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दिल्ली कांग्रेस : केजरीवाल सरकार करवा रही थी नेताओं की जासूसी, होता था कैश पेमेंट, दो चाबियों से खुलती थी तिजोरी

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अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी अब भ्रष्टाचार के आरोपों से इस कदर घिर चुकी है कि उसका किला ढहने ही वाला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार घोटालों और भ्रष्टाचार के दलदल में धंस चुकी है। आम आदमी पार्टी के फाइनेंसर माने जाने वाले केजरीवाल के करीबी कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन पहले से ही जेल में थे और अब शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया भी जेल पहुंच चुके हैं। केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार में इस कदर आकंठ डूब चुकी है कि अब उनके खिलाफ जासूसी कांड में जांच का आदेश भी दे दिया गया है।

जासूसी मामले में सिसोदिया के खिलाफ जांच को मंजूरी

दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ मामला दर्ज करने के सीबीआई के अनुरोध को मंजूरी दे दी। उनपर आरोप है कि दिल्ली सरकार ने राजनीतिक खुफिया जानकारी जुटाने के लिए विजिलेंस डिपार्टमेंट के तहत फीडबैक यूनिट का गठन किया था।

राजनीतिक जासूसी के लिए बनाई गई फीडबैक यूनिट

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार फीडबैक यूनिट का इस्तेमाल राजनीतिक जासूसी के लिए कर रही थी, सीबीआइ ने अपनी रिपोर्ट में इस बार से पर्दा उठाया है।सीबीआइ ने कहा है कि यह यूनिट वैसे तो दिल्ली सरकार के विभागों में कामकाज की निगरानी के लिए बनाई गई थी। लेकिन असल मकसद कुछ और निकला।

सत्ता में आने के बाद AAP ने बनाई थी फीडबैक यूनिट

2015 में सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने सतर्कता विभाग को मजबूत करने के लिए फीडबैक यूनिट बनाई थी। आरोप है कि इसके माध्यम से नेताओं की कराई गई जासूसी थी।

जासूसी के लिए तिजोरी में रखा था कैश, दो चाबियों से खुलता था

केजरीवाल सरकार ने विजिलेंस डिपार्टमेंट में बनाए गए ‘फीडबैक यूनिट’ से नेताओं की जासूसी कराई। दिलचस्प बात यह है कि इस सीक्रेट ऑपरेशन में खर्च होने वाले पैसे के भुगतान के लिए ‘सीक्रेट सर्विस फंड’ बनाया गया था। वहीं इस फंड को रखने के लिए एक ऐसी तिजोरी का इस्तेमाल हुआ जोकि दो चाबियों को एक साथ घुमाने पर खुलता था।

सीक्रेट ऑपरेशंस के लिए होता था नकद में पेमेंट

फीडबैक यूनिट (FBU) को 2015 में AAP सरकार द्वारा गठित किया गया था। इस यूनिट के तहत सीक्रेट ऑपरेशंस के लिए नकद में पेमेंट किया जाता था और इसकी डिटेल एक रजिस्टर में रखी जाती थी। इसमें ‘S’ के आगे नंबर लिखा जाता था।

सतर्कता विभाग के अधिकारी ने की जासूसी की शिकायत

फीडबैक यूनिट का गठन 2015 में किया गया था। 2016 में सतर्कता विभाग के एक अधिकारी ने शिकायत दर्ज करायी थी कि इसकी आड़ में जासूसी की जा रही है। 2015 में ही इस यूनिट के खिलाफ आवाज उठी थी और बाद में मामला सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया था।

सीक्रेट सर्विस फंड की तिजोरी पर अधिकारी ने उठाया सवाल

2016 में फीडबैक यूनिट की शिकायत करने वाले विजिलेंस डिपार्टमेंट के एक अधिकारी ने अपने पत्र में यह सब बातें लिखी हैं। जिसे सीबीआई ने सबूत के तौर पर शामिल किया है। इस यूनिट के कथित रूप से गठन होने के सात महीने बाद और इसमें शामिल होने के चार महीने बाद दो में से एक अधिकारी पुलिस उपाधीक्षक शम्स अफरोज ने सीक्रेट सर्विस फंड की तिजोरी की दो चाबियों में से एक को अपने पास रखने का दावा किया। अफरोज ने विजिलेंस विभाग के विशेष सचिव को तीन पेज का पत्र लिखकर इसकी वित्तीय कार्यप्रणाली के संबंध में सवाल खड़े किए। अफरोज को दिल्ली सरकार में उप निदेशक (प्रशासन और वित्त) के रूप में नियुक्त किया गया था। वो 30 मई को कथित रूप से गठित की गई यूनिट में शामिल हुए थे और उन्होंन 22 सितंबर 2016 को पत्र लिखा था।

