजपा को सबसे बड़ा और शक्तिशाली बनाने की धुन में भाजपा की असली पहचान मिटने लगी है। भाजपा के प्रति आज लोग संदेह भरी नजरों से देखने लगे हैं।

केंद्रीय एजेंसियों की विश्वसनीयता पर खतरा
भाजपा के नेता और एजेंट विपक्ष के नेताओं पर आरोप लगाते हैं और फिर सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), एनसीबी, इनकम टैक्स आदि केंद्रीय जांच एजेंसियां भाजपा के रडार पर आए विपक्षी दलों और नेताओं को प्रताड़ित करने, डराने, तोड़ने व खत्म करने में पूरी शिद्दत के साथ जुट जाती हैं। बीते आठ वर्षों में इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव महाराष्ट्र ने भोगा है। मोदी सरकार और उसकी केंद्रीय एजेंसियों के आगे नहीं झुकनेवाले महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख को एक साल से ज्यादा समय तक जेल में रहना पड़ा था। इसी तरह से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के सांसद को भी जेल जाना पड़ा। राकांपाई पूर्व मंत्री नवाब मलिक तो अभी भी जेल में ही हैं। भाजपाइयों द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद केंद्र एजेंसियों के डर से महाविकास आघाड़ी में शामिल शिवसेना व दूसरे दलों के करीब ५० विधायक और मंत्री एवं एक दर्जन से अधिक सांसद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व अप्रत्यक्ष रूप से ‘भाजपाई’ बन गए। सियासत के पतन का ये तमाशा पूरा देश बेबस होकर देखता रहा। इसका प्रमाण सोशल मीडिया में देखने को मिलता है, जहां लोग मोदी सरकार, भाजपा और उनके समर्थकों को आड़े हाथों लेते हैं तथा नारायण राणे, प्रवीण दरेकर, प्रसाद लाड, यशवंत जाधव, यामिनी जाधव, भावना गवली, प्रताप सरनाईक सहित २०१४ के बाद भाजपा में शामिल हुए दूसरे दलों के ७० से अधिक नेताओं के भ्रष्टाचार पर सवाल पूछते हैं। हद तो ये है कि केंद्र सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्ववाले सांसदों-विधायकों के उस गुट को शिवसेना का मालिक बना दिया, जो शिवसेना पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे द्वारा टिकट दिए जाने के बाद सांसद या विधायक बने थे।

अपने हो रहे हैं उपेक्षित
सबसे बड़ी और अमीर पार्टी बनने के लिए भाजपा विपक्षी दलों के आर्थिक स्रोतों को खत्म करने की कोशिश में लगी है। भाजपा सिर्फ विपक्षी दलों पर ही अत्याचार कर रही है, ऐसा नहीं है। अपने सहयोगी दलों के साथ-साथ पार्टी में अपने कद को चुनौती देनेवालों को समेटने का खेल भी भाजपा में खेला जा रहा है। पूरे देश की बात करें तो झारखंड से अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, अन्नपूर्णा देवी, एमपी से ज्योतिरादित्य सिंधिया, जम्मू-कश्मीर में देविंदर राणा, पंजाब में सुनील जाखड़, अमरिंदर, इसी तरह हिमाचल से होशियार सिंह, प्रकाश राणा, अनिल शर्मा, अनूप केसरी तो वहीं हरियाणा से विनोद भयाना, अरविंद शर्मा तो उत्तर प्रदेश से ब्रजेश पाठक, सत्यपाल सिंह बघेल, रीता बहुगुणा जोशी, जितिन प्रसाद सहित कई अन्य प्रमुख लोग दूसरे दलों से भाजपा में शामिल हुए।
भाजपा में बाहरी लोगों के आयात होने का सिलसिला देश के अन्य राज्यों में भी जारी रहा। उत्तराखंड में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, सुबोध उन्नियाल, सरिता आर्य, किशोर उपाध्याय तो दिल्ली में मनोज तिवारी और राजस्थान में घनश्याम तिवाड़ी, ओडिशा में बैजयंत पांडा, बलभद्र माझी, बिहार में मिश्रीलाल यादव, रामकृपाल यादव, आर. सी. पी. सिंह प्रमुख लोगों में शामिल हैं। दल-बदलुओं की उक्त सूची में पश्चिम बंगाल के सुवेंदु अधिकारी, निसिथ प्रमाणिक, पूर्वोत्तर में असम से हेमंत बिस्वा सरमा, सर्वानंद सोनीवाल, त्रिपुरा से माणिक साहा, मणिपुर से एम. वीरेंद्र सिंह, अरुणाचल से प्रेमा खांडू, किरेन रिजिजू और सिक्किम में दोरजी शेरिंग लेपचा शामिल हैं। बात दक्षिण की करें तो कर्नाटक में बसव राज बोम्मई, बसवराज डोरट्टी, प्रमोद माधवराज, केरल में एपी अब्दुल्ला कुट्टी, डॉ. उमेश जाधव, शोभा करंदलजे, तेलंगाना में डीके अरुणा, एम रघुनंदन राव, जी विवेकानंद, आंध्र प्रदेश में डी. पुरंदेश्वरी, वाईएस चौधरी, तमिलनाडु में नैनार नागेंद्रन, खुशबू सुंदर, वी सर्वनन, सी एम रमेश, टीजी व्यंकटेश और पुडुचेरी में ए. नमाशिवायम का नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि विपक्ष में रहने के दौरान इनमें से ज्यादातर लोग पीएम मोदी और भाजपा के प्रबल आलोचक रहे थे लेकिन अब इनमें से कई लोग सीएम से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बन गए हैं। अकेले महाराष्ट्र में ही नारायण राणे, राहुल नार्वेकर, प्रवीण दरेकर सहित ऐसे दर्जनों नाम हैं जो कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना या दूसरे दलों से भाजपा में आए। इन दल-बदलुओं के कारण भाजपा के अपने लोग पर घोर अन्याय हुआ है। महाराष्ट्र में खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस, विनोद तावडे, पंकजा मुंडे, सुधीर मुनगुंटीवार जैसे कई वरिष्ठ एवं निष्ठावान लोग इसके भुक्तभोगी रहे हैं।
अत्याचार?

