हाल में अपने मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘भारत के पास विश्व कल्याण, शांति एवं पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलना भारत के लिए एक बड़ा अवसर है। हमने एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की जो थीम दी है, उससे वसुधैव कुटुंबकम् के लिए हमारी प्रतिबद्धता जाहिर होती है।’ बिना किसी संदेह के जी-20 को विश्व नेतृत्वकर्ता समूह के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।
अमेरिका, यूरोपीय संघ सहित रूस, चीन, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, जर्मनी, इडोनिशिया, इटली, मेक्सिको, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, तुर्की जैसे देशों के बीच भारत की यह स्वीकार्यता परिवर्तित होती विश्व व्यवस्था को स्पष्ट तौर पर दर्शा रही है। विश्व जीडीपी का 85 प्रतिशत, विश्व कारोबार का 75 प्रतिशत और विश्व की 60 प्रतिशत जनसंख्या जी-20 देशों में ही रहती है। अब भारत इतने सामर्थ्यवान एवं बड़े समूह की अध्यक्षता एक दिसंबर से करने जा रहा है। इस मौके का उपयोग करते हुए भारत को विश्व कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चािहए।
जी-20 देशों की बैठक
विश्व मंचों पर भारत की प्रमुख और प्रभावी होती भूमिका को अब विश्व के प्रमुख देश स्वीकारने लगे हैं। गत दिनों इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी-20 देशों की बैठक में भी यह साफतौर पर दिखा। पिछले दिनों उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत में जब कहा कि यह युद्ध का युग नहीं है तो उस पर विश्व को आश्चर्य हुआ, क्योंकि भारत हथियारों और तेल की आपूर्ति के लिए बहुत हद तक रूस पर निर्भर है। रूस से खरीदा जाने वाला ईंधन अभी भले ही भारत की कुल आवश्यकताओं का बहुत छोटा हिस्सा है, लेकिन यह सच है कि इस समय देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों को तेजी से बढ़ने से रोकने में भारत को अगर सफलता मिल सकी है तो उसकी बड़ी वजह रूस से मिल रहा सस्ता कच्चा तेल है।