मामला उठा तो CBI को सौंपा गया जांच का जिम्मा

उपराज्यपाल अनिल बैजल ने परियोजनाओं की फीडबैक लेने और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जानकारी देने के लिए आप सरकार द्वारा गठित फीडबैक यूनिट के कर्मचारियों को बर्खास्त कर इसके दफ्तर को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया था। इससे पूर्व उपराज्यपाल रहे नजीब जंग ने उपराज्यपाल की मंजूरी लिए बिना गोपनीय तरीके से फीडबैक यूनिट बनाने के जांच का मामला सीबीआइ को सौंपा था और उस समय से सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही है।

फीडबैक यूनिट को करना था विजिलेंस विभाग के अधीन काम

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक फीडबैक यूनिट को भले ही परियोजनाओं की फीडबैक लेने और भ्रष्टाचार की जानकारी देने के नाम पर गठित की गई थी लेकिन इसकी गतिविधियां रहस्यमयी थीं। सतर्कता विभाग के सचिव ने सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय के अधीन काम करने वाली फीडबैक यूनिट की जानकारी कई बार पत्र लिखकर मांगी थी लेकिन उन्हें कभी जानकारी नहीं दी गई। जबकि फीडबैक यूनिट को विजिलेंस विभाग के अधीन काम करना था। सूत्र बताते हैं कि इसके फंड व खर्च आदि को लेकर भी गोपनीयता बरती गई।

फीडबैक यूनिट के स्टाफ को दी जा रही थी गाड़ी, आफिस, टेलिफोन 

उपराज्यपाल द्वारा फीडबैक यूनिट पर कड़े तेवर दिखाने के बाद दिल्ली सरकार का विजिलेंस विभाग भी सतर्क हो गया।उसने कई कर्मचारियों के काम को एक साल का मियाद पूरी होने के बाद कांट्रैक्ट को आगे नहीं बढ़ाया। वहीं कई कर्मचारियों ने यूनिट को लेकर बढ़ते विवाद को देखते हुए नौकरी छोड़ दी। बाकी बचे कर्मचारियों को बर्खास्त कर यूनिट को हमेशा के लिए बंद करने का आदेश जारी किया गया।एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यूनिट के स्टाफ को वेतन के अलावा गाड़ी, आफिस व टेलिफोन आदि की सुविधा दी गई थी।

राजनीतिक खुफिया जानकारी जुटाने में लग गई यूनिट

सीबीआई की शुरुआती जांच में सामने आया है कि FBU को जो काम दिया गया था, वह उसके अलावा खुफिया राजनीतिक जानकारियां जुटाने में भी लग गई। वह किसी व्यक्ति की राजनीतिक गतिविधियों, उससे जुड़े संस्थानों और AAP के राजनीतिक फायदे वाले मुद्दों के लिए जानकारी जुटाने लगी।

सीबीआई की जांच में क्या-क्या पाया?

सीबीआई की शुरुआती जांच में सामने आया है कि फीडबैक यूनिट (एफबीयू) को जो काम दिया गया था, वह उसके अलावा खुफिया राजनीतिक जानकारियां जुटाने में भी जुटी थी। वह किसी व्यक्ति की राजनीतिक गतिविधियों, उससे जुड़े संस्थानों और आम आदमी पार्टी के राजनीतिक फायदे वाले मुद्दों के लिए जानकारी जुटाने लगी थी।

एफबीयू ने कुल 700 केसों की जांच की। इनमें 60% राजनीतिक निकले। जिनका सरकार के कामकाज से कोई लेनादेना नहीं था। सीबीआई के अनुसार, अभी यह साफ नहीं कि एफबीयू अभी भी एक्टिव है या नहीं।

सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी खजाने में नुकसान का भी जिक्र किया। एजेंसी की मानें तो फीडबैक यूनिट के गठन और काम करने के गैरकानूनी तरीके से सरकारी खजाने को लगभग 36 लाख रुपये का नुकसान हुआ। सीबीआई ने कहा था कि किसी अधिकारी या विभाग के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

सीबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, एफबीयू की स्थापना के लिए कोई प्रारंभिक मंजूरी नहीं ली गई थी, लेकिन अगस्त 2016 में सतर्कता विभाग ने अनुमोदन के लिए फाइल तत्कालीन एलजी नजीब जंग के पास भेजी थी। जंग ने दो बार फाइल को खारिज कर दिया।

फीडबैक यूनिट पर देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप

फीडबैक यूनिट (एफबीयू) मामले में दिल्ली सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। एलजी कार्यालय ने पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और दो पूर्व मंत्रियों के पत्र को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव को भेज दिया है। खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने के लिए एफबीयू के गठन पर सवाल उठने के बाद पूर्व सांसद सहित दो पूर्व मंत्री मंगत राम सिंघल और किरण वालिया ने एलजी को पत्र लिखकर एनआईए या सीबीआई से जांच करवाने की मांग की थी।

इसे भ्रष्टाचार से अलग मानते हुए देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप लगाते हुए दिल्ली सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों के खिलाफ राजद्रोह की कार्रवाई की मांग की गई थी। इस मामले में आम आदमी पार्टी ने भी एलजी, कांग्रेस और भाजपा पर निशाना साधते हुए कई सवाल उठाए हैं।