Friday, November 22, 2024

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पेंडिंग पड़े हैं 4.5 करोड़ केस: जिस केस में अधिकतम सजा 7 साल, वह आज के सुप्रीम कोर्ट जजों के जन्म से पहले से चल रहा

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अदालतों में लंबित केसों का जल्द निपटारा करने के उद्देश्य से देश में अनेकों नई अदालतें गठित की गयी थीं, लेकिन दूसरों को ज्ञान बांझने वाली न्यायिक प्रणाली स्वयं पुरानी आदतों को नहीं छोड़ पा रही है।
देश की वर्तमान न्यायिक व्यवस्था को लेकर तमाम तरह के सवाल उठाए जाते रहे हैं और इसमें बदलाव की माँग भी उठती है। इस व्यवस्था के कारण देश की न्यायपालिका केसों के बोझ तले दबकर अंतिम साँसें गिन रही है। आश्चर्य कि बात यह है कि अदालतों में आज भी इतने पुराने केस पेेंडिंग हैं कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान 27 न्यायाधीशों का उस समय जन्म नहीं हुआ था।

 

इतना ही नहीं ट्रायल कोर्ट में किसी पुराने दस्तावेज की नक़ल लेने में ही महीनो लग रहे हैं, कोई पूछने वाला नहीं, जबकि फाइल हाथ में ही है, फिर विलम्भ क्यों?

ये मुकदमें आज भी कोर्ट में विचाराधीन हैं। ये मामले देश को सन 1950 में गणतंत्र घोषित करने के तीन के साल के भीतर पुलिस और आम जनता द्वारा दायर किए गए थे। इस वक्त में देश में लगभग 4.50 करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग हैं और महाराष्ट्र के रायगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज किया गया सबसे पुराना मामला है।

सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीशों में दिनेश माहेश्वरी सबसे उम्रदराज हैं। उनका जन्म 15 मई 1958 को हुआ था। उन्हें साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वे जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में हुए। जस्टिस माहेश्वरी इस साल 14 मई को रिटायर हो जाएँगे।

सबसे पुराना आपराधिक मामला

सबसे पुराना क्रिमिनल केस महाराष्ट्र की रायगढ़ पुलिस ने महाराष्ट्र निषेध अधिनियम की धारा 65E के तहत 18 मई 1953 को दर्ज किया गया था। इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के सबसे उम्रदराज न्यायाधीश के जन्म से भी यह मामला 5 साल पुराना है।
केस दर्ज के होने के बाद रायगढ़ जिले के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, उरण ने आरोपित के खिलाफ उसी साल गैर-जमानती वारंट भी जारी कर दिया। तब से यह मामला चल रहा है। अब इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 9 फरवरी 2023 को तारीख दी गई है। अब आरोपित अभी जीवित है या उसका निधन हो गया है, स्पष्ट नहीं है।
इस केस में आरोपित पर 1949 के अधिनियम की धारा 65E (अफीम के अलावा किसी भी भी नशीले पदार्थ को बेचने, खरीदने या रखने) के तहत आरोप लगाया गया था। केस में दोषी साबित होने पर कम-से-कम से 3 साल जेल और 25,000 रुपए जुर्माना और अधिकतम 5 साल जेल और 50,000 रुपए जुर्माना का प्रावधान है।
रायगढ़ में ही 25 मई 1956 को धारा 381 (क्लर्क या नौकर द्वारा मालिक की संपत्ति चोरी) के तहत एक और आपराधिक मामला दायर किया गया था। इसमें शंकर सोनू मालगुंडे को आरोपित बनाया गया था। यह मामला भी न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, उरण के समक्ष सुनवाई के लिए लिस्ट हुआ है। इस केस में दोषी पाए जाने पर 7 साल की कैद की सजा का प्रावधान है।

सबसे पुराना दीवानी मामला

अगर वर्तमान के सबसे पुराने सिविल (दीवानी) केस की बात करें तो यह पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में दर्ज किया गया था। पारिवारिक संपत्ति के बँटवारे से जुड़ा ये मामला 3 अप्रैल 1952 को मालदा की दीवानी अदालत में दायर किया गया था। इसमें सबसे हैरानी की बात यह है कि इसकी सुध 66 साल बाद ली गई।
साल 2018 मालदा दीवानी जज (सीनियर डिवीज़न) को सूचित किया गया कि प्रतिवादी नंबर 4 की मौत हो गई है। वह अपने पीछे अपनी विधवा और तीन बच्चों- दो बेटों और एक बेटी को छोड़ गया है। इसके बाद जज ने कानूनी उत्तराधिकारी को पार्टी बनाने का आदेश दिया। इसके बाद से मामला वहीं लटका हुआ है।
इसी तरह दूसरा सबसे पुराना दीवानी मामला भी मालदा के इसी कोर्ट से जुड़ा हुआ है। यह केस पिछले 70 सालों से भी अधिक समय से लंबित है। इस मामले में पार्वती रॉय नाम की महिला ने बिप्रचरण सरकार नाम के व्यक्ति के खिलाफ 18 जुलाई 1952 को मुकदमा दर्ज कराया था।
इस मामले में साल 2018 में मध्यस्थता की एक पहल की गई थी। इस मध्यस्था को लेकर क्या हुआ, किसी को नहीं पता। तब से सिविल जज इसके परिणामों पर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं।

सबसे पुराना मामला

देश के सभी उच्च न्यायालयों में लंबित केसों में सबसे पुराने केस की बात की जाए तो यह कलकत्ता उच्च न्यायालय के हिस्से में जाता है। कोर्ट के रिकॉर्ड में सबसे पुराना दीवानी मामला दर्ज है। यह साल 1951 से लंबित है। वहीं, इस हाईकोर्ट का सबसे पुराना आपराधिक मामला 1969 से लंबित है।
देश के कुल 25 उच्च न्यायालयों में कुल लगभग 60 लाख लंबित मामले हैं, जिनमें दीवानी और आपराधिक दोनों शामिल हैं। इनमें से 51,846 दीवानी मुकदमे और 21,682 आपराधिक मुकदमे 30 साल से अधिक पुराने हैं।
वहीं, ट्रायल कोर्ट में दर्ज 79,587 आपराधिक मुकदमे 30 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। वे मुकदमे जो 1975 या उससे पहले दर्ज किए गए थे और आज भी पेंडिंग हैं, ऐसे मुकदमों की संख्या 216 है। ट्रायल कोर्ट में दर्ज 3.23 करोड़ आपराधिक मामलों में 71 प्रतिशत पाँच साल या उससे कम पुराने हैं।
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