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बैंक किस तरह खुद ही अपनी बैलेंस शीट को खराब करते हैं इसका एक उदाहरण भारतीय स्टेट बैंक की ओर से पतंजलि कंपनी को दिए गए कर्ज से समझा जा सकता है। बैंक ने एक ऐसी कंपनी को खरीदने के लिए कर्ज दिया है जो पहले से ही घाटे में जा रही है और जिसके भविष्य में लाभ में जाने की कोई संभावना नहीं है।
दरअसल, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के एक शेयरधारक को प्रतिक्रिया देते हुए अनायास ही अपने घाटे के सौदे को उजागर कर दिया। इसका ताजा उदाहरण है रुचि सोया उद्योग, जिसके शेयर नीचे गिरते जा रहे हैं, फिर भी बैंक को वह निवेश के लिए सही लगती है। ऐसे मामलों के लिए यह एक प्रमुख उदाहरण है।
जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2019-20 में एसबीआई ने रुचि सोया इंडस्ट्रीज के खाते में की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के कॉलम में 746 करोड़ रुपये की राशि लिखी थी और कंपनी से एक भी रुपया नहीं वसूला था।
जबकि दिवाला और दिवालियापन संहिता (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, आईबीसी) के तहत मंजूर की गई योजना में कहा गया था कि एसबीआई अपने 1,816 करोड़ रुपये के वसूली के मूल दावे के बजाय 883 करोड़ रुपये वसूलेगा। इसके बावजूद बैंक ने बाबा रामदेव से जुड़ी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को रुचि सोया के अधिग्रहण में मदद करने के लिए 1,200 करोड़ रुपये का नया कर्ज दिया है।
बता दें कि SBI बैंकों के उस कंसोर्टियम का हिस्सा था जिसने पतंजलि आयुर्वेद को इसके अधिग्रहण के लिए 3,200 करोड़ रुपये दिए थे। वास्तव में एसबीआई के नेतृत्व में कई बैंकों ने दिवालिया अदालतों के समक्ष रुचि सोया के खिलाफ 12,146 करोड़ रुपये से अधिक के दावे किए थे।
इन दावों में सबसे बड़ा दावा SBI का 1,800 करोड़ रुपये का था। इसके बाद सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (816 करोड़ रुपये), पंजाब नेशनल बैंक (743 करोड़ रुपये), स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक इंडिया (608 करोड़ रुपये) और डीबीएस (243 करोड़ रुपये) का दावा था। देखना होगा कि क्या सार्वजनिक क्षेत्र के ऐसे और भी बैंकों ने इसका अपना दावा किया था या नहीं।
पूंजीगत मूल्य वृद्धि से लाभ पाने पर जोर…
बहरहाल, सवाल यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) नए कर्जदार को कर्ज देते समय उतने चातुर्य का परिचय क्यों नहीं देते, जितने की उनके हितों की रक्षा के लिए हमें उम्मीद होती है? कई निजी बैंक ऐसी स्थितियों में ऋण को इक्विटी में परिवर्तित करने और पूंजीगत मूल्य वृद्धि से लाभ पाने पर जोर देते हैं।
रुचि सोया के मामले में पतंजलि द्वारा कंपनी का अधिग्रहण करने के बाद से शेयर की कीमत लगभग 3.50 रुपये से बढ़कर 1,535 रुपये हो गई, जो 43,757.14 गुना अधिक थी। पुणे स्थित सजग नागरिक मंच के अध्यक्ष और बैंक के एक शेयरधारक विवेक वेलंकर ने बताया कि एसबीआई ओर से साझा किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि मार्च 2020 तक रुचि सोया से पूरी तरह से कोई रिकवरी नहीं हुई है।
वैसे तकनीकी रूप से जब खाते में कर्ज लिखे जाते हैं, तो उन्हें बैलेंस शीट से संपत्ति के रूप में हटा दिया जाता है, क्योंकि बैंक कर्जों की वसूली की उम्मीद नहीं करता है। यह अभ्यास विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है, लेकिन बैंकों द्वारा नियमित रूप से कर प्रबंधन के तौर पर इस तरह की प्रक्रिा को अपनाया जाता है।
सितंबर 2019 में नियामक को दी गई जानकारी में रुचि सोया ने कहा था कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने पतंजलि की 4,350 करोड़ रुपये की संकल्प योजना को मंजूरी दे दी है। आदेश में कहा गया थ कि पतंजलि एक एसपीवी के तहत पतंजलि कंसोर्टियम अधीग्रह के नाम से 4,350 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग करेगी, जिसे बाद में रुचि सोया के साथ समायोजित किया जाएगा।