बीबीसी और सिविल सोसायटी को नहीं दिखते भारत में अंग्रेजों और कांग्रेसियों के राज में हुए सांप्रदायिक दंगे
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ पिछले 22 सालों से प्रोपेगेंडा किया जा रहा है। पहले देश की दरबारी-वामपंथी मीडिया, एनजीओ और सिविल सोसायटी ने गुजरात दंगों के मामले में अभियान चलाया। उसका कारण है, साबरमती ट्रेन में 26 रामभक्तों को जिन्दा जलाए के आक्रोश में हुए दंगे में उन्होंने किसी बेकसूर को नहीं पकड़ा, यही कारण है कि उनका निरंतर विरोध किया जा रहा है। मनगढ़ंत और झूठे आरोपों के आधार पर उन्हें दोषी करार देने के लिए पूरा जोर लगाया, लेकिन हर बार सत्य की जीत हुई। जब प्रधानमंत्री मोदी एक मजबूत वैश्विक नेता के रूप में उभरने लगे तो उन्हें इससे परेशानी होने लगी।
प्रधानमंत्री मोदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए सीधे विदेशियों की शरण में पहुंच गए और बीबीसी की प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से उनकी छवि खराब करने की कोशिश में लग गए। इसके लिए उन्होंने वहीं पुराने गुजरात दंगे को आधार बनाया, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बोलने के लिए उनके पास कोई मुद्दा नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 2002 का गुजरात दंगा एकमात्र ऐसा दंगा है, जिसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ? क्या देश में इससे पहले और बाद में कोई दंगा नहीं हुआ ? अब इन सवालों का जवाब भारत में अंग्रेजों और कांग्रेस के शासन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों से मिल सकता है, जो काफी हैरान करने वाले हैं।
भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगे
1893 में बॉम्बे का सांप्रदायिक दंगा : दंगों में 100 से ज्यादा लोगों की हत्या की गई थी और 800 व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुए थे।
1921 में मोपला हिन्दू नरसंहार : केरल में लगभग 6 महीनों तक हिन्दुओं का नरसंहार चलता रहा था, जिसमें 10,000 से भी अधिक जानें गईं। राज्य में ‘जिहादी नरसंहार’ की पहली वारदात थी। वामपंथी इतिहासकारों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह बताकर इस पर पर्दा डलाने की कोशिश की।
1924 में कोहाट का दंगा : आधिकारिक तौर पर कुल 115 लोग हताहत हुए थे। इनमें 12 मरे थे, 13 घायब हुए थे और 86 को चोट आई थी। मुस्लिम सुमदाय के लोगों ने हिन्दुओं को काट डाला। हिंदुओं के घरों को लूटा और आग में झोंक दिया।
1946 में नोआखली का सांप्रदायिक दंगा : एक सप्ताह से भी अधिक समय तक चले नोआखली के दंगों में 5000 हिन्दुओं के मारे जाने की बात कही जाती है, लेकिन आँकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। इस दंगे में 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे। 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है।
1947 में विभाजन की घोषणा और दंगे : विभाजन की घोषणा होने के बाद हुए दंगे में अनुमानित रूप में 10 लाख लोग मारे गए थे हालांकि एक अनुमान के मुताबिक 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। जबकि अनुमानित रूप में 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का अपहरण, बलात्कार या हत्याएं हुई थीं।
1947 का विभाजन और विस्थापन : विभाजन से 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे। 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए उस पार गए या इस पार आए। महज 60 दिनों में एक स्थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्ति, खेती किसानी छोड़कर हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आना पड़ा।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद हुए इतिहास के सबसे बड़े मानव पलायन और लाखों लोगों के संहार की बेहद कड़वी यादें शायद ही कभी छोड़ेंगी। एक अनुमान के अनुसार इन दंगों में 10 से लेकर 15 लाख के बीच लोग मारे गए थे। इस नरसंहार के पीछ अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति थी। आजादी के बाद कांग्रेस भी अंग्रेजों की नीति पर चलती रही और देश में दंगों का सिलसिला जारी रहा। लेकिन बीबीसी को ये सब दिखाई नहीं देता है।
कांग्रेस के राज में हुए सांप्रदायिक दंगे
गाँधी हत्या के बाद चितपावन ब्राह्मणों का भयंकर नरसंहार : स्वतंत्र भारत ने सबसे पहला अति भयंकर दंगा 1948 में महात्मा गाँधी की हत्या के बाद हुए चितपावन ब्राह्मणों का नरसंहार, जिसका आज तक कोई राजनीतिक पार्टी नाम तक नहीं लेती। और दंगों का सब झुनझुना बजाते रहते हैं, फिर इस भयंकर नरसंहार पर क्यों चुप्पी साधे हुए हैं?
1980 में मुरादाबाद का साम्प्रदायिक दंगा : इस दंगों में 1500 से अधिक लोग मारे गए थे। उस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और वी.पी. सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे।
1983 में असम के नेली का सांप्रदायिक दंगा : इस दंगें में 1819 से अधिक लोग मारे गए थे। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। बाद में राजीव गांधी की सरकार ने 240 से अधिक अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट वापस ले ली थी।
1984 में देशव्यापी सिख विरोधी दंगा : सिर्फ दिल्ली में 2733 से ज्यादा लोग मारे गए थे। देशभर में मरने वाले सिखों का आंकड़ा तीन हजार से ऊपर था।
1985 में अहमदाबाद का साम्प्रदायिक दंगा : इस दंगे में 300 से अधिक लोग मारे गए। उस समय एम.एस. सोलंकी मुख्यमंत्री थे और राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।
1986 में अहमदाबाद का सांप्रदायिक दंगा : इस दंगे में 59 लोग मारे गए। कांग्रेस सरकार ने किसी भी राजधर्म का पालन नहीं किया।
1989 में भागलपुर का साम्प्रदायिक दंगा : इस दंगे में 1161 लोग मारे गए थे। उस समय बिहार में कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी और मुख्यमंत्री एस.एन. सिन्हा थे।
1992 में सूरत का सांप्रदायिक दंगा : इस साम्प्रदायिक दंगे में 175 से अधिक लोग मारे गए। उस समय कांग्रेस की सरकार थी।
1993 में बॉम्बे का साम्प्रदायिक दंगा : इस दंगे में 872 लोगों की मौत हुई। सुधाकर नायक के नेतृत्व में उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी।
2013 में मुजफ्फरनगर का सांप्रदायिक दंगा : इस दंगे में 62 से ज्यादा लोगों की हत्या हुई थी। इन दंगों के कारण 50,000 परिवार विस्थापित हुए थे। उस समय केंद्र में कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी।
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