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विकास ठप, बजट का इंतजार! यूपी में नहीं मिल पा रही योजनाओं को रफ्तार

SG

अलीगढ़
यूपी में भाजपा की योगी सरकार में भले ही बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत में योजनाओं को रफ्तार नहीं मिल पा रही है। अलीगढ़ के विकास के लिए पिछले तीन सालों से शासन को एक ही धनराशि के बजट की मांग भेजी जा रही है। जिसके सापेक्ष बजट नहीं मिल पा रहा है। आधे-अधूरे बजट के मिलने से विकास कार्यों को पूरी गति से रफ्तार नहीं मिल पा रही है। अगर बात करें वर्ष २०२०-२१ के बजट की तो ३८४.७७ करोड़ की मांग के सापेक्ष २२६ करोड़ का ही बजट मिल सका। वर्ष २०२१-२२ में मांग राशि में परिवर्तन नहीं किया गया, लेकिन बजट सिर्फ १६२ करोड़ का ही मिल सका। इस साल भी जिला योजना में ३८४. ७७ करोड़ रुपए का बजट का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन कई विभागों को तो वेतन एवं जरुरी कामों के बजट को छोड़कर अन्य बजट जारी ही नहीं किया जा सका है।
वित्तीय वर्ष समाप्ति को लेकर बढ़ा दबाव
वर्ष २०२२ में जिले के ९५ विभागों के पास २७.७२ अरब का बजट आया था, इसमें से २६.७८ अरब का बजट ही खर्च हो सका और करीब ९४.१० करोड़ का बजट वापस हुआ था। पिछले साल की तरह इस बार भी बजट में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। सबसे अधिक बजट मनरेगा, सड़क, पेयजल, शिक्षा, स्वच्छता, विकास कार्यों, रोजगार कार्यक्रम, कृषि, सिंचाई, जल-संसाधन आदि पर खर्च करने का प्रस्ताव था। जिले के सरकारी दफ्तरों में वित्तीय वर्ष समाप्ती माह को लेकर लेखा- जोखा बंदी का दबाव बढ़ गया है। विभागों को मिले करोड़ों रुपए के बजट को खर्च करने को अब १८ दिन शेष बचे हैं। विभागीय अफसर एवं लेखा विभाग से जुड़े कर्मचारी हिसाब- किताब मिलाने के साथ ही बचे बजट को खर्च करने में जुटे हुए हैं।
कहीं अधूरा तो कहीं लगे हैं ताले
शहरी क्षेत्र में सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के दौरान यहां के लोगों को आशा थी कि अब उन्हें खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा। जो शौचालय बने हैं वे भी अधिकतर बंद रहते हैं। ग्रामीण एवं क्षेत्र में बंद पड़े सामुदायिक शौचालय प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान को पलीता लगा रहे हैं। क्षेत्र में कई जगह अब तक सामुदायिक शौचालयों का निर्माण नहीं हो सका है। जो तैयार हो गए हैं उन पर भी ताले लटके रहते हैं। नगर पंचायत सहपऊ में पांच सामुदायिक शौचालय का निर्माण होना था। इनमें से से ठेकेदार ने दो शौचालय तो बना कर तैयार कर दिए जबकि तीन शौचालय अभी भी निर्माणाधीन है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बने सामुदायिक शौचालय भी सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। शहरी क्षेत्र में सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के दौरान यहां के लोगों को आशा थी कि अब उन्हें खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा। जो शौचालय बने हैं वे भी अधिकतर बंद रहते हैं। बिजली का कनेक्शन नहीं होने के कारण यहां पानी की सुविधा नहीं है।

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