Sunday, November 24, 2024

राज्य

उत्तराखंड : उच्च न्यायालय द्वारा रेलवे लाइनों पर अतिक्रमण हटाने का आदेश आने पर शाहीन बाग़ जैसे उपद्रव की साजिश: विवादित जुबैर दे रहा हवा

अवैध प्रदर्शनकारी कब्जेदारों को कांग्रेस का भी समर्थन
उत्तराखंड के हल्द्वानी में 31 दिसंबर, 2022 को सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम भीड़ ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन रेलवे की जमीन पर हुए अवैध अतिक्रमण को हटाने के आदेश के खिलाफ हो रहा था। अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन है। प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन पर खुद को बेघर करने का आरोप लगाया। हाथों में ली गई तख्तियों में उन्होंने पहले खुद को बसाने की लाइनें लिखी थीं।

 

सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो और तस्वीरों के मुताबिक, शाहीन बाग़ वाले अंदाज में हो रहे इस प्रदर्शन में महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया गया था। ऑल्ट न्यूज़ के कथित फैक्ट चेकर विवादित मोहम्मद जुबैर द्वारा प्रदर्शनकारियों के समर्थन में शेयर किए गए एक वीडियो से पता चलता है कि लगभग 4500 परिवारों ने रेलवे की जमीन पर अवैध अतिक्रमण कर रखा है, जो अब बेघर होने की दुहाई दे रहे हैं। यहाँ ध्यान रखने योग्य है कि विवादित मोहम्मद जुबैर द्वारा शेयर हुए नूपुर शर्मा के एडिटेड वीडियो से देश के अलग-अलग हिस्सों में तनाव का माहौल बन गया था। सरकार को जुबेर के विरुद्ध भी कार्यवाही करनी चाहिए।

 

वायरल करवाए जा रहे वीडियो के साथ ट्विटर पर #StandWithPeopleOfHaldwani व #SpeakUpForPeopleOfHaldwani नाम से हैशटैग भी चलाए जा रहे हैं। ज्यादातर वीडियो में लड़कियों को पढ़ाई से वंचित किए जाने व महिलाओं को बेघर होने की दुहाई देते सुना जा सकता है।

पूरा मामला

दरअसल, 27 दिसम्बर, 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे। इसके लिए न्यायालय ने प्रशासन को सप्ताह भर की समय सीमा दी थी। इसी आदेश में कोर्ट ने प्रशासन से वनभूलपुरा क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लाइसेंसी हथियार भी जमा करवाने को कहा था। दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को ले कर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने के आदेश दे चुका है। रेलवे लाइनों पर अतिक्रमण सिर्फ उत्तराखंड नहीं, सभी जगह है। सरकार को इन अतिक्रमण को हटाने के साथ-साथ उन सभी नेताओं और अधिकारियों पर भी सख्त कार्यवाही की जरुरत है, जिन्होंने हर प्रकार की सरकारी सुविधा देकर धन का दुरूपयोग कर कानून का मजाक उड़ाया है। इन लोगों को मिलने वाली समस्त सरकारी सुविधायें तुरंत वापस लेकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई का आगाज करना चाहिए।

1975 से हो रहा कब्ज़ा

एक दावे के मुताबिक, हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्ज़े की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। पहले कच्ची झुग्गियाँ बनाई गईं, जो बाद में पक्के निर्माण में तब्दील हो गए। बाद में इसी अवैध कब्ज़े में न सिर्फ इबादतगाहें बल्कि अस्पताल तक बना डाले गए। आरोप है कि यह सब देखने के बाद भी तत्कालीन रेलवे सुरक्षा बल खामोश रहा। साल 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट की कड़ाई के बाद रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ पहला केस दर्ज करवाया, लेकिन तब तक लगभग 50 हजार लोग अवैध तौर पर वहाँ रहना शुरू कर चुके थे।
नैनीताल हाईकोर्ट के साल 2016 में आए आदेश के चलते कब्जेदारों ने लम्बी मुकदमे बाजी की। हालाँकि, वो अपने कब्ज़े का कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश कर पाए। बताया जा रहा है कि अवैध कब्जेदारों के खिलाफ डेढ़ दशक पहले भी बड़ा अभियान चलाया गया था। तब भारी फ़ोर्स के साथ सिर्फ कुछ हिस्सों को खाली करवा पाया गया था। इस दौरान कब्जेदारों के घरों के नीचे रेलवे लाइनें तक निकली थीं। कुछ समय की शांति के बाद खाली करवाए गए स्थान पर फिर से अवैध कब्ज़ा हो गया।

कांग्रेस नेताओं पर अतिक्रमणकारियों के संरक्षण का आरोप

सोशल मीडिया पर सक्रिय अभिषेक सेमवाल ने कांग्रेस पार्टी पर अवैध कब्ज़ा करने वालों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। अभिषेक के मुताबिक, इसकी शुरुआत दिवंगत कांग्रेस नेत्री इंदिरा हृदयेश ने की थी जिस राह पर अब उनके बेटे सुमित हृदयेश भी हैं। यहाँ ये जानना जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के खिलाफ और कब्जेदारों के समर्थन में कैंडल मार्च निकाला है।

कोरोना काल में पुलिस पर किया था हमला

‘सुदर्शन न्यूज़’ ने 15 अप्रैल, 2022 को एक वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो में एक भीड़ को सड़क पर हंगामा करते देखा जा सकता है। ‘सुदर्शन न्यूज़’ ने दावा किया था कि यह भीड़ लॉकडाउन 2 समय की है। तब हल्द्वानी के वनभूलपुरा इलाके में मुस्लिम भीड़ ने सड़कों पर उतर कर न सिर्फ डाक्टरों को बंधक बना लिया था, बल्कि उन्हें बचाने आई पुलिस से भी झड़प की थी।

अपनी कार्रवाई के पीछे रेलवे ने तर्क दिया है कि अवैध कब्ज़े से न सिर्फ विकास में दिक्कत आ रही बल्कि विस्तार भी प्रभावित हो रहा है। रेलवे का यह भी कहना है कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले अतिक्रमण करने वालों को कई नोटिस भेजी गई थी, लेकिन उस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला और न ही किसी ने खुद से अतिक्रमण हटाया।