भाजपा के खेल पर सांसद संजय राऊत का सवाल
देश में भाजपा के कथित ‘मिशन भ्रष्टाचार’ पर शिवसेना सांसद व नेता संजय राऊत ने तीखे सवाल उठाए हैं। संजय राऊत ने प्रतिष्ठित दैनिक ‘सामना’ में अपने स्तंभ ‘रोखठोक’ में देश के नौ प्रमुख विपक्षी नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए पत्र का जिक्र किया है, जिसमें बताया गया है कि वैâसे ‘ईडी’, ‘सीबीआई’ सिर्फ विपक्ष को ‘निशाना’ बना रही हैं। नारायण राणे, असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा, प. बंगाल के मुकुल रॉय, सुवेंदु चौधरी जैसे कई नेता भाजपा में प्रवेश करने से पहले भ्रष्ट थे। उनके भ्रष्टाचार पर भाजपा ने पुस्तक भी छपवाई थी लेकिन ये सभी लोग अब भाजपा में आकर पवित्र हो गए हैं। सांसद संजय राऊत अपने स्तंभ में भाजपा के मेघालय घोटाले का खुलासा करते हुए लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कल तक मेघालय की कॉनराड संगमा सरकार को देश की सबसे भ्रष्ट सरकार कह रहे थे। मेघालय विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार का मुद्दा संगमा और उनकी सरकार का भ्रष्टाचार ही था। मोदी और शाह ने हर प्रचार सभा में कहा, ‘संगमा भ्रष्ट हैं और उन्होंने मेघालय को लूटा है। केंद्र से मेघालय में आई हजारों करोड़ की निधि लोगों तक पहुंची ही नहीं।’ फिर उसे किसने हड़प लिया? इस पर मोदी-शाह ने संगमा की ओर उंगली दिखाई, लेकिन अब उसी भ्रष्ट संगमा की सरकार में मामूली जान वाली भाजपा बेशर्मी से शामिल हो गई और उसी ‘भ्रष्ट’ संगमा के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह विशेष रूप से शामिल हुए। संगमा के घर ईडी-सीबीआई भेजने की बजाय मोदी-शाह और भाजपा सीधे संगमा की सरकार में शामिल हो गए और भ्रष्टाचार को खोदकर निकालने के लिए ईडी-सीबीआई का दस्ता पहुंचा लालू प्रसाद यादव और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर। सिसोदिया को तो गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। कर्नाटक के नकदी घोटाले के बारे में सांसद संजय राऊत लिखते हैं कि प. बंगाल के एक मंत्री पार्थ चटर्जी के घर से नोटों का जखीरा मिला था। पार्थ को ‘ईडी’ ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। चार दिन पहले कर्नाटक के भाजपाई विधायक विरुपक्षप्पा मंडल के बेटे प्रशांत के घर से आठ करोड़ की बेहिसाबी नकदी मिली थी, लेकिन इन सज्जन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।